www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

कैसे आते हैं श्रीराम!

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

laxmi narayan hospital 2025 ad

Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
उस घने वन में एक ओर सीधे सादे भीलों की बस्तियां होतीं थीं, तो दूसरी ओर तपस्वी ऋषियों के आश्रम! प्रकृति द्वारा निर्मित व्यवस्था के अनुसार जीवन यापन करने वाले ये मानव चुपचाप अपनी परम्पराओं के साथ, बिना किसी को नुकसान पहुँचाये जी रहे थे। युग युगांतर से यही उस वन प्रान्तर की व्यवस्था थी।
किन्तु! इधर कुछ वर्षों से सबकुछ बदल गया था। सुदूर दक्षिण में राक्षसी साम्राज्य स्थापित होने के बाद सारी व्यवस्था जैसे तहस नहस हो गयी थी। सभ्य समाज के आसपास यदि असभ्यों का निवास हो जाय तो उनका जीवन पीड़ा से भर जाता है। किसी सभ्य देश के पड़ोसी राष्ट्र में यदि बर्बरों का शासन हो जाय, तब भी उसका मूल्य सामान्य जन को ही चुकाना पड़ता है। वन प्रान्तर के ऋषि और भील लंका में रावण की सत्ता स्थापित होने के बाद मूल्य ही चुका रहे थे।

लंका के राक्षस आते और उनकी संपत्ति छीन लेते। यज्ञों को भंग कर देते, भीलों की बस्ती में आग लगा देते, ऋषियों भीलों को मार कर खा जाते… निरीह जन चुपचाप देखते और रोते रह जाते।
यूँ ही एक दिन युवा ऋषि शरभंग ने देखा, लंका के राक्षसों ने उनके कुछ साथियों की हत्या की और उनका माँस खा गए। पीड़ा से तड़प उठे शरभंग ने अपने हाथों से साथियों की रक्त से सनी अस्थियां उठाईं। वे उनका संस्कार करना चाहते थे, पर मन क्षोभ से भर गया। मुट्ठी में अपने साथियों की हड्डियों को दबाए अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा कर चीख पड़े ऋषि- ईश्वर! क्या यही हमारे तप का फल है? क्या अब भी नहीं आओगे तुम? तो सुनो! जबतक तुम स्वयं नहीं आते, यह ब्राह्मण यूँ ही अस्थियां बटोरता रहेगा…

युगों बीत गए। महर्षि शरभंग वृद्ध हो गए। उनके आश्रम के सामने ऋषियों और भीलों की अस्थियों का पहाड़ खड़ा हो गया था। किन्तु वह महान तपस्वी जानता था कि प्रभु आएंगे।
और एक दिन! पत्नी और भाई के साथ वन में घूम रहे उस निर्वासित राजकुमार को देख कर विह्वल हो उठे ऋषि ने कहा- अब चलता हूँ राम! बस तुम्हे निहार भर लेने के लिए रुका था। पर मेरे जाने के बाद देख लेना राक्षसी अत्याचारों का वह विराट प्रमाण, जो मैंने अपने हाथों से इकट्ठा किया है।

राम ने उन्हें रोकना चाहा, पर वे नहीं रुके। कहा, “मेरी मृत्यु तुम्हे हमारी पीड़ा का स्मरण दिलाती रहेगी राम! तुम्हे याद रहे कि राक्षसी अत्याचारों से त्रस्त शरभंग ने तुम्हारे सामने अपना दाह किया था। तुम्हे याद रहे कि तुम्हे पाने के लिए संसार ने कितनी प्रतीक्षा और कैसी तपस्या की है। मेरा कार्य पूर्ण हुआ। मुझे न रोको देव! मुझे मुक्ति दो… अब तुम हो और सामने है वह अस्थियों का ढेर! न्याय करो योद्धा! नया करो देव!
शरभंग ने आत्मदाह कर लिया। शोक में डूबे राम आगे बढ़े तो देखा अस्थियों का ढेर… उनका शोक भयानक क्रोध में बदल गया। जगतकल्याण के लिए अवतरित हुए उस महापुरुष ने अपना कोदंड हवा में लहराया और गरजे- मैं दाशरथि राम! जब तक संसार से समस्त राक्षसों का नाश नहीं कर देता, तबतक चैन से नहीं बैठूंगा…”
राम यूँ ही नहीं आते। उनके आने के पीछे जीवन भर अस्थियां बटोरने वाले किसी शरभंग की तपस्या होती है।

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

Leave A Reply

Your email address will not be published.