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मैं यज्ञोपवीत पहनता हूं वो भी पूरी आस्था , निष्ठा और श्रद्धा के साथ ।

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
मुझे यह बताने की अनुमति ज़रूर दीजिए कि मैं यज्ञोपवीत पहनता हूं । पूरी आस्था , निष्ठा और श्रद्धा के साथ । मुझे तमाम मित्रों की तरह अपने यज्ञोपवीत पहनने पर तनिक भी शर्म नहीं आती । मुझे यह यज्ञोपवीत पहनना अच्छा और सम्मान भरा लगता है । मेरा यज्ञोपवीत ; मेरा गुरुर भी है , मेरा संस्कार भी । आप इस से असहमत हैं तो रहिए , अपनी बला से । मेरे माता-पिता ने बहुत मान के साथ मेरा यज्ञोपवीत संस्कार किया था । मैं ने भी अपने बेटे का यज्ञोपवीत संस्कार उसी श्रद्धा , आस्था और मान के साथ संपन्न करवाया है । हमारे घर में , हमारे समाज में यज्ञोपवीत भी एक संस्कार है । जैसे जन्म , और जन्म के बाद निकासन , छट्ठी, बरही , अन्नप्राशन , मुंडन , विवाह और मृत्यु आदि होता है । अगर किसी को इस बात पर ऐतराज और चिढ़ है तो वह उसे अपने पास रखे । यह मेरा व्यक्तिगत भी है और सार्वजनिक भी । इस लिए भी कि मैं हिप्पोक्रेट नहीं हूं ।

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हां , मुझे यज्ञोपवीत तकली से कातने और ब्रह्म गांठ बांधने भी आता है । बहुत मेहनत और तपस्या से इसे सीखा है , किशोरावस्था में ही । सब के वश का नहीं होता यह सीखना । यह कातना और ब्रह्म गांठ बांधना । आप मित्र लोग यह भी जान लीजिए कि सारे यज्ञोपवीत एक जैसे नहीं होते । साधारण गांठ वाले यज्ञोपवीत भी होते हैं । जिसे किसी भी जाति , वर्ग के लोग पहन सकते हैं , पहनते ही हैं । लेकिन यज्ञोपवीत पहन लेने भर से हर कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता । क्षत्रिय , कायस्थ , वैश्य और शूद्र कहे जाने वाले लोगों को भी बड़े जतन से जनेऊ पहनते मैं ने देखा है । इस में कोई हर्ज भी नहीं है । सब की अपनी पसंद , ज़रुरत , निष्ठा और आस्था है । बहुतेरे लोगों को इस की खिल्ली उड़ाते भी बरसों से देखता आ रहा हूं । ठीक है , नहीं पहनना है , मत पहनिए । यह आप का अपना चयन , अपनी पसंद है । लेकिन यह भी जान लेने में नुकसान नहीं है कि यज्ञोपवीत संस्कार समारोहपूर्वक सिर्फ़ ब्राह्मण ही करते हैं और यज्ञोपवीत पहनते हैं , ब्रह्म गांठ वाला यज्ञोपवीत ।

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साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)

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