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सेक्युलरिज्म भारत में कब तक शोभायमान है ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
ईवन सेक्युलरिज्म भी भारत में तभी तक शोभायमान है, जब तक हिन्दू निष्क्रिय है। हिंदुओं के सक्रिय होते ही जैसे काफिराना कयामत आ जाता है। सक्रियता का मतलब यह भी नहीं कि हिन्दू कोई हिन्दू राष्ट्र की मांग करने लगे हैं। सक्रियता का मतलब महज इतना कि बहुसंख्यक भी अब नेहरू-अंबेडकर के संविधान को ही ठीक से क्वोट करने लगे हैं।

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हिन्दू छात्रों ने केसरिया इसलिए नहीं धारण किया कि पंथनिरपेक्ष विद्यालयों का संप्रदायिकरण किया जाए। बल्कि इसलिए कि अब बहुत हुआ, संविधान का एकतरफा अनुप्रयोग। अब यदि मजहब का हिजाब सही तो धर्म का केसरिया भी सही। फिर क्या? प्रशासन से लेकर अदालत तक सारी संस्थाएं निरुत्तर हो गई। फैसले और कार्रवाई तो तुरंत हो जाते यदि मामले को केसरिया डालकर संतुलित ना किया जाता।

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हिजाब वालों को अब तक फाइनली इजाजत मिल गए होते कि उपासना की स्वतंत्रता है। इसमें कैसा संकोच, कानून और संविधान के रखवालों को? फिर भी कहूँगा, विद्यालयों में मजहबी प्रतीकों पर प्रतिबंध को लेकर अब तक कोई फैसला ना देना, अगली तारीख के लिए टालते रहना अदालत का भयभीत होना ही दिखाता है। सुनवाई के लिए मुकर्रर 14 फरवरी को यह मामला आज के लिए टाल दिया गया था। 2:30 बजे से आज सुनवाई है।

तमाम संवैधानिक संस्थाओं की तरफ से देश में क्लियर मैसेज जा रहा है कि जब तक एक बहुसंख्यक वर्ग कायर बन कर रहा, तब तक भारत में कानून और संविधान का एकतरफा राज रहा। जबकि अब संवैधानिक अनुपालना को निष्पक्ष होना ही पड़ेगा।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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