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मेरे देश ने अपना नायक चुनना कैसे सीख लिया ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
हां, अब मेरे देश ने भी अपना नायक चुनना सीख लिया है।
पंजाब के फ्लाईओवर पर एसपीजी की जिम्मेवारी में सबसे आगे खड़ा कमांडो, जिसकी शक्ल भी ठीक से नहीं दिखती, मुंह पर मास्क लगा है, बावजूद इसके उसकी फोटो लोग अपनी डीपी में लगा रहे हैं। अगर मैं ठीक ठीक कहूं, तो जहां युवान मित्रों के लिए प्रेरणा है वह कमांडो, वहीं नवयौवनाओं के लिए क्रश।

ना कोई उसका नाम जानता है, ना उसके शरीर के सिक्स पैक किसी ने देखे। किसी को उसका घर कहां है, किस जाति-खानदान से ताल्लुक रखता है, नहीं पता। असल बात तो कि उसका नाम भी लोगों को नहीं पता।

एफएनएफ एसॉल्ट राइफल उस कमांडो की पहचान है। जिसके ऊपर रखी हाथों की तर्जनी सिर्फ राइफल के ट्रिगर से 1 इंच दूर, जो उसके कार्य के प्रति उसकी प्रतिबद्धता बताता है। उसकी नजरों में हमारे युवाओं को वह आत्मविश्वास झलकता है, जो बड़े से बड़े संकट में प्रकाश की स्पीड से सुरक्षित कर लेने की क्षमता रखता है। उसके खड़े होने की अदा ही केवल सैंकड़ों प्रोफेशनल अदाकारों को पीछे छोड़ जाता है।

फिक्शन की डिस्क्लेमर के बावजूद खोखले नायक को अपना आदर्श चुनने वाला हमारा एक भारत, अब जिस नए दौर की तरफ संकेत कर चुका है, देख कर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है।

साभार-विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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