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हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमाँ क्यूँ हो

-दयानंद पांडेय की कलम से-(लेखनी जो सत्य हुई)

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Positive India: Dayanand Pandey:
हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमाँ क्यूँ हो
यह तो लगभग तय है कि अब कंगना रानावत भाजपा की अगली सांसद हैं। अब वह चुनाव हिमाचल के अपने गृह नगर से लड़ेंगी कि मुंबई से यह देखना शेष है। हो यह भी सकता है कि राज्यसभा में भी बैठ जाएं। क्यों कि 2024 अभी बहुत दूर है। इस लिए भी कि शिव सेना की गुंडई के खिलाफ कंगना सब कुछ दांव पर लगा कर , जिस ताकत और तेवर से रानी झांसी की तरह तन कर खड़ी हुई हैं , सारा रिस्क ले कर कि यह इनाम उन्हें मिलना ही है।

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कंगना ने जिस सख्ती से उद्धव ठाकरे और संजय राउत को उन की ही भाषा में चुनौती दी है , बीते दिनों में कोई खांटी भाजपाई भी नहीं दे पाया है। कंगना ने जिस नंगई से शिवसेना की ईंट से ईंट बजाई है कि शिवसेना की ज़मीन उखड़ गई है। पर इस पूरे तमाशे में जो इस से भी बढ़ कर भी दिलचस्प बात हुई है , वह यह कि तमाम वामपंथी बुद्धिजीवी भी सोशल मीडिया पर अब शिवसेना के साथ खुल कर लामबंद हो गए हैं। कांग्रेस तो शिवसेना की सत्ता में साझीदार है ही , अब वामपंथी भी आ गए हैं। और वामपंथी जिस के साथ आ जाएं , उन का क्या कहना ! कांग्रेस का हश्र लोग देख ही रहे हैं , शिवसेना का देखते चलिए। ग़ालिब शायद इन वामपंथी दोस्तों के लिए ही फरमा गए हैं :

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ये फित्ना आदमी की खाना-विरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमाँ क्यूँ हो।

याद रखिए कि मुंबई में कम्युनिस्टों से निपटने के लिए एक समय इंदिरा गांधी ने बाल ठाकरे को खड़ा किया था। बाल ठाकरे इंदिरा गांधी की ही फसल थे। हिंदुत्व की खेती भी बाल ठाकरे ने कम्युनिस्टों को ठिकाने लगाने के लिए की थी। अलग बात है कि बाद में ठाकरे ने शिवसेना के मार्फत कांग्रेस को भी ठिकाने लगाया।

समय का पहिया देखिए कि अब वही कम्युनिस्ट उद्धव ठाकरे के साथ लामबंद हो गए हैं। रिया चक्रवर्ती मसले पर भी वह शिवसेना के साथ थे। पर बुरका पहन कर। छुप-छुपा कर। लेकिन कंगना रानावत मसले पर वामपंथियों ने यह बुरका भी उतार फेंका है। खुल कर खड़े हो गए हैं , शिवसेना की गुंडई के साथ।

फासीवाद , असहिष्णुता , अभिव्यक्ति की आज़ादी आदि-इत्यादि का सारा गिनती , पहाड़ा और तराना भूल-भाल कर वह लाल झंडे को लंगोट की तरह पहन कर कूद पड़े हैं। इसी लिए ग़ालिब का वह मिसरा ज़्यादा मौजू हो गया है : हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमाँ क्यूँ हो।

साभार: दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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