प्रधानमंत्री मोदी क्या भारत को लूटने के लिए विदेशी लुटेरों को भारत में बुला रहे हैं.?
देश के सीने में जहरीले दुष्प्रचार का जानलेवा चाकू घोंपने के महापाप से स्वयं को दूर रखिए।
Positive India:Satish Chandra Mishra:
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्या भारत को लूटने के लिए विदेशी लुटेरों को भारत में बुला रहे हैं.?
आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया अभियान प्रारंभ कर कुछ वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को छोड़कर शेष विश्व की सभी मल्टीनेशनल विदेशी कम्पनियों के लिए भारत के दरवाजे कुछ अतिरिक्त और विशेष सुविधाओं के साथ पूरी तरह खोल दिए थे।
क्या पूरी दुनिया की मल्टीनेशनल कम्पनियों के लिए भारत के दरवाजे पूरी तरह से खोलकर प्रधानमंत्री मोदी ने मल्टीनेशनल लुटेरों को भारत में लूट करने के लिए बुलाया है.?
कोई प्रचण्ड मूर्ख या कोई गजब का धूर्त जालसाज ठग ही ऐसा दुष्प्रचार कर सकता है।
ऐसा क्यों कहा रहा हूं, इसे समझने के लिए पहले जरा यह भी जान समझ लीजिए कि भारत में दशकों से व्यवसाय कर रहीं मल्टीनेशनल कंपनियों का सच क्या है.?
भारत में सबसे बड़ी विदेशी मल्टीनेशनल दवा कंपनी ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन GSK की भारत में बाजारगत पूंजी (MARKET CAPITAL) 25,493 करोड़ रूपये है। इसे मिलाकर भारत में सबसे बड़ी 4 विदेशी मल्टीनेशनल दवा कम्पनियों की कुल बाजारगत पूंजी (MARKET CAPITAL) 76,935 करोड़ रूपये है।
आपको आश्चर्य होगा यह जान कर कि सबसे बड़ी विदेशी दवा कंपनी GSK से लगभग चार गुना अधिक तथा सबसे बड़ी चारों विदेशी कंपनियों की कुल बाजारगत पूंजी (MARKET CAPITAL) से लगभग 24% अधिक 1.01 लाख करोड़ रूपये की बाजारगत पूंजी (MARKET CAPITAL) केवल एक भारतीय कंपनी की है। यह कंपनी हेल्थकेयर, स्किनकेयर हेयर केयर से संबंधित उत्पाद बनाती है।
आपको यह जानकर और अधिक आश्चर्य होगा कि इस कंपनी के सारे उत्पाद आयुर्वेद आधारित, आयुर्वेदिक पद्धति से ही बनते हैं। इस कंपनी का नाम है डॉबर।
आपको यह जानकर और अधिक आश्चर्य होगा कि भारत में आयुर्वेदिक उत्पादों के बाजार के 85 प्रतिशत हिस्से पर केवल 3 कंपनियों का कब्जा है। उनके नाम हैं डॉबर, बैद्यनाथ और इमामी। (तथ्य की पुष्टि दूसरे कमेंट से करें)
तो यह हैं वो कंपनियां जो देश के घर घर में आयुर्वेदिक उत्पादों को पहुंचा रही हैं। लेकिन यह काम वो किसी “पैथी” के खिलाफ कोई जहर उगले बगैर कर रही हैं। किसी दूसरी देसी विदेशी कंपनी को गालियां बके बिना ही कर रही हैं।
भारत में आयुर्वेदिक उत्पादों के बाजार के शेष 15% हिस्से में अपनी भागीदारी के लिए झंडू उंझा हिमालय धूतपापेश्वर सरीखी कंपनियों के साथ उन तथाकथित आयुर्वेदाचार्य की कंपनी भी जूझ रही है जिनसे कोई भी सवाल पूछे जाने पर “आयुर्वेद हिंदुत्व राष्ट्रवाद और भगवे” पर खतरे का सुनियोजित संगठित प्रायोजित हुड़दंग उसी तरह शुरू करवा दिया जाता है जिस तरह किसी कठमुल्ले मुसलमान नेता से कोई तीखा सवाल पूछे जाने पर “इस्लाम खतरे” में पड़ जाने का हुड़दंग वह कठमुल्ला नेता शुरू करवा देता है।
अब जरा यह भी जान लीजिए कि हिन्दूस्तान की सबसे बड़ी 25 दवा कंपनियों की सूची में केवल उपरोक्त 4 विदेशी कंपनियां ही शामिल हैं। इन 4 विदेशी कंपनियों की हैसियत का अनुमान इस बात से लगा लीजिए कि देश की सबसे बड़ी दवा कंपनी सन फार्मा की बाजारगत पूंजी (MARKET CAPITAL) 1.64 लाख करोड़ रूपए है। जो इन चारों विदेशी दवा कंपनियों की बाजारगत पूंजी (MARKET CAPITAL) से 100% अधिक है। अर्थात दोगुनी है। ध्यान रहे कि यह आर्थिक हैसियत केवल एक भारतीय कंपनी की है।
