मानवाधिकार के नाम से देश मे अराजकता का सच
शहीद भगतसिंह और उनके साथियो को इतने बड़े-बड़े बैरिसटर होने के बाद भी देश के नाम से, आजादी के नाम से, उनका किसी ने भी केस नही लिया, जबकि चाहते तो तो फाँसी से बचा सकते थे।
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
विगत कुछ सालो से व्यापार के राजनीति के चलते
देश द्रोह किया जा रहा है । पर एक आम आदमी मूकदशक व मूर्ख बनकर रह गया है । पर ये बंदे सरेआम लूट मचाये हुए है । वही ये राष्ट्रीय दल इन लोगो को पनाह दिये हुए है । हालात ये है कि इनका पूरा वर्चस्व पार्टियो में है ये किसी हाईकमान से कम नही है । ये तारणहार है, पालनहार है । कुछ भी कर लो आड़े वक्त मे ये अपनी संजीवनी का उपयोग करते है। ये देश देख रहा है।
जितने भी बड़े अधिवक्ता है किसी न किसी दल से संबंधित है। पद मे रहते है तो वकालत गौण हो जाती है। न रहे तो राजनीति गौण हो जाती है। दोनो हाथ मे लड्डू है। व्यवसाय के नाम से, इंसाफ के नाम से दुर्दांत अपराधियो को बचाना ये अपना कर्तव्य समझते है। इससे देश को कितना नुकसान होगा इससे इन्हे कोई फर्क नही पड़ता। ये जमात देश के लिए नही अपने लिए जीती है; चाहे स्वतंत्रता के समय रहा हो या आज के समय। इसलिए शहीद भगतसिंह और उनके साथियो को इतने बड़े-बड़े बैरिसटर होने के बाद भी देश के नाम से,आजादी के नाम से, उनका किसी ने भी केस नही लिया,जबकि चाहते तो उन्हें फाँसी से बचा सकते थे ।पर इनकी राजनीति का क्या होता जो ढेर हो जाती ।इन्हे अपना कैरियर महत्वपूर्ण है।
आजादी के बाद भी यही परंपरा स्थापित है । कोई भी दल हो सबका यही हाल है। इन्हे मालूम है कि जिनकी ये पैरवी कर रहे है वो समाज व राष्ट्र के लिए ये घातक है, पर इंसाफ की दुहाई देते हुए ये अपने मकसद में कामयाब हो जाते है। इनका एक ही मूल मंत्र रहता है कितने भी बेगुनाहो को सजा हो जाये पर इनका मुवक्किल निर्दोष साबित होना चाहिए। इसी लिए आज समाज व राष्ट्र मे इनका इतना नाम है। कितना भी बड़ा गुनाह कर लो ये लोग है तो आपको आंच नही आने देंगे ।
राजनीति मे भी यही फंडा रहता है। बड़े ओहदे से नवाजे जाने के बाद जब राजनीति होती है तब इन्ही के केस की चर्चा की जाती है। तब व्यवसाय का पर्दा डालने की कोशिश की जाती है । पर ये आंखो मे धूल झोंकने वाली बात है। अरे, जब ये राजनीति, धर्म व समाज के नही हुए ,जो अपने ही इष्ट देव के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे है, ऐसे बगैरत लोगो से क्या उम्मीद की जा सकती है? इन्हे सिर्फ पैसा चाहिए,वो भला आदमी कहा से देगा ? राजनैतिक लोग अलग किस्म के ही लोग रहते है जो इनकी जरूरत पूरा कर सकते है। वही पार्टियो का हाल ये है कि सत्ता मे रहते हुए इतना दुरूपयोग करते है कि हटने के बाद यही इनके अधिवक्ता रहते है । इसलिए इनकी पूछ परख ज्यादा रहती है । फिर कानूनी लोचे का जमकर फायदा उठाते है । इतिहास गवाह है कि इनके रहते किसी एक को भी सजा नही हुई है । यही कारण है राजनीति मे ईमानदार कार्यकर्ता इनके आगे शहीद हो जाता है । किसी भी पार्टी मे ये औकात नही की इनके खिलाफ कुछ कहे । ये इनके कानूनी सेनापति है । जो इनको भय मुक्त माहौल का वादा करते है । यही आपसी तालमेल करीब करीब छोटे से लेकर बड़े दलो मे है । भविष्य मे भी यही संभावना है । यही कारण है कि लोकतंत्र के नाम से हम नूराकुशती का खेल रोज देख रहे है पर हो कुछ नही रहा है । ये राष्ट्र जान ले ये सुदृढ अदृश्य हाथो के रहते न किसी पार्टी को, न नेता का कुछ होने वाला है । हम लोग इनके रहते हुए जंनतत्र का वहम पालते हुए ऐसे परजीवी लोगो को झेलते रहेंगे, यही आज का कटु सत्य है । राज्य से लेकर राष्ट्र तक ये बेखौफ अपनी राजनीति को अंजाम देते रहेंगे । वही इसमें कुछ लोग मानवाधिकार के हिमायती भी रहते है । देश के सैनिक, पुलिस शहीद हो जाये पर एक भी नक्सली व आतंकवादी को आंच भी नही आनी चाहिए, नही तो ये ईंट से ईंट बजा देंगे ।
मानवाधिकार के नाम से देश मे अराजकता फैलाने के लिए ये तथाकथित सेक्यूलर लोग ही जिम्मेदार है । ये वही लाबी है जिन्होंने एक आतंकवादी के न्याय के नाम से रात को दो बजे उच्चतम न्यायालय को खुलवाया । इनके शह के चलते ही नक्सली व आतंकवादी बेखौफ है । उन्हे मालूम है की उनके रहनुमा उन्हे कुछ होने नही देंगे । सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का ? ये राजनीति के चाणक्य होते है । इनकी नीति ही यह तय करती है इस देश का पी एम कौन होगा ।अमूमन यह लाबी हर दल मे है । यही आज का कटु सत्य है । आम आदमी सिर्फ एक कठपुतली है ।
लेखक: डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)