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मनीष गुप्ता हत्याकांड तथा आइएएस मोहम्मद इफ्तिखारउद्दीन ने कैसे उजागर किया सिविल सर्वेंट का स्टील फ्रेम ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
अंग्रेजी गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के सिविल सेवा की नींव पर कार्नवालिस ने ब्रिटिश शासन में ईस्ट इंडिया कंपनी के संरक्षण के लिए अफसरों का एक ‘स्टील फ्रेम’ तैयार किया था।

सरदार पटेल ने हालांकि ‘स्टील फ्रेम’ शब्द का उपयोग किया था। 21 अप्रैल 1947 को दिल्ली के मैटकॉफ हाउस में परिविक्षाधीन सिविल सेवा अधिकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि सिविल सेवक अब अपने अतीत के अनुभवों को छोड़ दें। भारत में लोकतांत्रिक और कल्याणकारी राज्य के आदर्शों को लागू कराएं।

मनीष गुप्ता की हत्याकांड ने लेकिन एक बार फिर साबित कर दिया कि हमारे सिविल सेवकों ने अंग्रेजी स्टील फ्रेम को तोड़ने में कामयाबी हासिल नहीं की। फल मंडी थाना के सब इंस्पेक्टर अक्षय मिश्रा और इंस्पेक्टर जगत नारायण सिंह को भूल जाइए। असल समस्या सिविल सेवकों का स्टील फ्रेम है। सिविल सर्वेंट डीएम और एसएसपी दोनों मिलकर पहुंच गए पीड़िता के घर मामले को दबाने के लिए। सिविल सेवा में अच्छी हस्ती के पद पर बैठे उत्तर प्रदेश के एडीजी प्रशांत कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ‘भागने पर चोट लगने से मृत्यु’ की घटना बताकर मामले को खारिज कर दिया।

कमाल कहिए नए भारत के लोकतंत्र का। प्रशासकों का प्रशासक श्री योगी आदित्यनाथ को शीर्ष पर बैठा रखा है। जो प्रशासन के ब्रिटिश मोड्यूल को तोड़ने के लिए पूरी तरह से जद्दोजहद कर रहे हैं। प्रशासनिक कर्मियों का निलंबन करते हुए जांच समिति बैठा कर परिणाम आने पर सर्विस से डिसमिस करने तक का आदेश दे दिया है। योगी जैसे प्रशासक सरदार पटेल के सपनों वाला लोक कल्याणकारी राज्य के आदर्श को स्थापित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

लेकिन शाबाशी देना चाहता हूं मोहम्मद इफ्तिखारउद्दीन का। जी हां शाबाशी का पात्र है वो। कार्नवालिस की स्टील फ्रेम कुछ नहीं है उसके सामने। धज्जी उड़ा दी उन्होंने। इसके लिए उसके उपर कोई ओवैसी अथवा जिन्ना शासक के रूप में आवश्यक नहीं। एक आईएएस पदाधिकारी होते हुए भी उन्होंने अपने मजहबी प्रैक्टिस को बरकरार रखा। सपा सरकार में कानपुर मंडल का आयुक्त हुआ करता था तब। कानपुर मेट्रो परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के दौरान 60 से ज्यादा गरीबों का धर्म परिवर्तन करा दिया। जमीन वालों को कहता था अगर इस्लाम कबूल कर लो तो जमीन का मूल्य दोगुना तिगुना दिला देंगे। बिना जमीन वालों को कहता था वक्त बोर्ड से जमीन दिला देंगे।

तमाम आलोचनाओं समालोचना के बावजूद भी यह सत्य है कि अंग्रेजी भाषा में उत्तर देने वाले 97% अभ्यार्थियों ने इस बार यूपीएससी की परीक्षा पास की है। सेंट जेवियर्स अर्थात ईसाई मॉड्यूल के कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे शक्ल से तो हिंदू भारतीय रह जाते हैं। किंतु सीरत से इसाई हो जाते हैं। लिहाजा कार्नवालिस के स्टील फ्रेम को तोड़ने के बजाय वे उसके पोषक हो जाते हैं। किंतु ये सिद्धांत इफ्तिखारउद्दीन जैसों पर लागू क्यों नहीं होता। अमीर सुबहानी जैसे आईएएस पर क्यों नहीं लागू होता जो कि 10 वर्षों तक नीतीश कुमार का गृह सचिव बन कर रहा। दोनों ही बिहार के सिवान से हैं। कुख्यात शहाबुद्दीन से इनकी निकटता रही है। सरकारी पैसे से ये लोग सरकारी भवन में ही तबलीगी जमात की बैठक लगाते हैं। फ्रेम चाहे स्टील की हो अथवा लेजर की ये हमेशा अपने प्रैक्टिस को लेकर नियमित रहते हैं।

इसलिए अंतिम तौर पर कहूं तो खामियां किसी तंत्र में बाद में होगी। पहली खामियां हमारी प्रतिबद्धता में है। हमारे प्रैक्टिस में है। हमारा प्रैक्टिस जब राष्ट्रवाद को उन्मुख हो जाएगा तब स्वतः ही हमारा लक्ष्य कल्याणकारी राज और समाज की दिशा में होगा।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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