www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

भारत ने पिछले दरवाजे से डब्ल्यूटीओ के पीस क्लाज के उपबंध किए लागू

खाद्यान्नों के "न्यूनतम समर्थन मूल्य" MSP निर्धारण पर पड़ सकता है, इनका भारी दुष्प्रभाव

Ad 1

Positive India:5 April 2020:भारत ने पिछले दरवाजे से डब्ल्यूटीओ के “पीस क्लाज” के उपबंध लागू कर दिए है।
कहा जाता है कि शैतान का नाम तथा पहला चेहरा हमेशा बेहद खूबसूरत होता है, कुछ उसी तरह, भारत में पहली बार लागू किये जा रहे *’पीस क्लॉज’,,*
जिसे “शांति उपबंध” के बारे में भी कहा जा रहा है। आईफा (अखिल भारतीय किसान महासंघ) का प्रथम दृष्टया तो यही मानना है कि भले ही सभी को यह लगता हो , कि इसके द्वारा भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में तात्कालिक मदद मिलेगी, जो कि कुछ हद तक सही भी है, किंतु यह भी उतना ही सच है कि इस “पीस क्लाज” यानी शांति उपबंधों में भारत के कृषि क्षेत्र के लिए ढेर सारे दीर्घकालिक “अशांति” के बीज भी छिपे हुए हैं, जिनसे बचने हेतु किसानों को अभी से ही तैयार रहने की आवश्यकता है।

Gatiman Ad Inside News Ad

सरकार को भी यह समझना होगा कि, यह हमारी चिरस्थायी समस्या के स्थाई समाधान की ओर उठाया गया सही कदम बिल्कुल ही नहीं है।
भारत ने गरीबों के लिए घरेलू खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक समर्थन देने को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के शांति उपबंध (पीस क्लॉज) का उपयोग किया है. भारत के किसानों को किसान संगठनों को बिना विश्वास के लिए बिना उनसे कोई चर्चा किए हुए,भारत सरकार ने कोरोना के महासंकट के इस अफरातफरी के दौर में, बिना किसान संगठनों से किसी तरह की चर्चा किए, पूरी खामोशी से यूं कहे कि पिछले दरवाजे से विश्व व्यापार संगठन के शांति समझौते को लागू कर दिया है. ऐसा पहली बार हो रहा है,जब देश इस तरह के विश्व व्यापार संगठन के उपबंधों के अंतर्गत सुरक्षा उपायों का सहारा ले रहा है. भारत ने गरीबों के लिए घरेलू खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से विपणन वर्ष 2018-19 के लिए धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक समर्थन देने को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के शांति उपबंध (पीस क्लॉज) का उपयोग किया है.भारत ने विश्व व्यापार संगठन को सूचित करते हुए कहा है कि 2018-19 में सकल चावल का उत्पादन का मूल्य 43.67 बिलियन डॉलर था, और इस के लिए कुल पांच बिलियन डॉलर की सब्सिडी दी गई. यहां हम ध्यान दिलाना चाहेंगे कि इस मामले में भारत और अन्य विकासशील देशों के खाद्य उत्पादन के मूल्य का अधिकतम 10 प्रतिशत अधिकतम अनुदान सीमा तय की गई है. बता दें कि विश्व व्यापार संगठन का “पीस क्लॉज” विकासशील देशों को कठिन परिस्थितियों में कई प्रकार से तात्कालिक मदद करने , सुरक्षा प्रदान करने का दावा करता है. पर भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश यहां की खेती दिनोंदिन लाभकारी होते जा रही है वहां इस तरह की तात्कालिक राहत को दीर्घकालिक समाधान समझना भविष्य के लिए भारी भूल साबित होगी।

Naryana Health Ad

हम यहां सरकार को याद दिलाना चाहेंगे कि,पीस क्लॉज 2013 में बाली में हुए मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारत ने व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के महानिदेशक रॉबर्टो अज़ीवेडो के प्रस्ताव पर पूरी तरह से असहमती जताते हुए इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, और कहां था कि भारत किसी भी सौदे के लिए तब तक सहमत नहीं होगा, जब तक यह स्पष्ट न हो जाए कि प्रस्तावित अंतरिम समाधान होगा. भारत अपनी खाद्य सुरक्षा योजना को अपनी जनसंख्या के दो तिहाई लोगों को रियायती दर पर खाद्य अधिकार प्रदान करके इसे लागू करना चाहता है. इसे साकार करने के लिए सरकार को किसानों से भारी मात्रा में अनाज की खरीद करना पड़ता है. सरकार एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर अनाज की खरीद भी करती है. और अभी तक सरकार के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण सरकार की सीएसीपी अर्थात कमीशन और एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस निर्धारित करती रही है। अब इस तरह से देश के कृषि उत्पादों विशेषकर खाद्यान्नों का मूल्य निर्धारण विश्व व्यापार के मापदंडों के तहत होगा, क्योंकि कृषि क्षेत्र को दिए जाने वाले अनुदान की मात्रा तथा उत्पादन लागत के निर्धारण में अनुदान की भागीदारी इन दोनों की नकेल अब डब्ल्यूटीओ के हाथ में है।

इन उपबंधों के अंतर्गत अब किसानों को उनकी खेती में खाद्यान्न उत्पादन की वर्तमान वास्तविक लागत व्यय से डेढ़ गुना लाभ प्रदान करने का चिर लंबित वायदा और इसके सूतत्रधार “स्वामीनाथन समिति” की सिफारिशों को डस्टबिन में डालने के अलावा, सरकार के पास और कोई चारा नहीं दिखता .

