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हुए हैं राम अब विस्मृत, लगा लक्ष्मण पे पहरा है

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Positive India:Rajesh Jain Rahi:
हुए हैं राम अब विस्मृत, लगा लक्ष्मण पे पहरा है।
छुपी है मंथरा घर में, कहूँ क्या राज गहरा है।

न दसरथ हैं दुखी अब राम के वनवास जाने से,
हुआ अभिमान रावण को पुनः धरती पे आने से।
कुटिलता हो गयी हावी, गरीबी भोगती, मेहनत,
जमानत पर सभी दोषी, शिकंजे में अभी जनमत।
सुने फरियाद कोई क्या, कहोगे दुख भला किससे।

समय कलियुग का है आया,यहाँ मुंसिफ भी बहरा है।
हुए हैं राम अब विस्मृत, लगा लक्ष्मण पे पहरा है।
छुपी है मंथरा घर में, कहूँ क्या राज गहरा है।

दिशाएं मौन हैं साजिश में शामिल हो गए मौसम,
सभी डूबे हैं मतलब में यहाँ अब कौन दे मरहम।
कतारें नागफनियों की गुलाबों में लगा दीमक,
कहाँ हैं पंच बस्ती के, कहाँ बागों की है रौनक।
कहीं कोने में दुबकी हैं कलाएं पृष्ठ काले हैं,
अभी काँटों की है चर्चा समय उसका सुनहरा है।
हुए हैं राम अब विस्मृत, लगा लक्ष्मण पे पहरा है।
छुपी है मंथरा घर में, कहूँ क्या राज गहरा है।

हवा है धूप है लेकिन यहाँ जीवन नहीं मिलता,
ये जंगल है घना लेकिन यहाँ चंदन नहीं मिलता।
यहाँ संपन्न सभी होंगे मुझे स्वीकार है लेकिन,
यहाँ सहयोग वाला ही मुझे दर्शन नहीं मिलता।
चलो चर्चा करें उस शख्स की खामोश बैठा जो,
दुखों का बोझ भारी है बदन उसका इकहरा है।
हुए हैं राम अब विस्मृत, लगा लक्ष्मण पे पहरा है।
छुपी है मंथरा घर में, कहूँ क्या राज गहरा है।

लेखक:कवि राजेश जैन ‘राही’, रायपुर।

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