Positive India:Ajeet Bharti:
परमेश्वर के पाँच अभिव्यक्त हैं शिव, शक्ति, गणेश, सूर्य और विष्णु। इन्हें पंच देवता भी कहा जाता है। या फिर, परमेश्वर ‘सत् चित् आनंद’ अर्थात् सच्चिदानन्द रूप में भी अभिव्यक्त होते हैं। आप किसी की भी उपासना करते हैं, वह अंततः एक ही रूप में जा कर प्रतिफलित होता है। आप जिनके नाम का पुराण पढ़ेंगे, वही श्रेष्ठ कहे गए हैं। शिव पुराण में शिव, विष्णु पुराण में विष्णु… संप्रदायों में भी कुछ अनभिज्ञ लोग एक भगवान को दूसरे से श्रेष्ठ बता कर झगड़ते रहते हैं।
जो हम नहीं जानते, या नहीं समझते वह यह है कि चाहे तुम राधा नाम जपो, चाहे कृष्ण, चाहे राम, चाहे शिव, अंततः सब एक ही हैं। आप किसी भी महात्मा से चर्चा करें, उन्हें सुनें या पूछें तो वो हँस देंगे कि क्या पूछ रहे हो। आप किशोरी जी के नाम जप में लीन महात्मा से पूछिए कि क्या हम राम का नाम जपें, तो वो बोलेंगे कि किशोरी जी ही राम हैं।
आप राम से जुड़े संप्रदाय के गुरु जी से बात करें कि आप कृष्ण-कृष्ण जपते हैं, पर आपको राम भी अच्छे लगते हैं, तो वो कह देंगे कि कृष्ण ही राम हैं। अब, राम का कृष्ण होना या कृष्ण का राम होना फिर भी समझ में आता है क्योंकि दोनों विष्णु के अवतार हैं, पर राधा जी परमशक्ति स्वरूपा, स्वयं से ही प्रकृति को जनने वाली जब कृष्ण कही जाती हैं, या राम कही जाती हैं तो क्या तात्पर्य है? क्या ऐसा कहने वाले मिथ्या भाषण करते हैं?
पार्वती भी जगदम्बा हैं, सीता जी भी जगद्जननी हैं, राधा जी भी सबकी माता हैं… ऐसी व्याख्याओं का क्या अर्थ है? सब एक ही हैं, सीता ही राधा है, सीता ही पार्वती हैं, राधा ही महालक्ष्मी हैं, महालक्ष्मी ही आदिशक्ति हैं और अंततः सब परमेश्वर की ही अभिव्यक्तियाँ हैं। शिव विवाह से पहले गणेश जी के पूजन का विवरण आता है। कैसे संभव है?
गणेश जी तो शिव के पुत्र हैं, भला वह माता-पिता के विवाह में कैसे पूजे जा सकते हैं? गणेश जी प्रथम पूज्य हैं और उनका अस्तित्व शिव और शक्ति के साथ ही प्रभाव में आता है। पुत्र रूपी गणेश तो केवल उस प्रथम पूज्य पंच देवताओं में से एक की अभिव्यक्ति हैं। इन्हीं सब अभिव्यक्त रूपों में से एक रूप भगवान राम का है।
राम वह हैं जिनके ध्यान में शिव समाधिस्थ होते हैं, उनके चरित्र को स्मरण कर आनंद पाते हैं। देवाधिदेव महादेव से बड़ा वैष्णव और सात्विक कोई नहीं, जिनके साथ सारी तामसिक क्रियाएँ जोड़ी जाती हैं। वह सदैव भगवान राम की साधना में, उनके ध्यान में लीन रहते हैं। क्या चरित्र रचा होगा उनका सृष्टिकर्ता ने कि हर कल्प में उनके दर्शन हेतु शिव मदारी का रूप धर कर दर्शन को आते होंगे!
भगवान राम का चरित्र ईश्वर के लिए भी अनुकरणीय है। कृष्णावतार में बचपन से कृष्ण को अवतारी होने का भान रहता है, परंतु रामावतार में भगवान ने जो भी किया एक सामान्य मानव द्वारा जो किया जा सकने योग्य था, वही किया। भगवान राम बाण चढ़ा कर समुद्र को सुखाने की भी बात करते हैं, तब भी वह किसी सामान्य मानव, उदाहरण के लिए अर्जुन की तरह, अपनी साधना से, विद्या से प्राप्त बाणों का संधान करते हैं।
भगवान राम और माता सीता को, अपने सत्य का ज्ञान सदैव ही था परंतु उन्होंने किसी भी स्थिति में उसे प्रकट नहीं किया। उनका व्यवहार एक साधारण मनुष्य की तरह राह के काँटे के चुभने से ले कर, पत्नी का नाम ले कर पेड़-पौधों से पता पूछने तक में व्यक्त होता है। परंतु क्यों? अवतार ही लिया था तो कृष्ण की तरह होनी को प्रभावित भी तो कर सकते थे?
