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ज्ञानवापी मामले को लेकर क्या पूजा स्थल कानून को खत्म करने की आवश्यकता है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
ज्ञानवापी मामले को लेकर कम से कम पूजा स्थल कानून को खत्म करने की भी आवश्यकता नहीं दिखाई पड़ती। क्योंकि पहले यही तो तय करना है कि ज्ञानवापी मंदिर है या मस्जिद। इसी बात की पुष्टि के लिए सर्वे किया गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद है या नहीं। अगर ज्ञानवापी मस्जिद सिद्ध हो जाता है तब ही पूजा स्थल कानून बाधा बनेगा।

ज्ञानवापी मंदिर नहीं है, इस पक्ष में केवल दो ही दलील है। पहला कि ज्ञानवापी पर साढ़े 300 सालों से औरंगजेब के वंशजों का कब्जा है। दूसरा कि ज्ञानवापी ढांचे के ऊपरी हिस्से पर इस्लामिक गुंबद दिखाई पड़ता है। बाकी जितने भी दलील हैं सभी ज्ञानवापी ढांचे को मंदिर ही सिद्ध करते हैं। कोर्ट कमिश्नर विशाल सिंह की रिपोर्ट बताती है कि ज्ञानवापी ढांचे का जो गुंबद है उसका केवल एक्सटीरियर ही मस्जिद रूप में है, इंटीरियर में मंदिर की संरचना ही यथावत है।

देश में 70 साल के गंदे एकोसिस्टम ने मजहब वालों के मन में बिठा दिया है कि कब्जा हो जाने से मालिकाना हक मिल जाता है। अगर हमारा पूजा स्थल बेकब्जा हो जाए तो भी उस स्थल का करैक्टर नहीं बदल सकता, जब तक कि वहां विसर्जन ना हो जाए। पूजा स्थल कानून किसी अवैध बेकब्जा को ही वैधानीकरण करने के लिए आया था। लेकिन यह कानून जिस प्रकार काशी में नकारा सिद्ध हो रहा है, मथुरा में भी होगा। इस मरे हुए कानून को संसद में तिलांजलि देना तक भी मुझे आवश्यक नहीं लग रहा।

पूजा स्थल कानून ना होता तो क्या विरोध करने के इनके पास और तरीके न होते? ये कानून कम से कम एक ऐसा आलंबन तो दे रहा, जिसे फर्जी सिद्ध करने में हमें मेहनत नहीं करनी पड़ रही।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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