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क्या तुष्टिकरण की पराकाष्ठा ही धर्म निरपेक्षता है ?

धर्मनिरपेक्षता का तो इन्होंने एक तरह से तो पेटेंट करा लिया है.

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh: धर्म निरपेक्षता और सांप्रदायिकता पर अब चर्चा लाजिमी है । कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष अपने को धर्म निरपेक्ष कहने से बाज नही आ रहा है । धर्मनिरपेक्षता का तो इन्होंने एक तरह से तो पेटेंट करा लिया है । इसलिए इनके हर काम मे धमॆनिरपेक्षता परिलक्षित होती है । चुनाव का पूरा खेल व ध्यान वहाँ के बहुतायत के हिसाब से तय होता है । अगर ये पार्टीया केरल मे चुनाव लड़ रही होती है तो वहा का दृश्य कुछ अलग नजर आता है, वही, वहां के लिए प्राथमिकता भी बदल जाती है । वहीं हिंदी भाषी बेल्ट मे ये अलग नजर आते है । सिद्धांत के साथ टोपी भी बदली नजर आती है । ये कहाँ की सोच है कि टोपी धर्म निरपेक्ष बनने मे सहायक होती है ? यही कारण है गुजरात चुनाव मे जहा सार्वजनिक रूप से जनेऊ धारण करने को मजबूर होना पड़ा, वही मंदिर मंदिर जाकर शीश नवाना पड़ा । वही, देश के दूसरे हिस्से मे पिछले चुनाव मे आर्कबिशप को भी चुनाव मे धमॆनिरपेक्ष दलों को मतदान करने के लिए अपील करनी पड़ी । दूसरे अल्पसंख्यको के धर्मगुरुओ को भी बदलाव के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना पड़ा । टीवी पर बहस मे भी इनके चेहरे बेनकाब हो जाते है । जब तक ये महानुभाव लोग सत्ता मे रहते है तो देश धर्म निरपेक्षता का प्रतीक बन जाता है । यही कारण है जब तक हम लोग सात सौ साल तक गुलाम थे तब तक सेक्यूलर रहे । दूसरे शब्दो मे तुष्टिकरण की पराकाष्ठा ही धर्म निरपेक्षता है । यही कारण है मोदी जी आज इनके गले नही उतर रहे है । देश से जनमत मिलने के बाद भी ये लोग अपने लोकतांत्रिक भावनाओको काबू न पाकर प्रधानमंत्री पद की गरिमा पर गाहे बगाहे चोट करने से बाज नही आते । अब तो तो इनकी पूरी राजनीति ही धर्म आधारित ही हो गई है । यही कारण है वोट के लालच मे इन लोगो को बांग्लादेशी मुसलमान मंजूर है इनहे रोहिंगया भी मंजूर है । पर इन लोगो मे से कोई एक बंदा नही निकला कि काश्मीर के पंडितो के लिए आवाज उठाता ? पंडितो के लिए आवाज उठाने मे भी सांप्रदायिकता की बू नजर आने लगती है । वही हाल दंगो मे भी, इनके नजरिये मे यही फर्क है । जब काश्मीर से हिन्दूओ को बेदखल किया जा रहा था, महिलाओ के अस्मिता से खुले आम खेला जा रहा था, तब इन तथाकथित सेक्यूलर लोगो के मुँह मे लकवा मार गया था । किसी एक पर भी कोई कार्रवाई नही हुई । वही हाल सिक्ख दंगे के समय हुआ । सब के जबान पर ताला लगा हुआ था । अपराधिक लोग माननीय बनकर बेखौफ घूम रहे थे । न्यायालय ने पैंतीस साल बाद जाकर सज्जन कुमार को आजीवन कारावास हुआ । अभी भी अधिकांश लोगो पर मुकदमा तक दर्ज नही हुआ है । वही हाल गोधरा कांड के समय हुआ, इनकी चुप्पी उस समय धर्मनिरपेक्षता का फर्ज निभा रहे थी । पर गोधरा कांड के जवाब मे जब गुजरात जला तो धर्मनिरपेक्षता के सब झंडाबरदार अपने बिलो से निकलकर सामने आ गये । ऐसा कोई मंच नही बचा जहा इन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोदी जी को न घेरा हो । इन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की अपने तरफ से कोई कसर बाकी नही रखी । हालात ये हो गये कि अमेरिका ने तो मोदीजी को आने से बंदिश ही लगा दी थी । उसी अमेरिका को अंत मे सम्मान पूर्वक बुलाने के लिए बाध्य होना पड़ा । अपने संसद मे उस ऐतिहासिक भाषण का हिस्सा बनाना पड़ा । ये जरूर है इस तरह की धर्मनिरपेक्षता की राजनीति लोग समझ गए है । यही कारण है आज इनकी राजनीति का यह हश्र हो रहा है । कितनी विडंबना है कि एक नरेंद्र मोदी जी इन सब धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारो पर भारी पड़ रहे है । एक सिद्धांत पर लड़ने वालो मे एकता न होना इनके स्वार्थ के राजनीति का कच्चा चिट्ठा खोलती है । एक बात तय है लोगो की जागरूकता ने इनके राजनीति की यह हालत कर दी । ये देश धर्मनिरपेक्ष है पर इसका मतलब यह नही की बहुसंख्यक के भावनाओ के साथ खिलवाड़ किया जाय ।
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचंद्र वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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