रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।। रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको , फलक से रंग , या मुझे रंग दे जमीं से , रे रंगरेज़! तू रंग दे कहीं से ।। छन-छन करती पायल से , जो फूटी हैं यौवन के स्वर ; लाल से रंग मेरी होंठ की कलियाँ, नयनों को रंग, जैसे चमके बिजुरिया, गाल पे हो , ज्यों चाँदनी बिखरी , माथे पर फैली ऊषा-किरण , रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको, यहाँ से रंग , या मुझे रंग दे, वहीं से , रे रंगरेज़ तू रंग दे, कहीं से ।। कमर को रंग , जैसे , छलकी गगरिया , उर,,,उठी हो, जैसे चढती उमिरिया , अंग-अंग रंग , जैसे , आसमान पर , घन उमर उठी हो बन , स्वर्ण नगरिया ।। रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको , सांस-सांस रंग , सांस-सांस रख , तुला बनी हो ज्यों , बाँके बिहरिया , रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।। पग- रज ज्यों , गोधुली बिखरी हो , छन-छन करती नुपूर बजी हो , फाग के आग से उठती सरगम , ज्यों मकरंद सी महक उडी हो ।। रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको , खुदा सा रंग , या मुझे रंग दे हमीं से , रे रंगरेज़ तू रंग दे , कहीं से ।। पलक हो, जैसे बावड़ी वीणा , कपोल को चूमे , लट का नगीना , तपती जमीं सा मन को रंग दे , रोम – रोम तेरी चाहूँ पीना ।। रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको , बरस-बरस मैं चाहूँ जीना ।। :: बी चंद्रकला ,,आई ए एस ।।
,,चुनावी छापा तो पडता रहेगा ,,लेकिन जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाय ,,दोस्तों । आप सब से गुजारिश है कि मुसीबते कैसी भी हो , जीवन की डोर को बेरंग ना छोडे ।।