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सात सौ वर्ष के इस्लामी राज में भारत में सनातन धर्म बचा कैसे रहा?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
सोचता हूँ कि लगभग सात सौ वर्ष के इस्लामी राज में भारत में सनातन धर्म बचा कैसे रहा जबकि ईरान में मात्र पंद्रह वर्ष में पारसी धर्म ग़ायब हो गया । ईराक़, सीरिया, तुर्की, मिश्र, लीबिया ,अल्जीरिया ,मोरक्को के मूल धर्म तो नष्ट ही हो गए । थोड़े बहुत यज़ीदी ईराक़ में बचे हुए थे उन्हें आईएसआईएस ने लील लिया ।

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असल में बुतों को तोड़ा जा सकता था पर प्रत्यक्ष देवताओं को नष्ट करना किसी इस्लाम के बस की बात नहीं थी । त्रिपथगामिनी गंगा सनातन धर्म की जीवनरेखा है । पृथ्वीराज की पराजय के बाद कन्नौज में थोड़ा प्रतिरोध हुआ फिर कुछ समय के अंतराल में बख्त्यार ख़िलजी ने बंगाल में लक्ष्मण सेन को पराजित कर गंगा के संपूर्ण मैदान पर क़ब्ज़ा कर लिया ।

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हिंदुओं के हाथ से राजनैतिक सत्ता निकल चुकी थी पर गंगा अभी थी जिसके किनारे छः वर्षों के अंतराल में दो कुंभ मेले अनादि काल से आयोजित होते आ रहे थे । मैदानों पर क़ब्ज़ा आसान था पर केदार क्षेत्र के पहाड़ों पर सनातन धर्म की सत्ता बनी रही । भारत भर से तीर्थयात्री बदरी केदार आते रहे । कुछ साहसी कैलाश मानसरोवर भी जाते रहे ।

केरल ज्योतिष का एक ग्रंथ पढ़ रहा था जिसमें हर अच्छे राजयोग का एक फल यह भी बताया जाता था कि जातक को गंगास्नान का पुण्य प्राप्त होगा । भारत छोड़िए सुदूर पूर्वी द्वीप बाली से आज भी हिंदू हरिद्वार स्नान के लिए आते रहते हैं ।

सनातन धर्म के तीर्थों ने और भक्ति आंदोलन ने सनातन धर्म की उस घोर अंधकार युग में भी रक्षा की । भगवान मंदिर से निकल कर भक्त की जिह्वा पर विराजमान हो गये । भक्त बिल्वमंगल गाते हैं, “
सदा मदीये रसनाग्ररंगे गोविंद दामोदर माधवेति ,
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण माधवेति ॥

यह भी आश्चर्य की बात है कि कश्मीर और काँगड़ा जीत लेने वाली फ़ौज गढ़वाल और नेपाल में विजय को तरस गई । केरल में उत्पन्न शंकराचार्य ने भारत के चारों कोनों पर मठ स्थापित किए जो किसी तरह से बचे रह गए । गंगा में अस्थि विसर्जन और काशी और गया जैसे तीर्थ न केवल बचे रहे अपितु सारे भारत से सनातनी तीर्थाटन के लिए भारी कर देकर यहाँ आते भी रहे ।

अंग्रेजों ने तो मंदिरों को तोड़ने जैसी मूर्खता करने की बजाय इन्हें आय का साधन बना लिया । सबसे पहले मद्रास राज्य में हिंदू टेम्पल एक्ट १८४३ अंग्रेज ही लेकर आए ।इस एक्ट द्वारा हिंदू मंदिरों की लूट को क़ानूनी जामा पहना कर इंग्लैंड भेजा जाने लगा । स्वतंत्रता के बाद भी हिंदू मंदिर स्वतंत्र नहीं हो सके । अब वे एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के अधीन हो गए हैं और वह भी इन मंदिरों के धन का उपयोग हिंदुओं के हित में नहीं कर सकता । अब तो राजाज्ञा से हिमाचल के मंदिरों में भजन कीर्तन भी निषिद्ध कर दिया गया है ।

बहरहाल गंगा चाहे जितनी मैली हो गई हो गंगाजल की एक बूँद भी अंतिम क्षणों में मुक्तिप्रदायिनी मानी जाती है और इसकी माँग सारे संसार में है । किसी धर्म में ऐसी पवित्र और पूजनीया नदी दूसरी नहीं है । गंगा जब तक बह रही है सनातन धर्म तब तक रहेगा ।

भगवद्गीता किञ्चिदधीता गंगाजल लवकणिका पीता
सकृदपि येन मुरारि समर्चा क्रियते तस्य यमेन न चर्चा

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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