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भारत का गणतंत्र बनाम किसानों की ट्रैक्टर रैली

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
गणतंत्र दिवस देश का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है,जिसे हम दूसरे देश के प्रमुख को बतौर अतिथि बुलाकर हम संपन्न करते है । पर इस बार कोविड के कारण ब्रिटेन के प्रधानमंत्री नहीं आ पा रहे है । आज के दिन राष्ट्रपति तिरंगा फहराते है । हमारे देश के राष्ट्रपति आज तीनों सेनाओं की सलामी लेते है । देश की तीनो सेनाएं आज राजपथ पर जहां मार्च करती है, वहीं तीनो सेनाओं मे उपयोग होने वाले अस्त्रों तथा शस्त्रों की नुमाईश भी होती है।  इस साल राफेल भी इस प्रदर्शन का हिस्सा होने वाला है । इस परेड मे जिसका भी चयन होता है वह अपने को गौरवान्वित महसूस करता है । देश के बहादुर बच्चे इस परेड मे शामिल होते है । सेना के बहादुर सैनिकों में से जो सैनिक शहीद हो जाते है तो उनके परिवार के लोगों को पदक देकर सम्मानित किया जाता है । हर प्रदेश की झांकिया आकर्षण का केन्द्र रहती है । इस साल तो राममंदिर की झांकी का भी लोगों का इंतजार है। 
पर दुर्भाग्य से लोकतंत्र के नाम से गनतंत्र के सहारे जिस तरह ट्रेक्टर रैली का समानांतर आयोजन हो रहा है वह दुखद है । वाह भई! गरीब किसान की तारीफ करनी होगी कि पचास हजार ट्रेक्टर रैली के आयोजन की क्षमता रखते है । वहीं कुछ किसान नेता इस तरह की रैली का आयोजन कर अपना सीना चौड़ा करना चाहते हैं। जब से मोदी जी की सरकार बनी है तब से विरोध का तरीका एक तरह से ब्लैक मेल करने के जैसा हो गया है । मानना पड़ेगा किसी पर भी विश्वास नही है। इस रैली के लिए इस आंदोलन के लिए कहां से पैसा आ रहा है ? यह वहीं  संपन्न लोग है जिन्होंने रैली के लिए करोड़ों रूपये बर्बाद कर दिए होंगे। पर किसी गरीब किसान, जिसके बारे मे मालूम है कि वह परेशानी मे है, तो कभी जाकर सहायता नहीं की होगी । और तो और, अगर उसने आत्महत्या भी की होगी तो झांकने तक नहीं गये होंगे। तब यह लोग उक्त किसान की सहायता के लिए सरकार की तरफ देखने का काम करते है । एक न्यूज चैनल के मुताबिक एक शाही नस्ल का घोड़ा जिसकी कीमत नौ करोड़ रूपये है वो भी शामिल है।और कुछ नहीं, कुछ लोगों का जिद्द तंत्र है यह । यही कारण है कि सिर्फ एक प्रदेश के ही किसान शामिल हो रहे है । विपक्ष की सरकार के किसान भी एक जगह प्रदर्शन कर रहे है । अधिकांश लोगों को इस बिल के बारे मे शायद ही कुछ पता हो। यह लोग सिर्फ भीड़ का हिस्सा बनते हैं । जिस तरह से वार्ता हुई पूरे देश ने देखा, बातचीत सिर्फ एक तरफा ही थी । किसान सिर्फ दो वाक्य “कानून वापस लो” इसी को जेहन मे रखकर बात कर रहे थे । जो किसान पांच साल या सरकार के तख्ता पलटने तक आंदोलन की कसम खाकर आए हैं; फिर आंदोलन कहां से खत्म होने वाला है ?
किसानों का अड़ियल रूख निश्चित रूप से इनके देश के लिए जो नागरिक दायित्व है, उससे यह विमुख हो रहा है, यह दिखाता है । सुरक्षा एजेंसियों की चेतावनी को जिस तरह से ये लोग नजरअंदाज अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहे है । यह गंभीर मसला भी शासन के लिए है । इसके बाद भी शासन की सतर्कता के बाद भी इनके जिद्द मे कहीं कुछ अनहोनी हुई तो पूरी नैतिक जिम्मेदारी इन किसानों और इनके नेताओं की तथा अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले विपक्ष की भी होनी चाहिये। जिम्मेदारियों के समय इनको भागते देखा जा रहा है। जो भी लोग इस आंदोलन के रहनुमा बन रहे,अगर कहीं कुछ भी हुआ तो एक एक बंदे की जिम्मेदारी तय कर पूरा भरपाई करनी होगी। यह सिर्फ बचकानी राजनीति है जिसका हिस्सा किसान बन रहे है । इतना कमजोर विपक्ष जो एक तरफ सरकार को संसद में घेरने मे असफल है तो दूसरी तरफ इस प्रदर्शन पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने मे विफल है । तब इस तरह के आंदोलन की बैसाखी से वो अपनी नैय्या पार करने के लिए बाध्य है । पर यह तय है, भले यह लोग सफल हो जाए, पर देश की जनता को यह आंदोलन असामयिक लग रहा है। 
कुछ नहीं यह शाहीन बाग का पार्ट-2 आंदोलन से ज्यादा कुछ नहीं है। इस देश का किसान कभी भी इतना जिद्दी नहीं रहा कि अपने देश के लिए जो दायित्व है उसे भूल जाए । दुर्भाग्य से यह ऐसे लोग है जो गणतंत्र के मुकाबले अपने गनतंत्र से आयोजित इस ट्रेक्टर रैली को सफल होते देखना चाहते हैं। ऐसे लोगों की मंशा देश भी देख रहा है। यह लोग कितना भी सफल हो जाए पर देश के गणतंत्र के सामने कभी भी सफल नहीं हो पाएंगे क्योकि इस आयोजन के साथ हर नागरिक की भावना जुड़ी हुई है । बस इतना ही ।
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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