भगवान कृष्ण ने सभा में विराट रूप दिखाया, महाभारत के हर दाव बताते रहे, सारथी बन कर भी मार्गदर्शन किया। परंतु राम कभी भी सूर्य को सुदर्शन से ढँकने का, या अर्जुन की आँखें खोलने के लिए गीता उपदेश, विराट रूप जैसा प्रयोग नहीं करते। उन्हें यदि लक्ष्मण की नींद को ले कर चिंता होती है, तो माता सीता जड़ी-बूटी का प्रयोग करती हैं, और राम यज्ञ करते हैं।
निद्रा देवी प्रकट हो कर वरदान देती हैं। राम बताते हैं कि जगत में स्थापित और प्रचलित नियमों के वृत्त में रह कर, ऋषि-मुनियों द्वारा बनाई गई व्यवस्था को मानते हुए आप सब पा सकते हैं। राक्षसों का वध भी किसी अलौकिक क्रिया द्वारा नहीं करते, अपनी धनुर्विद्या से करते हैं। सीता का धनुष भी वो इस कारण नहीं उठाते कि वो नारायण हैं, बल्कि पिनाक राम जैसे मानव का स्पर्श पा कर धन्य हो जाता है।
राम वह हैं जो मानव रूप में आ कर अंततः भगवान हो जाते हैं, जबकि कृष्ण भगवान रूप में ही आते हैं और सबको बता कर रहते हैं कि ‘मैं नरों में नारायण हूँ, मुझे त्रैलोक्य में ऐसा कुछ नहीं, जो अप्राप्य है, पर मैं कर्म कर रहा हूँ’। कृष्ण के लिए दुर्योधन से ले कर पौंड्रक तक ने ‘छलिया’ या ‘मायावी’ का प्रयोग किया है। इससे कृष्ण छोटे नहीं हो जाते, मैं केवल दोनों ही रूपों में परमेश्वर के अवतार का उद्देश्य बता रहा हूँ। राम ही कृष्ण हैं, राम ही राधा हैं, राधा ही श्याम हैं, श्याम ही राम हैं।
राम अनुकरणीय हैं क्योंकि राम जो करते हैं, वह सब साधारण मानव कर सकते हैं। उन्होंने स्वयं ऐसा प्रवचन नहीं किया है, बल्कि वो ऐसा कर के गए हैं। जो सबके द्वारा नकारे जाते हैं, उन वानर, भालू और रीछों की सेना बना कर चलते हैं। ऊँच-नीच का भाव त्याग कर केवट से ले कर शबरी तक, उनके मनोभाव समान हैं। स्वयं की ही प्रतिच्छाया देख कर, स्वयं को ही तो वो पार उतारते हैं, स्वयं का ही दिया बेर खाते हैं, स्वयं की ही सेना में, स्वयं के नेतृत्व में लड़ते हैं।
राम की महिमा इतनी प्रबल है कि जिस रावण को कई महायुगों तक अपना प्रारब्ध भोगना था, वो भगवान राम के युग में स्वयं को इतना अधिक पापी बना लेता है कि उसका वध करने को राम विवश हो जाएँ। और उस सच्चिदानंद राम के हाथों जिसका भी वध होगा, वह तो परमधाम बैकुंठ को ही जाएगा। रावण को महाज्ञानी से महापापी होने के पीछे यही भाव है जो उसे च्युत करता है, नीचता की पराकाष्ठा तक ले जाता है।
मैं केवल यही कहूँगा कि कलयुग में अपने कर्म करना, माता-पिता-गुरु का सम्मान करना ही मोक्ष का मार्ग है। हम सब कर्मकांड, पूजा, हवन आदि नहीं कर सकते क्योंकि समय और परिस्थितियाँ भिन्न हैं। तब भी ‘कलियुग केवल नाम अधारा’ की शरणागति कीजिए और जो भी करते हैं, उससे समय निकाल कर, या संभव हो तो कार्यों के निष्पादन के दौरान भी, ‘सीताराम’, ‘राधेश्याम’, ‘हरे कृष्ण’, ‘हरे राम’, ‘राधा-राधा’, ‘राम-राम’, ‘शिव-शिव’ या जिस भी इष्ट की आप आराधना करते हैं, दिन में पाँच बार भी कर लेंगे तो उत्तम होगा।
रामनवमी की बधाई हो। जय श्री राम!
साभार:अजीत भारती