Positive India:Vishal Jha:
हर जन्मदिन मोदी जी माँ के आशीर्वाद के लिए सुबह-सुबह गुजरात पहुंच जाते थे। उसके बाद ही दिन का कोई कार्य आरंभ करते थे। 72वॉं जन्मदिन ऐसा नहीं है। यह देश उस माँ का सदा ऋणी रहेगा इसलिए मोदी जी के देशभर के शुभचिंतकों के लिए यह विषय बन गया। मोदी जी आज अपने शुभ दिन का आरंभ कैसे करेंगे?
मोदी जी के तमाम भाषणों में हाल ही में एक बड़ा बदलाव आया है। लोग कह सकते हैं यह बदलाव राजनीतिक रेटरिक् का एक हिस्सा है। शुभचिंतक इसे भाषण का शिष्टाचार भी कह सकते हैं। लेकिन कोई मोदी जी से पूछे वे स्वयं बताएंगे इसका मतलब। पिछले जन्मदिन तक माँ थी। अब माँ नहीं रही। माँ की अनुपस्थिति से कोई भी परिवार निष्प्राण हो जाता है। मोदी जी इसलिए अपने हर भाषण में अब ‘मेरे परिवारजनों’ से संबोधन करते हैं। यह शब्द उनके संबोधन में ऐसा प्रतीत हो रहा जैसे हर सभा में वे अपना छूट गया परिवार तलाश रहे हैं।
कल मध्य प्रदेश के सभा में संबोधन के दरमियान मोदी जी ने कहा कि हर जन्मदिन उनका प्रयास रहता है कि वे माँ के पास जाएं और उनके चरण छूकर आशीर्वाद लें। लेकिन इस बार वे नहीं जा सके और उस सभा में दूर-दूर से आदिवासी समाज और गांव की माताएं उन्हें आशीर्वाद देने आई हैं। इस पंक्ति का अर्थ कौन समझे? बोलने वाला ही समझ सकता है वह क्या बोल रहा है। यह किसी राजनीतिक रेटरिक् का हिस्सा तो नहीं हो सकता तथा भाषण का शिष्टाचार कहने से भी हम वक्ता की भावनाओं को नहीं छू पा रहे हैं।
निजी जीवन हर राजनेता के लिए अलग होता है। नेता चाहे भ्रष्टाचारी हो, वंशवादी हो अथवा माफियाओं का पोषक। लेकिन उसके निजी जीवन में एक वह बात अवश्य होती है जो उन्हें राजनीति से अलग करती है। लालू जी का आडवाणी जी के प्रति निजी व्यवहार की बात हो, अथवा किसी विरोधी राजनेता के पारिवारिक कार्यक्रम में या स्वास्थ्य खराब की स्थिति में मोदी जी के निश्चित उपस्थित हो जाने की बात हो। लोकतंत्र की मर्यादा के नाम पर ही सही, एक अलग तस्वीर तो आती है। ठीक है कि यह किसी नेता के निजी जीवन, निजी परिवार, निजी समाज का विषय है। लेकिन मोदी जी ऐसा करके कौन सी निजता पूरी करते हैं। दरअसल मोदी जी जब सभा में आए माताओं से आशीर्वाद मांगते हैं तो यही उनके अपने निजीपना का हिस्सा होता है। जिसका सियासत से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं होता। यह निजीपना आम समझ के लिए सुलभ नहीं हो सकता।
एक साधारण समाज अपने बच्चों को बड़ा आदमी बनने का ऊंचा लक्ष्य सीखाता है। हर पिता अपने पुत्र को, शिक्षक अपने छात्र को। लेकिन ऐसे लक्ष्य को जब नियोजित किया जाता है, तब ही इस लक्ष्य से साधुता का लोप हो जाता है। और संकल्प किया व्यक्ति सामाजिक तथा आर्थिक रूप से ऊंचा लक्ष्य तो हासिल कर लेता है, लेकिन महानता न हासिल करने की चीज है ना ही लक्ष्य करने का। क्योंकि महान होने की पहली कसौटी यही है उसे अपनी महानता का बोध ना हो। मोदी जी साधारण समाज से निकले एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने शायद कभी प्रधानमंत्री बनने तक का लक्ष्य नहीं नियोजित किया होगा। एक चाय बेचने वाले को इतना बोध आएगा भी कहां से? बस सेवा की उनकी मेधा से अभिभूत होकर नियति ने उन्हें न केवल भारत के हृदय में स्थान दिया है, बल्कि महान् वैश्विक प्रतिष्ठा में भी स्थान दे दिया है। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं मोदी जी।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)