Positive India:Vishal Jha:
अग्निपथ योजना को लेकर सारे मामले सिर्फ एक बिंदु पर आकर विरोध के विषय बन रहे। वो यह कि इस योजना के तहत जितने अभ्यार्थियों को लिया जाएगा, उनमें से केवल 25% को ही नए विज्ञापन के माध्यम से स्थाई नियुक्तियां दी जाएगी।
यदि सरकार आज कह दे कि अग्निपथ में जितने अभ्यार्थियों का चुनाव किया जाएगा, सबों को 4 साल के बाद स्थाई नियुक्तियां दी जाएगी, तो वर्तमान में विरोध का अर्थ खत्म हो जाएगा। यद्यपि देश में शांति की कोई गारंटी नहीं। बहरहाल।
अब हम मान लेते हैं सरकार के पास सेना में भर्ती लेने के लिए एक हजार रिक्तियां हैं अथवा ऐसा कहिए कि सरकार 1000 रिक्तियों के विरुद्ध भर्ती लेना चाहती है। प्रश्न अलग से हो सकता है कि सरकार के पास मान लीजिए रिक्तियों की संख्या अधिक है लेकिन सरकार 1000 व्यक्तियों के विरुद्ध भर्ती क्यों ले रही है? विचार करने वाली बात है कि सरकार यदि कम संख्या में भर्ती कर देश की सैन्य व्यवस्था चलाना चाहती है तो इतना निर्णय लेने का हक सरकार के पास होना चाहिए। सरकार यदि चाहे तो मानव विहीन सीमा सुरक्षा के उपकरण भी इस्तेमाल कर सकती है। इजराइल का तर्ज अपना सकती है। इस फैसले का हक सरकार को है। वैसे भी यदि रिक्तियां कम क्यों है, इस मसले पर हम सरकार का विरोध करना चाहते हैं तो वर्तमान विरोध का कोई औचित्य ही नहीं।
अब मूल प्रश्न पर आते हैं। यदि सरकार हजार रिक्तियों के विरुद्ध भर्ती लेना चाहती है, लेकिन वह इसके लिए 4000 अभ्यार्थियों का चुनाव करती है, सबों को अग्निवीर बनाती है, साढ़े 23 लाख रुपया 4 साल में इन्हें कुल मिलाकर देती है, सेनाओं के लिए निर्धारित अन्य चीजें जैसे बीमा आदि की सुविधा है ही, मेडल और सम्मान साथ में। अब इन 4000 अभ्यार्थियों में से 1000 बेहतरीन अग्निवीरों को लेकर सरकार अपनी 1000 रिक्तियां पूरी कर लेती है।
सरकार से मेरा प्रश्न तो यह है कि यदि सरकार को बाकी के तीन हजार अभ्यार्थियों की कोई आवश्यकता नहीं थी, तो इन्हें अग्निपथ योजना में लिया ही क्यों गया? क्यों सरकार इतने अभ्यार्थियों पर करोड़ों रुपए लुटाएगी? सरकार के पास जितनी ही रिक्तियां हैं उतने ही अभ्यार्थियों का अग्निपथ योजना के तहत चयन करना चाहिए न?
देश के सभी युवा सेना में भर्ती हो जाना चाहते हैं, ऐसा नहीं है। बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, कंप्यूटर एप्लीकेशन, मेडिकल, क्लर्क, टेक्नीशियन, पुलिस आदि जैसे तमाम ऐसे क्षेत्रक हैं जिन क्षेत्रकों में युवा अपना करियर तलाशते हैं। इसके लिए तैयारी करते हैं। डिप्लोमा करते हैं अथवा कोई कोर्स करते हैं। अब बचे हुए 3000 अग्निवीर अभ्यार्थियों के पास इन सेक्टरों में प्रवेश के लिए प्रायोरिटी की सुविधा है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने पुलिस में भर्ती को लेकर घोषणा भी कर दिया है। 21 वर्ष उनकी उम्र है। साथ साथ पढ़ाई किए रहेंगे तो एकेडमिक डिग्री भी प्राप्त रखेंगे। हाथ में सैन्य सेवा का प्रमाण पत्र है। तमाम तरह के स्किल हैं। 23 लाख रुपये का बैकअप है। लेकिन अगर इतने सारे चीज इन अभ्यर्थियों को नहीं चाहिए, तो वे डिग्रियां बेचने वाले संस्थानों से डिप्लोमा आदि कर लें और नौकरी के लिए टहलते रहें। कोई जबरदस्ती नहीं है अग्नि पथ पर चलने की।
विचार करने वाली बात है कि सैन्य प्रक्रिया के बहाने सरकार के पास जितनी रिक्तियां है, उससे चार गुनी ज्यादा युवाओं को डिफेंस सेक्टर से जोर कर उन्हें वास्तव में कौशल युक्त, आर्थिक रूप से सशक्त, असली प्रमाण पत्र के साथ, एक अलग सम्मान के साथ उन्हें जीवन जीने का अवसर दे रही है। इसमें आपत्ति कैसी?
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)