क्या शाकाहार एक ‘सवर्णवादी’ विचार और वीगनवाद एक ‘वोक-वेस्टर्न’ विचार है?
-सुशोभित की कलम से-
Positive India: Sushobhit:
वाम और दक्षिण दोनों ही धाराओं के द्वारा एक साथ प्रश्नांकित किया जाना आज की तारीख़ में एक ‘दुर्लभ पुण्य’ है, जो सबको नहीं मिलता।
लिहाज़ा, वामधारा का आरोप है कि “शाकाहार एक ‘सवर्णवादी’ विचार है, जिसे लोगों पर ‘थोपा’ जाता है और इसके बहाने विशेषकर ब्राह्मणवादी ताक़तें मुख्यतया मुसलमानों, दलितों और पिछड़ी जातियों पर निशाना साधती हैं!”
वहीं, दक्षिणपंथियों का आरोप है कि “वीगनवाद एक ‘वोक-वेस्टर्न’ विचार है, जो भारतीय संस्कृति से कटा हुआ है और इसका मक़सद ‘नवजाग्रत’ हिन्दुओं को शारीरिक रूप से दुर्बल बनाना है।”
आप ही बतावें, किसके आरोप को सही माना जावे? दोनों के आरोप तो एकसाथ सही नहीं हो सकते।
पहले दक्षिण की बात करते हैं। दक्षिण धारा कहती है वीगनवाद गो-पालन को समाप्त करने का षड्यंत्र है। कृष्ण भगवान भी तो दूध, दही, मक्खन का सेवन करते थे, क्या वो ग़लत करते थे?
इस पर मेरा प्रतिप्रश्न यह है कि क्या भगवान कृष्ण गाय के गुदाद्वार में हाथ डालकर उसका कृत्रिम गर्भाधान भी करवाते थे, जैसे गोपालकों द्वारा आज किया जाता है? क्या वो गैया के बच्चों का मुँह बाँध देते थे या उनका क़त्ल कर देते थे? दूध का कारोबार करते थे? बूढ़ी गाय को कसाई को देकर आते थे? उसका चमड़ा-सींग-मांस-दूध-बच्चे सब बेच देते थे? कृष्ण भगवान तो गोकुल में रहते थे। वहाँ प्रकृति की सन्तानें जैसी गैयाएँ थीं, वैसे ही मनुज थे। दोनों में साहचर्य था। और गैया हमेशा इतना दूध उत्पन्न करती थी कि उसके बच्चे भरपेट पी लें, तब भी कुछ मनुज के उपयोग के लिए शेष रह जावे। वह तो महात्मा गांधी वाली ग्राम-स्वराज की आदर्श व्यवस्था थी। आधुनिक डेयरी इंडस्ट्री, उसके भीमकाय प्लांट, उसका करोड़ों-अरबों का दूध का धंधा, उस धंधे के लिए गोवंश पर अवर्णनीय अत्याचार और बीफ़ इंडस्ट्री को ‘कच्चे माल’ (भैंसें, बछड़े, बैल, बूढ़ी गायें) की करोड़ों टनों की आपूर्ति- यह सभी क्या गोकुल में होता था? यह सब आज भारत-देश में हो रहा है। यह ‘द्वापर-युग’ नहीं चल रहा है!
दूसरे, कोई जाति अगर दुर्बल नहीं होना चाहती तो वह क्या केवल बैठे-बैठे मांस भकोसेगी और कैंसर का शिकार बनेगी? दूध पीयेगी पर सैन्य प्रशिक्षण नहीं लेगी? हथियार चलाना नहीं सीखेगी? जंगलों में छापामार शैली की आज़माइश नहीं करेगी? केवल बैठकख़ाने में ज़मैटो से ऑर्डर किए मांस के भक्षण से ही ‘नवजाग्रत हिन्दू’ बलवान हो जावेगा? फिर अर्नाल्ड श्वार्जनेगर वीगन होकर भी इतना बलवान कैसे है? सेरेना विलियम्स और एडम ज़ाम्पा जैसे एथलीट वीगन होकर भी कैसे पेशेवर खेल की चुनौतियों का सामना कर पा रहे हैं? जोक्विन फ़ीनीक्स जैसे अभिनेता, बिल क्लिंटन जैसे राजनेता, ब्रायन ग्रीन जैसे वैज्ञानिक, युवाल हरारी जैसे इतिहासकार और जेएम कोएट्ज़ी जैसे नोबेल विजेता लेखक फिर कैसे वीगन होकर सफलतापूर्वक जीवन बिता रहे हैं?
