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अगर लालू और राबड़ी के लड़के नहीं पढ़ पाए तो क्या इसमें ब्राह्मणों का दोष है ?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
आरक्षण के पीछे तर्क दिया गया था कि इतिहास में असमानता पूर्ण व्यवहार के कारण जो वर्ग पीछे रह गये हैं उन्हें समाज की मुख्य धारा में बराबरी पर लाया जा सके ।

लेकिन अब उन्हें बँटवारा चाहिए यानी जितनी जिसकी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी ।

कुछ लोग तर्क देते हैं कि ब्राह्मणों ने पिछड़े वर्ग के लोगों को पढ़ने नहीं दिया । अब भला बताइए कि लालू और राबड़ी जैसे मुख्यमंत्री दम्पति के बच्चों को पढ़ने से कौन रोक सकता है फिर भी नहीं पढ़ पाए तो क्या इसमें ब्राह्मणों का दोष है ?

हक़ीक़त यह है कि जिन जातियों के पास अपने जातिगत रोज़गार थे उनके बच्चे पढ़ाई में वक़्त बरबाद नहीं करते थे और अपना परंपरागत हुनर विकसित करते थे । जिनके बाप दादाओं के पास ज़मींदारी थी वे भी शौक़िया ही पड़ते थे । जिन्हें मालूम था कि नहीं पढ़ेंगे तो रोटी के भी लाले पड़ जायेंगे उनके पास पढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था ।

जब पुश्तैनी व्यवसाय ही नेतागीरी हो तो पढ़ लिख कर क्या करना है । संजय गांधी राजीव गांधी बिना पढ़े भी कामयाब रहे । नेहरू परिवार में जवाहरलाल के बाद पहली ग्रेजुएट प्रियंका गांधी हैं ।

लालू जी के तमाम चरवाहा विद्यालय इसीलिए फेल हो गये कि या तो बच्चे मवेशी चरा सकते हैं या पढ़ सकते हैं । दोनों पूर्णकालिक काम हैं । भैंस चराते हुए अगर चरवाहा पढ़ने लगे तो भैंस को पानी में जाने से कोई नहीं रोक सकता ।

बिच्छू के बच्चे अपनी माँ के शरीर को खा खा कर ही पलते हैं और जब अपने अपने हिस्से की माँ खा चुकते हैं तब रोज़ी रोटी की तलाश में निकलते हैं ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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