विश्व श्रवण दिवस पर आईएमए ने ध्वनि प्रदूषण से होने वाले नुक़सान के बारे में किया आगाह
धुमाल के नाम पर गाड़ियों में ध्वनि प्रदूषक यंत्र लगाये जा रहे हैं।
World Hearing Day 2022 : आईएमए ने रायपुर में विश्व श्रवण दिवस के उपलक्ष में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। रायपुर आईएमए अध्यक्ष डॉ विकास अग्रवाल ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हर वर्ष 3 मार्च को विश्व श्रवण दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश्य लोगों को बढ़ रहे बहरेपन के खतरे के प्रति जागरूक करना है।
विश्व श्रवण दिवस 2022 का विषय है – “जीवन के लिए सुनना, सावधानी से सुनना” (“To hear for life, listen with care”)
आज हर कोई प्रदूषण की बात कर रहा है । बढ़ते आधुनिकीकरण और शहरी जीवन शैली बढ़ते हुए प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। हम हर तरह के प्रदूषण के लिए बहुत गंभीरता पूर्वक विचार करते हैं, परंतु ध्वनि प्रदूषण के बारे में बहुत ज्यादा बात नहीं हो पाती है, जबकि ध्वनि प्रदूषण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर असर डालता है। बढ़ता औद्योगिकीकरण और आधुनिक जीवन शैली ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाने का बहुत बड़ा कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ध्वनि का 55 डेसिबल से अधिक का स्तर मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक है। आज हम जहां निकल जाएं, वहां सिर्फ शोर ही शोर है। चाहे वह ट्रैफिक हो, उद्योग हो, सामाजिक समारोह हो। तेज ध्वनि सभी को परेशान करती है , परंतु उसे कम करने के बारे में गंभीरता पूर्वक कोई पहल नहीं होती।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ध्वनि की तीव्रता का स्तर घर के अंदर दिन में 45 तथा रात में 35 डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए तथा घर के बाहर यह तीव्रता दिन में 55 और रात में 45 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए । चौक चौराहों व ट्रैफिक में यह तीव्रता 70 से 80 डेसिबल और कई बार उससे भी अधिक पाई जाती है ,जो बहुत घातक है । उद्योगों में भी ध्वनि की तीव्रता 75 डेसिबल से अधिक पाई जाती है और सामाजिक समारोह में बजने वाले संगीत, डीजे और धुमाल की तीव्रता तो कहीं अधिक होती है, जो पूरे मकान तक को हिला देती है ।
परंतु अब समय आ गया है कि ध्वनि प्रदूषण के बारे में गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए क्योंकि, एक ओर जहां यह मानव के स्वभाव में परिवर्तन लाती है तो, दूसरी और बहुत सी बीमारियों को पैदा करने का कारण भी है। तेज ध्वनि एक ओर जहां सुनने की क्षमता कम करती जाती है तो, दूसरी ओर मानव स्वभाव में चिड़चिड़ापन और गुस्सा पैदा करती है तथा अनिद्रा का एक बहुत बड़ा कारण है । इन सभी से मानसिक तनाव भी बढ़ता है , कार्य करने की क्षमता भी कम होती है और हिंसक प्रवृति बढ़ती जाती है। विशेषकर बच्चों में याद करने की और किसी भी विषय के ऊपर ध्यान लगाने की क्षमता कम कर देती है और उनके अंदर चिड़चिड़ापन भी पैदा करती है, जो आगे चलकर उनके कैरियर के लिए बहुत घातक होता है । ऐसे बच्चों में डिप्रेशन और आत्महत्या की प्रवृत्ति भी बढ़ती है । यह किसी भी राष्ट्र के भविष्य के लिए बहुत घातक है ।
ध्वनि प्रदूषण की वजह से हाई ब्लड प्रेशर तथा हार्ट अटैक की बीमारियां भी बढ़ सकती हैं। कई बार बच्चों में और बड़ों में भी ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर देखा गया है, जिसमें वे लोग ध्वनि के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं और हल्की सी आवाज भी बहुत तीखी महसूस होती है।
विगत महीनो में लगातार शादी समारोह एवं अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में देखा गया है कि धुमाल के नाम पर गाड़ियों में ध्वनि प्रदूषक यंत्र लगाये जा रहे हैं और उनकी तेज आवाज से कई मरीज परेशान हुए । इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के साथ ही बुजुर्गों पर होता है । लेकिन उपयोग करने वाले इन सबसे वास्ता न रखते हुए लगातार कई जीवन प्रभावित करते रहे हैं । इससे परेशान लोगों के आक्रोश से कई विवाद भी जन्म ले रहे हैं । बड़े होटलों में भी डीजे की आवाज ने आसपास के रहवासियों को परेशान किया ।