अब वामधारा की बात करें।
पहला प्रश्न यही है कि आपसे किसने कह दिया शाकाहार ब्राह्मणवाद की अंतर्वस्तु है? वास्तव में, वैदिक काल की कथित पशुबलि-प्रथा के विरोध में श्रमणों ने विद्रोह किया था, इन अर्थों में यह एक प्रगतिशील चिंतन-धारा है। बौद्ध और जैन अपने मूल स्वरूप में जीवदया का संदेश देते थे, जैनी आज भी इस टिके हैं, बौद्ध डिग गए हैं। दूसरे, वीगन आंदोलन पूरे विश्व में प्रचलित है और मुख्यतया अमेरिका-यूरोप में निरंतर बढ़ रहा है। क्या वहाँ के लोग सवर्ण हिंदुत्व से प्रेरित होकर ऐसा कर रहे हैं? या वे जीवदया, पर्यावरण-संरक्षण, नैतिकता, कार्डियोवैस्कुलर स्वास्थ्य जैसे बिंदुओं से प्रेरित हैं?
तीसरे, शाकाहारी अपना मत किसी पर थोपते नहीं, वे सबको बताते हैं कि जीवहत्या घोर-पाप है। अगर यही मत थोपना हुआ तब तो क़ानून, पुलिस, संविधान और अदालतें भी हम पर अपना मत थोपते हैं कि यह-यह चीज़ें अपराध की श्रेणी में आती हैं, इन्हें ना करें और करेंगे तो दंडित किए जावेंगे। क्या हमें इन थोपे हुए क़ानूनों का पालन नहीं करना चाहिए? सच्चाई तो यह है कि उलटे मांसभक्षी अपना मत पशुओं पर थोपते हैं और उनकी मर्ज़ी के बिना उनका शोषण, उनकी निर्मम हत्या करते हैं, एक जीवित प्राणी को कमोडिटी की तरह ट्रीट करते हैं। अपना मत थोपने वाला कौन है? वह जो यह कहता है कि हत्या मत करो? या फिर वह जो कि हत्याएँ कर रहा है?
जीवदया का सम्बंध न तो वाम से है, न दक्षिण से। इसका सम्बंध एक सामान्य नैतिकता, शुचिता, अहिंसा, बोध और कल्याण से है। यह कि मैं अपना जीवन इस तरह से कैसे बिताऊँ कि उससे किसी अन्य जीवित प्राणी को कष्ट न हो। यह कोई ‘रॉकेट-साइंस’ नहीं है। इसके पीछे कोई राजनैतिक-साजिश नहीं छिपी है। इसमें कोई संगीन, स्याह राज़ नहीं है। यह दो और दो चार जैसी सीधी-सरल-सी बात है कि जीओ और जीने दो। अपने जीवन को पोषित करो, लेकिन इसके लिए किसी को शोषित मत करो। अपनी चेतना को जगाओ और समझो कि यह पृथ्वी और पर्यावरण मनुष्य की बपौती नहीं है, इसमें सब मिल-जुलकर जीवित रहने के सुपात्र हैं। क्या यह विचार-प्रक्रिया इतनी घृणित, इतनी हीन है कि आप उससे सशंकित हों और उसके प्रति प्रवाद करें?
इन बातों पर विचार करें, और आत्मचिंतन करके स्वयं ही निर्णय लेवें? ‘मैं वीगन क्यों हूँ’- यह तो मैंने बता दिया- आपको अपनी अंतरात्मा को क्या जवाब देना है, यह आप जानें।
Courtesy:Sushobhit-(The views expressed solely belong to the writer only)