ध्यान यह भी रहे कि सन फार्मा दुनिया के 150 से अधिक देशों में अपनी दवाएं बेचता है। अतः उम्मीद करता हूं कि दिमाग पर डाले जा रहे ज़ाले को उपरोक्त तथ्य काफी हद तक साफ कर देंगे।
अब जरा यह भी जान लीजिए कि भारत में सक्रिय सबसे बड़ी मल्टीनेशनल FMCG विदेशी कम्पनी हिन्दूस्तान यूनीलीवर की भारत में ही 47 फैक्ट्रियां हैं, इन फैक्ट्रियों में 36000 प्रत्यक्ष कर्मचारी कार्य करते हैं। वितरण की सेल्स चेन से जुड़े लगभग 2 लाख व्यक्तियों को भी यह कम्पनी नियमित रोजगार देती है।
भारत में सक्रिय दूसरी सबसे बड़ी मल्टीनेशनल FMCG विदेशी कम्पनी नेस्ले इंडिया की भारत में 9 फैक्ट्रियों हैं। इनमें 7649 कर्मचारी कार्य करते हैं। लगभग 5 लाख व्यक्ति इसके उत्पादों की बिक्री वितरण चेन से नियमित रूप से जुड़े हुए हैं।
कोक इंडिया की भारत में 57 फैक्ट्री हैं, 25000 प्रत्यक्ष कर्मचारी करते हैं। 1,75000, इनडायरेक्ट कर्मचारी हैं।
पेप्सी इंडिया की भारत में 37 फैक्ट्री 1,70000 डायरेक्ट-इनडायरेक्ट कर्मचारी हैं।
केवल इन 4 कम्पनियों के उत्पादों से ही भारत सरकार को हर वर्ष लगभग 50-60 हजार करोड़ रूपये से अधिक के डायरेक्ट इनडायरेक्ट टैक्स की प्राप्ति होती है। लाखों लोगों के घरों में चूल्हा जलता है।
ध्यान रहे कि इन सभी कंपनियों का शत प्रतिशत उत्पादन भारत स्थित उनकी फैक्ट्रियों में ही होता है। भारत में इन कंपनियों के चपरासी से लेकर CEO तक भारतीय ही हैं।
अतः पुनः उम्मीद करता हूं कि दिमाग पर डाले जा रहे विदेशी लूट के ज़ाले को उपरोक्त तथ्य काफी हद तक साफ कर देंगे।
अब अंत में यह भी जान लीजिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केवल चीन को छोड़कर पूरी दुनिया के देशों की कंपनियों को भारत आने का निमंत्रण बार बार, लगातार क्यों दे रहे हैं।
ज्ञात रहे कि 24 मार्च 2020 से पूरे देश में लॉकडाउन लागू होने के 4 महीनों के बाद 31 जुलाई को केन्द्र सरकार ने भारत में निर्मित 7.30 लाख करोड़ रुपये मूल्य के मोबाइल फोन के निर्यात करने की अनुमति प्रदान की थी। यह चमत्कार आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया अभियान के कारण ही सम्भव हुआ था। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका प्रधानमंत्री मोदी के “मेक इन इंडिया” आह्वान के तहत पूरी दुनिया से आयी विदेशी मोबाइल कंपनियों की ही है। क्योंकि 2014 तक देश में मोबाईल बनाने वाली केवल 2 फैक्ट्री ही थी। भारत के मोबाईल फोन मार्केट पर पूरी तरह से चीन से आयातित मोबाइल फोनों का ही कब्जा था। आज संख्या 60 गुना बढ़कर 120 से अधिक हो गयी है। (तथ्य की पुष्टि चौथे कमेंट से करें)।
इन कंपनियों से भारत सरकार को दसियों हजार करोड़ का डायरेक्ट इनडायरेक्ट टैक्स मिलने लगा है। लाखों लोगों को रोजगार मिलने लगा है।
अब सबसे महत्वपूर्ण तथ्य। अपना साबुन तेल मंजन आटा दाल चावल और जींस बेचने के स्वार्थ में जब यह हुड़दंग शुरू कराया जाता है कि “विदेशी कंपनियां भारत को लूट रही हैं।” तो उस हुड़दंग में शामिल हो कर। उसे समर्थन देकर हम देश की पीठ नहीं देश के सीने में चाकू घोंपने के कुकर्म में साझीदार बन जाते हैं।
पाकिस्तान की तरह भारत को भी दुनिया के बाजार में भिखारी की हैसियत में पहुंचा देना चाहते हैं। ध्यान रहे कि केवल विदेशी मुद्रा के अकाल के काऱण पाकिस्तान आज इंटरनेशनल भिखारी बन चुका है।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार)