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भारतीय बेटियों ने हॉकी की एशियन चैंपियंस ट्रॉफी जापान को 4 -0 से रोंदते हुए अपने नाम की

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
इस बीच एक बड़ी खबर दब कर रह गयी कि भारतीय बेटियों ने कल हॉकी की एशियन चैंपियंस ट्रॉफी अपने नाम कर ली। राँची में हुए फाइनल मुकाबले में भारत ने जापान को 4-0 से हरा कर जीत प्राप्त की। अभी भारत की पुरुष और स्त्री दोनों टीमें एशिया कप विजेता है।

जिस तरह भारतीय क्रिकेट टीम विश्व कप में अपने सारे मैच जीतते हुए आगे बढ़ रही है, उसी तरह लड़कियों की हॉकी टीम भी टूर्नामेंट के सारे मैच जीती है। टूर्नामेंट में भारत की ओर से सबसे अधिक छह गोल बन्दना कटियार ने किया है। यह कहते हुए मुझे भी तनिक अजीब लग रहा है कि इस खिलाड़ी का नाम भी मैं आज ही जान रहा हूँ और वह भी गूगल पर ढूंढने के बाद… गूगल पर जाने के बाद ही पता चला कि सविता पुनिया कप्तानी कर रही हैं। यह देश के राष्ट्रीय खेल के प्रति हमारा रवैया है।

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय हॉकी में एक निरंतरता आई है। कभी विश्व की सर्वश्रेष्ठ हॉकी खेलने वाला भारत बीच के दो तीन दशकों तक सबसे फिसड्डी टीम हो गया था। 1984 से 2016 तक हम ओलंपिक में अंतिम स्थान पर टिकने वाली टीम बन गए थे। 2008 में तो भारत ओलंपिक में क्वालीफाई ही नहीं कर सका था।

पर अब दिन लौटे हैं। पुरुष और स्त्री दोनों टीमें ठीक खेल रही हैं। पदक भी आ रहे हैं। बस नहीं आ रहे तो उनके हिस्से दर्शक नहीं आ रहे। नहीं मिल रही तो उनके खेल को भरपूर चर्चा और प्रशंसा नहीं मिल पा रही। यह ठीक तो नहीं ही है…

हॉकी इंडिया ने विजेता टीम के हर सदस्य को तीन लाख रुपये देने की घोषणा की है। कम लग रहा है न? पर हॉकी इंडिया भी क्या करे भाईसाहब! उसके पास उतने पैसे नहीं। बीसीसीआई क्रिकेटरों को उतने पैसे इसलिए दे देती है क्योंकि हमलोग मैच देख कर उसे पैसे देते हैं। हॉकी हम देखते ही नहीं तो पैसे आएंगे कहाँ से?

पिछले कुछ वर्षों में हॉकी के प्रति सरकार का भी रवैया बदला है। पर अब भी सरकारें हॉकी पर उतना धन खर्च नहीं ही कर रही हैं जितना होना चाहिये। सत्ता भी उन्ही का समर्थन करती है, जिन्हें जनता का समर्थन प्राप्त होता है। लोकतंत्र की यही रीत है भाई…

मैं भविष्य के लिए कोई दावा तो नहीं कर रहा, पर अब पुरुष और स्त्री दोनों टीमों से ओलंपिक गोल्ड और वर्ड कप की उम्मीद की जा सकती है। कुछ वर्ष पहले हम ऐसा सोच भी नहीं सकते थे। तो जो खिलाड़ी हॉकी को उस बुरे दिन से बाहर निकाल कर ला रहे हैं, उन्हें शाबाशी तो मिलनी ही चाहिये न!

मैं यह तो नहीं कह सकता कि हॉकी आने वाले दिनों में क्रिकेट से अधिक लोकप्रिय हो जाएगा। ऐसा सोचना भी हास्यास्पद होगा अभी! पर यह तय है कि हॉकी की लोकप्रियता लौटेगी जरूर… यही टीम इंडियन हॉकी के दिन लौटाएगी, परिश्रम कभी बेकार नहीं जाता।

खैर! हॉकी टीम के साथ साथ हम सब को बहुत बहुत बधाई…

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं )
गोपालगंज, बिहार।

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