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बकवास फिल्मों के दौर में अच्छी फिल्म देखना हैं तो अभिषेक की आई वांट टू टॉक देख लीजिये

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से -

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
कुछ लोगों का सौभाग्य ही उनके जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होता है। कल परसो आईपीएल में अर्जुन तेंदुलकर की तीस लाख रुपये में हुई नीलामी के बाद जो ट्रोलिंग हुई, वह केवल इसी कारण हुई क्योंकि वे एक महानतम खिलाड़ी के पुत्र हैं। लोग उनमें उस सचिन तेंदुलकर को देखना चाहते हैं, जिसके बारे में खुद ही मानते हैं कि अब कोई दूसरा तेंदुलकर नहीं हो सकता। अर्जुन यदि सचिन के बेटे नहीं होते तो शायद बेहतर खिलाड़ी होते…

लगभग यही स्थिति अभिषेक बच्चन की है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अभिषेक अपनी पीढ़ी के श्रेष्ठ अभिनेताओं में से हैं। उन्होंने दर्जनों बार स्वयं को शानदार अभिनेता सिद्ध किया है। युवा, सरकार, गुरु, पा, बिग-बुल, बॉब बिस्वास, दसवीं, और अब ‘आई वांट टू टॉक’… इनमें अभिषेक एक शानदार अभिनेता बन कर उभरे हैं। पर…

आई वांट टू टॉक 5 दिन में केवल 2 करोड़ रुपये कमा सकी है, जबकि हर दर्शक मान रहा है कि फ़िल्म शानदार बनी है। सारे समीक्षकों ने फ़िल्म और अभिषेक के अभिनय को सराहा है। पर बात वही है, दर्शक अभिषेक के नाम पर हॉल तक जा ही नहीं रहे…

सुजीत सरकार की फिल्म है तो कहानी होगी ही। हाँ यह जरूर है कि डायलॉग्स में अंग्रेजी अधिक हो गयी है। शायद उन्होंने बड़े शहरों या मल्टीप्लेक्स वाले दर्शकों को ध्यान में रख कर ही फिल्म बनाई है। आम दर्शकों का फ़िल्म से न जुड़ने का यह भी एक कारण हो सकता है।

अभिनय की बात करें तो अभिषेक शीर्ष पर हैं। एक अति आत्मविश्वास वाला व्यक्ति, जिसे एक दिन पता चलता है कि उसे केंसर है और उसके पास केवल सौ दिन बचे हैं। वह भी तब, जब उसके पास परिवार के नाम पर केवल एक बेटी है, जिससे भी उसके सम्बंध मित्रवत नहीं हैं। आगे उसका संघर्ष है। जीवन के लिए, बेटी के लिए, स्वयं को एक अच्छा व्यक्ति साबित करने के लिए… इस कठिन भूमिका में अभिषेक पूरी तरह फिट बैठे हैं। जैसे जी लिया हो उस रोल को… फिल्म में आधा दर्जन के आसपास रूप हैं उनके, पर कहीं भी कुछ नाटकीय नहीं लगता। वे बांध कर रख लेते हैं जैसे…

तो यदि अतार्किक और बकवास फिल्मों के दौर में सचमुच कोई अच्छी फिल्म देखना चाहते हैं तो अभिषेक की यह मास्टरपीस देख लीजिये। यदि अंग्रेजी वाली समस्या न हो तो मेरा दावा है कि आप निराश नहीं होंगे। हाँ, यदि अभिषेक में अमिताभ को ढूंढने की जिद्द हो तो सुन लीजिये, अभिनय के मामले में अभिषेक उनके ठीक बगल में खड़े हैं।

हाँ, यह बात भी सच है कि अभिषेक अमिताभ के बेटे नहीं होते तो फ़िल्म इंडस्ट्री के श्रेष्ठ अभिनेताओं में गिने जाते…

साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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