विश्व व्यापार संगठन विकासशील देशों के लिए उत्पादन के मूल्य के अधिकतम 10% की सब्सिडी कैप निर्धारित करता हैं.अगर भारत उस सीमा को तोड़ता है, उसे WTO Settlement body के विवादों में घसीटा जा सकता है. इन परिस्थितियों में विकासशील देशों को तात्कालिक राहत देने के प्रावधान पीस क्लॉज में रखे गए हैं। और वर्तमान में भारत अपनी वर्तमान खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी को विश्व व्यापार संगठन के विवादों से बचने के लिए इसका सहारा लेने जा रहा है।

पर हमें ध्यान देना होगा कि यह कोई स्थाई समाधान नहीं है ,,यह प्रस्तावित पीस क्लॉज , विश्व व्यापार संगठन के महासचिव द्वारा एक अंतरिम प्रस्ताव है. इसके तहत विकासशील देशों द्वारा वर्तमान में किसानों को सब्सिडी प्रदान करने की अनुमति देना विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के खिलाफ है; इन्हीं कारणों को देखते हुए 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने इन उपबंधों को लागू करने से तौबा करते हुए, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तत्कालीन महानिदेशक रॉबर्टो अज़ीवेदो को बाली में पीस क्लाज पर सहमति देने से मना कर दिया था , तथा दीर्घकालिक समाधान की बात की गई थी।

देश के किसान अपनी सरकारों से यह जरूर जरूर पूछना चाहेंगे, कि फिर 2013 से लेकर अब तक , पिछले 7 वर्षों में आपने ऐसे दीर्घकालिक उपाय क्यों नहीं किए कि , आपको “पीस क्लॉज” जैसे उपबंधो का सहारा लेने के लिए मोहताज होना पड़ा।
क्या इससे वैश्विक बिरादरी में भारत की छवि को धक्का नहीं लगा है?

क्या इससे देश की सारी किसान बरादरी की क्षमता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगा है??
क्या अपने आप को विश्व की 5 महा शक्तियों में गिनाने की तमन्ना रखने वाले महत्वाकांक्षी देश की नाक इससे नीचे नहीं होती है ??
डब्ल्यूटीओ यानि विश्व व्यापार संगठन को हम क्यों नहीं समझा पाते कि भारत की खेती की परिस्थितियां विकसित राष्ट्रों की खेती की परिस्थितियों से नितांत अलग हैं। लगभग 84% किसानों की कृषि जोत की अधिकतम 4 एकड़ अथवा उसे भी कम‌ है और यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि खेती का क्षेत्रफल जैसे बढ़ते जाता है वैसे ही फ़सल का कृषि लागत मूल्य कम होते जाता है। बढ़ती हुई मजदूरी की दर खाद दवाइयां तथा बीजों के दामों में बेतहाशा वृद्धि तथा इसी तरह अन्य भी कई कारक है जिससे कि भारत में कृषि लागत बहुत ज्यादा बढ़ गई है और समर्थन मूल्य पर भी कृषि उत्पादों को बेचने पर किसानों को अपेक्षित आमदनी नहीं हो पा रही है किसानों का सुचारू जीवन निर्वाह करना कि कठिन हो गया है। इन हालातों में पीस क्लॉज के अल्पकालीन अंतरिम राहत हमें कब तक समाधान दे पाएंगे यह सोचना बेहद लाजिमी है। और इस समस्या का हल सरकार बिना देश के किसानों को विश्वास में लिए, अकेले नहीं ढूंढ पाएगी, इस तथ्य तथा सत्य को समझने में देश की सरकारें और कितना साल जाया करेंगी यह तो हमें नहीं पता। लेकिन यह तय है कि, भारतीय खेती और किसानों की अतिशय दयनीय दशा, तथा खेती के दिनों दिन अलाभकारी होते जाने के इन कठिन हालातों में “न्यूनतम समर्थन मूल्य” MSP निर्धारण को न्यायसंगत बनाने, तथा किसानों को दिए जाने वाले जरूरी अनुदान के स्वरूप तथा इसे प्रदान करने की विधियों से जुड़े विषयों के उचित स्थायी समाधान के बारे में सोचना बेहद जरूरी होगा। दूसरी ओर भारत आज एक वैश्विक गांव में बदल गया है और अपने आप को विश्वव्यापी बाजार से भी एकदम अलग-थलग नहीं रख सकता। इन हालातों में या तो हम इंतजार करें कि “विश्व व्यापार संगठन” भी अन्य वैश्विक नियंत्रण कारी संगठनों की भांति धीरे-धीरे कमजोर होता हुआ अप्रासंगिक तथा अप्रभावी हो जावे,,, या फिर सरकार अखिल भारतीय किसान महासंघ तथा देश के संबद्ध सभी किसान संगठनों के साथ सीधा वार्तालाप करे ,, किसानों को विश्वास में ले और उनमें फिर से विश्वास जगाएं । क्योंकि, अंततः एक न एक दिन सरकारों को किसान संगठनों तथा कृषि विशेषज्ञों साथ एवं कृषि से संबद्ध अन्य सभी घटकों के साथ मिल बैठकर इस समस्या का साझा दीर्घकालिक व्यावहारिक समाधान ढूंढना पड़ेगा।

लेखक:राजाराम त्रिपाठी-राष्ट्रीय समन्वयक,
अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा)
rajaramherbal@gmail.com

Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.