अगर अयोध्या में आज राम मंदिर बन रहा है तो मुलायम और कल्याण की जोड़ी के कारण ही
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
नरेंद्र मोदी समेत समूची भाजपा मुलायम सिंह यादव(Mulayam Singh Yadav) के निधन के बाद उन के सम्मान में समर्पित है और कार सेवक टाइप दरी बिछाने वाले कार्यकर्ता , फेसबुकिया वीर निरंतर कुढ़ते जा रहे हैं। इसी से लगता है कि भाजपा नेतृत्व और निचले कार्यकर्ताओं के बीच कोई स्पष्ट तालमेल नहीं है। भाजपा नेतृत्व तो मुलायम सिंह यादव के निधन को भी आपदा में अवसर की तलाश में समूचे यादव वोट भाजपा में शिफ्ट कर अखिलेश यादव को सिर्फ़ मुस्लिम वोटरों तक सीमित कर अकेला कर देने की रणनीति पर काम कर रहा है।
लेकिन फेसबुकिया वीर और निचले कार्यकर्ता अभी तक कारसेवकों पर मुलायम द्वारा गोली चलवाने के बुखार में ही धुत्त हैं। इस बुखार से वह निकल ही नहीं पा रहे। भूल जा रहे हैं कि गुजरात में गोधरा का लाभ ले कर समूचे गुजरात के जेहादी मुसलमानों की अकल ठिकाने लगा कर नरेंद्र मोदी बिना ब्रेक के 21 सालों से निरंतर सत्ता में उपस्थित हैं। उन की विजय का सारा दारोमदार ही गोधरा है। गुजरात में मुख्यमंत्री रहने के बाद 8 साल से प्रधानमंत्री हैं। आगे 2024 के चुनाव की पिच भी उन के विजय के लिए तैयार है। क्लियरकट जीत की तरफ अग्रसर है भाजपा। कोई लाख सिर पीट ले , किसी और का कुछ नहीं होने वाला।
बहरहाल भाजपा नेतृत्व जानता है कि मुलायम सिंह नहीं होते तो भाजपा इस समय इस तरह शीर्ष पर नहीं होती। मुसलमानों को ख़ुश करने के लिए अगर मुलायम ने अयोध्या में कार सेवकों पर गोली नहीं चलवाई होती तो हिंदू इस क़दर नाराज़ नहीं होते। कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार नहीं बनती। बाबरी ढांचा नहीं गिर पाता। बाबरी ढांचे के सही सलामत रहते कोई सुप्रीम कोर्ट मंदिर निर्माण के पक्ष में कभी भी कोई आदेश नहीं जारी कर सकता था। नरेंद्र मोदी और भाजपा नेतृत्व इस बात को अच्छी तरह जानता है। जानता है कि मुलायम सिंह यादव के कारण ही यह सब कुछ मुमकिन हुआ।
तो भाजपा मुलायम को पर्याप्त सम्मान दे कर उन के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर रही है। मानसिक रुप से दरिद्र भाजपा के निचले कार्यकर्ता और फेसबुकिया वीर बस बछड़े की तरह उछल-उछल कर कार सेवकों पर गोली चलाई , गोली चलाई की धुन में पस्त हैं। इन अति उत्साहियों को जान लेना चाहिए कि अगर अयोध्या में आज राम मंदिर बन रहा है तो मुलायम और कल्याण की जोड़ी के कारण ही बन रहा है। आज उज्जैन में महाकाल अगर जगर-मगर कर रहा है तो इसी रास्ते हो कर। इस जोड़ी के बनाए रास्ते के कारण। अगर काशी में ज्ञानवापी का मामला यहां तक आ पहुंचा है तो इस में मुलायम भी एक बड़ा फैक्टर हैं। क्या यह भी कोई बताने की बात है। दर्द का हद से गुज़रना भी दवा हो जाता है। ग़ालिब ने लिखा ही है :
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
मथुरा के ख़िलाफ़ कभी बोले क्या मुलायम ?
मुलायम सिंह यादव की इस भूमिका को समझना सब के वश की बात नहीं है। विदुर की भूमिका भी महाभारत में याद करते रहना चाहिए। अगर विदुर ने पांडवों को लाक्षागृह से तुरंत निकल जाने को नहीं कहा होता तो क्या महाभारत भी हो पाता ? कौरवों का नाश हो सकता था ? दुर्योधन मारा जाता क्या ? भाजपा को मुलायम के प्रति सर्वदा कृतज्ञ रहना ही होगा। मुलायम न होते तो आज की तारीख़ में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं होते। भाजपा और नरेंद्र मोदी के विजय की पिच मुलायम सिंह ने इस कारीगरी से तैयार की कि बड़े-बड़े सेक्यूलर चैंपियंस आज भी समझने को तैयार नहीं हैं। लोहिया ने लिखा है ; राम,कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं। मुलायम लोहियावादी थे। लोहिया के स्वप्न को पूरा करने में एक सीढ़ी बन कर मुलायम उपस्थित हुए। कभी इस तरह भी चीज़ों को देखने की आदत डालिए न। दो और दो का जोड़ सर्वदा चार में ही देखने की आदत बिसारिए। दो और दो मिल कर बाइस भी हो जाते हैं। शून्य साथ आ जाए तो कुछ और। सदन के भीतर संख्याबल वाली बात छोड़ दें तो राजनीति को अंकगणित से ही नहीं देखा जाता।
कुछ लोग पक्ष में रह कर ही नहीं , कभी विपक्ष में रह कर भी लड़ाई लड़ते हैं और विजय दिलवा देते हैं। एक समय था कि कांग्रेसी नेता प्रमोद तिवारी अपने भाषण में कहते नहीं थकते थे , रात के अंधेरे में मुलायम और कल्याण मिलते हैं और तय करते हैं कि कितने हिंदू मारने हैं , कितने मुसलमान मारने हैं। गो कि प्रमोद तिवारी मुलायम सिंह के व्यक्तिगत मित्र रहे हैं। पर मुझे तब भी लगता था और आज भी लगता है कि प्रमोद तिवारी ठीक ही कहते रहे थे। मुलायम और कल्याण सचमुच मिले हुए थे। और भाजपा ने बाजी मार ली।
आप याद कीजिए तो पाएंगे कि 1977 में जनता पार्टी की सरकार में कल्याण सिंह स्वास्थ्य मंत्री थे और मुलायम सिंह सहकारिता मंत्री। फिर मुलायम सिंह जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो भाजपा के समर्थन से ही बने। राजनीति सर्वदा शतरंज के खेल से भी ज़्यादा टेढ़ा खेल रही है। राजनीति में संभावना के अनंत द्वार सर्वदा से ही होते रहे हैं। मुलायम के निधन पर श्रद्धांजलियों में एक बात और खुल कर सामने आई है। वह यह कि पूर्व कांग्रेसी और भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी की श्रद्धांजलि बताती है कि भाजपा में वह अब कुछ समय की ही मेहमान हैं। चुनाव आते-आते वह अखिलेश का दामन पकड़ कर सपा ज्वाइन कर लेंगी। मुलायम को बकौल हेमवंती नंदन बहुगुणा वह लाल बहादुर शास्त्री बताते नहीं थक रहीं।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)