सरकार ने ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए कानून बनाए हैं, परन्तु उन पर सख्ती से पालन करने के लिए जो इच्छा शक्ति होनी चाहिए, उसका अभाव है। अस्पताल, शिक्षण संस्थान तथा कोर्ट परिसर के आसपास 100 मीटर की दूरी तक इस तरह की तेज आवाज पैदा करने वाले संसाधनों का उपयोग वर्जित है । पिछले दिनों रायपुर में कई जगह कार्यवाही हुई है, परन्तु कार्यवाहियों के बाद भी धुमाल का उपयोग जरी रहा है । लोग धुमाल का उपयोग करने में पीछे नहीं हटे और धुमाल के मालिकों ने भी समाज में उनके दुश्प्रभाव को नहीं समझा । इसके लिए बेहद ईमानदार प्रशासनिक सख्ती की और उससे भी ज्यादा जनजागरण की आवश्यकता है ।
इसके लिए नागरिकों को भी आगे आना होगा ताकि लोग स्वयं ध्वनि प्रदूषण की गम्भीरता को समझते हुए इसे रोकें और साथ ही अधिक से अधिक पेड़ लगाएं, जो वायु प्रदूषण कम करने के साथ-साथ ध्वनि की तीव्रता को भी कम करने में मदद करते हैं।
ध्वनी प्रदूषण के अलावा कान में विभिन्न प्रकार की बीमारियां होती हैं, जिनकी वजह से भी सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। इन बीमारियों की जल्दी पहचान करना और उसका इलाज करना आवश्यक है । इनमें कान में होने वाले इंफेक्शन प्रमुख हैं । इसके अलावा कुछ जन्मजात बीमारियां भी होती हैं, जिनकी वजह से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। श्रवण में कमी आने पर तुरंत ही विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए और उसका इलाज कराना चाहिए ताकि सुनने की क्षमता पूरी तरह से खत्म ना हो जाए । कान में होने वाला इन्फेक्शन छत्तीसगढ़ में काफ़ी प्रमुखता से पाया जाता है, जिसमें कान से मवाद बहने की शिकायत होती है और कान के परदे में छेद हो जाता है।
जन्मजात बीमारी की वजह से बच्चे जन्म से ही अपनी सुनने की क्षमता खो देते हैं । सभी नवजात बच्चों की सुनने की क्षमता की स्क्रीनिंग करायी जानी चाहिए ताकि, बच्चे की सुनने की क्षमता के बारे में तुरंत पता लग जाए और उसका तुरंत इलाज किया जा सके । यदि इसका इलाज तुरंत नहीं किया जाता है तो, ऐसी स्थिति में बच्चे के बोलने की क्षमता प्रभावित होती है और यदि इलाज देर से कराया जाता है तो अच्छे इलाज के बावजूद भी बोलने की क्षमता सामान्य नहीं हो पाती है और यह कई तरह के मानसिक विकार का कारण बन सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि, बहरेपन और कानों से जुड़ी समस्या से बचने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि, ऊंची आवाज में संगीत सुनना बंद करें तथा सार्वजनिक जगहों में तेज आवाज को काबू किया जाए। यदि आप को सुनने में समस्या हो रही है तो, तुरन्त जांच करायें । अच्छे चिकित्सक से परामर्श लें।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन व कान नाक गला रोग विशेषज्ञों की संस्था AOI रायपुर के द्वारा 3 मार्च को एक वेबिनार का आयोजन भी किया जा रहा है, जिसमें विशेषज्ञ वक्ता अपना व्याख्यान देंगे और लोगों को बहरेपन से बचने के बारे में , ध्वनि प्रदूषण से होने वाले नुक़सान के बारे में विस्तार से बताया जाएगा। इसमें आप सभी नागरिकों से भी आग्रह है कि इन दुष्प्रभावों को देखते और समझते हुए अपनी मौज मस्ती के नाम पर स्वयं के और आसपास के लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न करें । एक पढ़े लिखे समझदार परिवारों कि यह भी पहचान है कि वो इनके उपयोग से दूर रहें और आपसी मेल जोल से त्यौहार मनाएं ।
विश्व श्रवण दिवस प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ विकास कुमार अग्रवाल, अध्यक्ष इंडियन मेडिकल एसोसिएशन रायपुर
डॉ अनिल जैन, अध्यक्ष AOI रायपुर चैप्टर तथा चेयरमैन, हॉस्पिटल बोर्ड, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन रायपुर
डॉ दिग्विजय सिंह, सचिव इंडियन मेडिकल एसोसिएशन रायपुर तथा सह सचिव AOI रायपुर चैप्टर उपस्थित थे।