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प्रसिद्धि ही यदि पैमाना है, तो क्या दाऊद इब्राहिम और हाफिज सईद को भी नमन करना चाहिए?

- अभिरंजन कुमार की कलम से-

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Positive India:Abhiranjan Kumar:
प्रसिद्धि ही यदि पैमाना है, तो दाऊद इब्राहिम और हाफिज सईद को भी नमन कीजिए।
और फिर जो लोग सुबह उठकर कुल्ला करने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गरियाना शुरू कर देते हैं, उन्हें तो हमें आतंकित करने की कोशिश करने का ज़रा भी हक नहीं है, क्योंकि मोदी जी से ज़्यादा प्रसिद्ध तो समूची दुनिया में कोई और नहीं है। दुनिया के 8 अरब लोगों में से कम से कम 3 से 4 अरब लोग उन्हें जानते होंगे, जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को भी अधिकतम 1 से 2 अरब लोग।

और तो और, आजकल उर्फी जावेद जितनी प्रसिद्ध है, उतने प्रसिद्ध तो जावेद अख्तर भी नहीं हैं। तो क्या किया जाए? प्रसिद्धि को पैमाना बनाकर मुझे ट्रोल करने की कोशिश करने वाले लोग उर्फी जावेद को जावेद अख्तर से श्रेष्ठ मान लेंगे?

क्या आप लोग चाहते हैं कि प्रसिद्धि के लिए मूल्यों, सिद्धांतों और अपने आदर्शों से समझौता कर लूं? हर चौक-चौराहे पर अपने जमीर का सौदा करता चलूँ? एक रात जेएनयू में बंदूक के बल पर देश के टुकड़े-टुकड़े करने का नारा लगाने/लगवाने के आरोपी भी अगली ही सुबह मुझसे ज़्यादा प्रसिद्ध हो गए थे, तो क्या करूं? मैं भी यही सब करूँ?

यह अत्यंत चिंताजनक स्थिति है कि हमारा समाज आज सिद्धों के पीछे नहीं, प्रसिद्धों के पीछे पगलाया हुआ है और गुण-दोष को तार्किक रूप से नहीं देख पा रहा। ये लोग चाहते हैं कि हम भी लेखन और पत्रकारिता की दुनिया के हाफिज सईद या उर्फी जावेद टाइप कुछ बन जाएं।

शर्मनाक! अत्यंत शर्मनाक!!

साभार: अभिरंजन कुमार-(ये लेखक के अपने विचार है)

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