

Positive India:Prayagraj; प्रयागराज संवाददाता:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को तलाक के मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि दोनों पक्ष (पति पत्नी) ने तलाक को स्वीकार कर लिया है, इसलिए अब इस तलाक को (खुला) तलाक माना जाएगा। न्यायमूर्ति डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर व न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत मोहम्मद गुफरान की तरफ से दायर की गई याचिका पर पारित किया है। गौरतलब है कि मोहम्मद गुफरान के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए, 494, 323, 504, 506 एवं दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के अंतर्गत थाना गुरसहायगंज, जिला कन्नौज में दर्ज किया गया है। इसके अलावा मुस्लिम महिला(विवाह के अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 3 और 4 के तहत भी दर्ज किया गया है। याची और उसकी पत्नी हुमा ने एक साथ कोर्ट के समक्ष कहा कि वह अपने मतभेदों को खत्म करना चाहते हैं और दोनों ने तलाक को स्वीकार कर लिया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि जैसा कि दोनों पक्ष मुस्लिम धर्म से संबंधित हैं । दोनों ने तलाक को स्वीकार कर लिया है, इसलिए मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 और मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकार का संरक्षण) अधिनियम,1986 के तहत अब इसे (खुला) तलाक माना जाएगा, लेकिन खंडपीठ ने यह बताने से इंकार कर दिया कि क्या यह तलाक किसी दबाव में तो नहीं मांगा गया या क्या यह एक वास्तविक शिकायत थी और क्या दोनों पक्ष भविष्य में एक-दूसरे के खिलाफ किसी भी मुकदमे में लिप्त न होने का वचन देते हैं। सरकारी अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखते हुए अदालत से कहा कि यह एक निजी विवाद था और यह राज्य के सार्वजनिक मुद्दे या सार्वजनिक नीति को प्रभावित नहीं करता है, इसलिए ऐसे मामले को भविष्य के लिए मिसाल नहीं माना जा सकता है। बहस के दौरान अदालत ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित कई आदेशों का गहन विश्लेषण करने के बाद याचिका को स्वीकार कर लिया और याची के विरुद्ध दर्ज मुकदमे को खारिज कर दिया।
-विशेष संवाददाता प्रयागराज की रिपोर्ट-