Positive India:Dayanand Pandey:
हे तुम
अब तुम्हीं बता दो न
इस नए साल पर मैं तुम्हें बधाई कैसे दूं
किसी पक्षी की तरह
प्रेम के आकाश में उड़ कर
या धरती पर किसी आवारा बादल की तरह
रिमझिम-रिमझिम बरस कर
या ऐसे जैसे बरसे कोई सपना
फुहार बन कर
घर में जैसे बेटी पुकारती है
पापा!
बहुत पुलक कर
जैसे कोई तितली
हौले से बैठे
किसी फूल पर फुदक कर
ओस जैसे टपक कर गिरती है
किसी पत्ते पर
और लरज कर
गिर जाती है किसी दूब पर
बेपरवाही में जैसे बेटा
झूमता है किसी गीत पर
और नाचता है किसी तेज़ धुन पर
हे तुम
अब तुम्हीं बता दो न
इस नए साल पर मैं तुम्हें बधाई किस रूप में दूं
या फिर अम्मा गुहराती है
ए बाबू !
ममत्व में सन कर
या फिर पत्नी निहारती है
कभी प्यार में , कभी गुस्से में
हुमक कर
या फिर जैसे कभी-कभी पिता
बात-बेबात बिगड़ते रहते हैं मेरी नालायकी पर
बुदबुदाते रहते हैं गधा , घोड़ा , नालायक और पाजी
सब से बरज कर
हे तुम
अब तुम्हीं बता दो न
इस नए साल पर मैं तुम्हें बधाई क्या कह कर दूं
इस सर्दी में
जैसे रजाई की तरह गरम हो कर
ज़िंदगी में
सफलताओं-असफलताओं का भरम रख कर
किसी स्वेटर में
बुनाई का फंदा और उस फंदे में एक घर बन कर
या किसी उड़ती हुई चिड़िया की चोच में
चोच भर दाना बन कर
जैसे कोहरे में लिपटी कोई नदी
भाप उड़ाती बहती रहती है
अविरल धारा बन कर
और फिर अचानक उस नदी में
छपाक से कूदती है कोई मछली
दिलचस्प नज़ारा बन कर
हे तुम
अब तुम्हीं बता दो न
इस नए साल पर मैं तुम्हें बधाई क्या बन कर दूं
मस्त मौसम में बहक कर
किसी के प्यार की आग में सुलग कर
किसी चैत में महुआ के बाग़ में महुआ सा मह-मह महक कर
पलाश वन में पलाश सा दहक कर
किसी खिले हुए गुलमोहर के बागीचे में तुम से सट कर
किसी अमराई में कोयल की मीठी तान में लहक कर
किसी सावन-भादो की बरखा की तरह बहुत ज़ोर से बरस कर
किसी ताल के पानी में पसरे सिंघाड़े की लतर में इधर-उधर फंस कर
या फिर ज़रुरत से ज़्यादा मिल गई ख़ुशी में चहक कर
हे तुम
अब तुम्हीं बता दो न
इस नए साल पर मैं तुम्हें बधाई कितना मचल कर दूं
साभार:दयानंद पांडेय