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अगर वैधानिक आतंकी खोजना हो तो हमें स्वीट टेररिस्ट को क्यों देख लेना चाहिए ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
अरविंद केजरीवाल का मेरे जैसा समर्थक कोई नहीं रहा होगा। ’15 के असेंबली इलेक्शन में आम आदमी पार्टी को 67 सीटें आने पर भी मेरे मन में बहुत खुशी थी। मैं बिल्कुल चाहता था कि भाजपा तमाम राज्यों समेत केंद्र में भी रहे, अलग बात है। लेकिन केजरीवाल को भी कम से कम दिल्ली मिलनी चाहिए।

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जबकि मेरे विचार में कनफ्लिक्ट तब था जब ’14 के लोकसभा में केजरीवाल बनारस पहुंच गए मोदी जी के ही खिलाफ। मैं यहां भी एडजेस्ट कर लिया। मन को समझा लिया और मानस को मोदी जी के पक्ष में कर लिया। केजरीवाल के लिए मेरे पास यहां पर सहानुभूति रह गई। परिणाम भी कुछ ऐसा ही आया। मोदी जी प्रचंड रूप से विजयी हुए।

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मेरा मन अरविंद केजरीवाल के पक्ष में तब भी था जब आम आदमी पार्टी में प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और कुमार विश्वास जैसों ने लोकतंत्र जोहना शुरु कर दिया था। परिणाम है कि आज वह पार्टी एक परिवार की पार्टी बन कर रह गई। तब भी सह लिया जब देखा कि मुफ्त बिजली और पानी देकर पीआर मैनेजमेंट किया जा रहा।

लेकिन जब देखा कि बिहार पहुंच कर लालू यादव जैसे प्रमाणिक भ्रष्टाचारी से गले मिले तब कुछ हजम नहीं हुआ। फ्रीवीज के लिए आपत्ति नहीं रही, लेकिन मोहल्ला क्लीनिक के नाम पर कार्यकर्ताओं को किराए के रूप में हजारों रुपया पहुंचा देना आंखें खोल देने वाले फैक्ट हैं।

बिना पलटे मुझे तब रहा न गया जब पाया कि प्रति मस्जिद इमाम और मुअज्जिनों को ₹22000 मासिक मानदेय दिए जाने लगे तथा राम मंदिर की बात आने पर नानी की कही हुई बातें याद आने लगी। अमानतुल्लाह खान जैसे आतंकवादियों के लिए आप शरणगाह बन गया। अब तो मैं समझता हूं कि यदि कोई वैधानिक प्राप्त आतंकी अगर खोजनी हो तो हमें स्वीट टेररिस्ट(Sweet Terrorist) को देख लेना चाहिए।

अरविंद केजरीवाल(Arvind Kejriwal) की ईमानदारी अथवा गैर भ्रष्टाचारी आचरण ने सियासत का अच्छा बाजार जमाया। लेकिन यहां कीमत जब राष्ट्र बेच कर चुकाना पड़े, तो मैं कहूंगा ये सौदा बहुत महंगा पड़ा। 20000 स्कूली कमरों के दावे अगर गलत भी हैं, 8000 कमरे ही सही, तो भी कौन सी बड़ी बात है? आखिरकार बच्चे तो तालिबान राज अफगानिस्तान में भी पढ़ ही रहे हैं न?

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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