भारतीय दंड संहिता की धारा 121 के तहत एनआईए की अदालत में यासीन मलिक के लिए मृत्युदंड की मांग की गयी। धारा 121 के तहत मृत्युदंड का प्रावधान हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार मृत्युदंड केवल दुर्लभ मामलों में ही देना चाहिए।
आतंकवादी यासिन मालिक का मामला इतना दुर्लभ होने के बावजूद दुर्लभ क्यों नहीं माना गया? सजा सुनाने से पहले अदालत ने जब यासिन मलिक को अपनी सफाई देने का अवसर दिया तो यासीन मलिक ने बड़ा वाजिब बात कहा। यासिन मलिक ने स्वयं को अहिंसावादी पृष्ठभूमि के रूप में दलील दिया। साथ ही प्रधानमंत्रियों के साथ अपने संबंध को भी सामने रखा।
अब मामला देखिए। आज देश भर में इकोसिस्टम की मजबूती यूं ही नहीं विमर्श का विषय बना हुआ है। इकोसिस्टम में हर साजिश की बुनियाद बड़ी सुरक्षा से रखी जाती है। यासीन मलिक को भारत सरकार में तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक स्टेकहोल्डर के तौर पर बातचीत के लिए आमंत्रित करते थे। जबकि देश की मीडिया बताता था कि यासिन मलिक हथियार डालकर गांधी के रास्ते पर आया हैं। इन दोनों तथ्यों को यदि यासिन मलिक के मामले से हटा दिया जाए तो क्या अदालत में यासीन मलिक के लिए मृत्युदंड संभव नहीं?
एयर फोर्स के चार जवानों की हत्या मामले में यासिन मालिक पर जम्मू की टाडा अदालत में मुकदमा चल रहा है। इस मामले में सजा की सुनवाई पर जब फांसी की मांग की जाएगी तब शायद यासिन मलिक की पृष्ठभूमि बदल चुकी रहेगी। क्योंकि तब यासिन मलिक एक सजायाफ्ता मुजरिम के रूप में अदालत के कटघरे में खड़ा होगा। तब यासीन मलिक के लिए शायद कोई एकोसिस्टम सहायक सिद्ध ना हो और एक आतंकवादी को फांसी की सजा मिल जाए।
आश्चर्य कि एक आतंकवादी के लिए हमें फांसी की सजा दिलाने में मुजरिम की पृष्ठभूमि पर भी काम करना पड़ रहा। किसी एकोसिस्टम के ताने-बाने को तोड़कर मुजरिम को मुजरिम के रूप में प्रस्तुत करना पड़ रहा। हमें भूलना नहीं होगा कि महज अदालत में पृष्ठभूमि हिंसात्मक होने के बावजूद फांसी की सजा पर देशभर का माहौल बिगड़ सकता था। इसके लिए देश भक्तों ने कश्मीर फाइल को घर-घर तक पहुंचाया ताकि अदालत के बाहर भी यासीन मलिक जैसे गांधीवादी आतंकवादी को आतंकवादी सिद्ध किया जा सके।
यासिन मालिक को उसके अंजाम तक पहुंचाने के लिए देश एक साथ तीन मोर्चों पर काम कर रहा है। पहला अदालत के बाहर, दूसरा अदालत के पटल पर और तीसरा इकोसिस्टम के खिलाफ। अब हमारी निगाहें टाडा कोर्ट पर टिकी है। इसलिए तनिक विचार कर देखा जाए क्या महज चार वायुसेना के जवानों की हत्या का मामला यासिन मलिक पर ना हो, तो वह कभी फांसी के फंदे तक पहुंच पाएगा?
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)