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क्या युवा मानसिक गुलामी का शिकार हो रहे हैं?

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Positive India:Rajesh Bissa;23 May:
युवा अर्थात जवाबदारी। युवाओं को जवाबदारी का प्रतीक ऐसे ही नहीं माना गया है। अपार संभावनाओं का स्वामी युवा हर असंभव को संभव करने की शक्ति रखता है।

संत कबीर दास जी का एक दोहा है –

ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग।

तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग।।

“ज्यों तिल माहि तेल है” अर्थात जिस प्रकार छोटे से तिल के दाने में तेल होता है। उसी प्रकार युवा में असीम संभावनाओं का भंडार होता है। जिसे कुछ प्रयासों से बाहर निकाला जा सकता है।

“ज्यों चकमक में आग” अर्थात जिस प्रकार आग में रोशनी होती है उसी प्रकार युवा का व्यक्तित्व अपार ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। उसका छोटा सा प्रयास भी समाज, राष्ट्र व स्वयं को प्रकाशित कर सकता है।

“तेरा सांई तुझ में ही” अर्थात आप का ईश्वर आपके अंदर विद्यमान हैं। ईश्वर अर्थात शक्ति। कहने का तात्पर्य आप के अंदर स्वयं असीम शक्ति विद्यमान है, आप जो चाहे वह कर सकते हैं।

“जाग सके तो जाग” अर्थात इसे अपने में ढूंड सकते हो तो ढूंड लो। ये आपके भीतर ही विद्यमान हैं।

कबीर दास जी का यह दोहा बहुत व्यापकता लिया हुआ है इसे युवाओं को बहुत गहराई से समझना चाहिये। यह आपके जीवन को बदल कर रख सकता है।

कभी सोचा है कि जब आप शक्तिशाली हैं, विवेकशील है, सामर्थ्यवान है, शक्ति का श्रोत है तो क्या कारण है कि जवाबदार आप को गंभीरता से नहीं लेते? वो इसलिए नहीं लेते क्योंकि आप उनकी नजरों में सिर्फ उनके विचारों की गठरी को आवागमन कराने वाली बैलगाड़ी मात्र हो।

शांत चित्त से विचार कीजिएगा कि आज जो विचार और लक्ष्य की गठरी आप लेकर चल रहे हैं, वह आपकी स्वयं की है या दूसरों की। बहुत ही आसान है यह जांच लेना की आप खुद के लिये प्रगतीशील है या दूसरे के एजेण्डे की बैलगाड़ी बने रहने के लिये। ये पांच बिंदू है –

1. सर्व धर्म समभाव

2. सर्व समाज समभाव

3. सर्व वर्ग समभाव

4. सर्व जात समभाव

5. सर्व क्षेत्र समभाव

अब आप इन बिंदुओं को लेकर मन में आ रहे सकारात्मक और नकारात्मक विचारों के बारे में सोचिये कि वह विचार आपके अध्ययन या अनुभवों पर आधारित हैं या दूसरे के द्वारा प्रस्तुत तर्कों व तथ्यों पर आधारित है। उत्तर आपको मिल जायेगा। सही दिशा में चलने का बोध हो जायेगा।

झूठा व्यवहार व भ्रष्टाचार इस देश के युवाओं का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसके लिए जवाबदार वे नहीं जिन्होने आप की आंखों पर भावनाओं की पट्टी को बांध रखा है। इसकी वजह स्वयं आप है जिसने बेवजह अपने को पक्ष और विपक्ष के खेमें बांट लिया है। इस प्रवृत्ती के कारण आपका शासन के ऊपर से नियंत्रण हट गया है।

वक्त है संभल जाईये, आप जीवन के प्रति जो संतुष्टि का भाव लिए हुए हैं असल में वह आने वाली हताशा का आगाज है। सामर्थ्यवान युवा बनना चाहते हो या फिर समर्थन की मशाल उठाकर चलने वाले गुलाम, फैसला आपको स्वयं करना है।

जय हिंद

लेखक:राजेश बिस्सा(लेखक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत स्वतंत्र विचारक हैं। ये उनके अपने विचार हैं)

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