योगी जी का शासन राजनीति को ही एक नए आयाम पर ले जाकर कैसे पैराडाइम शिफ्ट कर रहा ?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
समाजवादी पार्टी ने माफियाओं की लिस्ट जारी करने के नाम पर राजपूत नेताओं की एक लंबी लिस्ट जारी कर दी। निश्चित तौर पर इन नेताओं पर अपराध की एक लंबी फेहरिस्त है। जिसमें आरोप भी है और कनविक्शन भी, जिसमें जमानत भी है और रिहाई भी। और इस तरह की सारी कार्रवाइयों की श्रृंखला पूर्व की सरकारों से ही होती आई है। आज भी हो रही है। अखिलेश यादव ने सोचा होगा, लिस्ट जारी करके योगी जी को बैकफुट लाया जा सकता है।
योगी जी ने 25 माफियाओं की लिस्ट काउंटर में जारी कर दी। अखिलेश यादव की लिस्ट से तकरीबन दोगुनी। अगर आप सोच रहे होंगे कि उनके लिस्ट में केवल यादव होंगे और राजपूत नहीं होंगे, तो आप निश्चित ही योगी जैसे शासक को नहीं पहचानते। उनके द्वारा जारी की गई सूची में हर धर्म हर जाति के लोग हैं। ऐसा कहना ठीक होगा कि अपराधियों में जाति धर्म क्यों देखना? अर्थात उनके द्वारा जारी की गई सूची अपराधियों की सूची है। यह बात अलग है कि योगी जी द्वारा जारी की गई सूची से प्रशासन को अपनी कार्रवाई को लेकर एक बार फिर रिवीजन हो गया है। और इससे अखिलेश जी के मुंह पर चुप्पी छा गई। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम को एक अलग संदर्श से देखने की आवश्यकता है।
राजनीति का एक अपना प्राइवेट जोन होता है। जहां हर प्रकार की मर्यादाएं तार-तार होती है। वहां जाति और संप्रदाय के तमाम पत्ते भुनाए जाते हैं। सारे नियम कायदों को ताक पर रखा जाता है। और राजनीति में विनेबिलिटी को प्रायोरिटी दी जाती है। ऐसा नहीं कि इसका कारण केवल नेता होते हैं। इसके लिए स्वयं जनता भी जिम्मेदार है। जनता यदि जाति और धर्म देखकर चलती है, तो लोकतंत्र की राजनीति करने वाले जाति धर्म की राजनीति को पूर्ण रूप से बाईपास नहीं कर सकते। ऐसा नहीं है कि भाजपा की चुनावी मशीनरी इन गणितों का ख्याल नहीं करती। लेकिन भाजपा के चुनावी गणित और शासन गणित में फरक को योगी शासन के नजरिए से देखिए।
योगी जी का शासन राजनीति को ही एक नए आयाम पर ले जाकर शिफ्ट कर रहा। योगी जी की राजनीति खुले पटल से यह प्रमाणित करके दिखा रहा है, कि जाति और धर्म से ऊपर उठकर भी यदि अपराध पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाएगी, तो भी राजनीति की जा सकती है। ऐसा एक प्रयोग उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में करके दिखाया है। विकास दुबे मंदिर में जाकर सरेंडर किया था। इसके बावजूद योगी शासन ने उसकी गाड़ी पलट दी। एक ब्राह्मण की हत्या का आरोप योगी जी के ऊपर लगा था। और क्या सपा क्या बसपा, तमाम विरोधी दल ब्राह्मण वोट को भुनाने के लिए ब्राम्हण जनसभाएं करने लगी थी। जीत लेकिन योगी शैली की ही हुई।
हर कोई राजनीति जीतने के लिए ही करना चाहता है। यदि तमाम राजनीतिक दलों को यह भरोसा हो जाए कि जाति धर्म से ऊपर उठकर भी सत्ता हासिल की जा सकती है, तो निश्चित ही एक बार वे सभी आजमा कर देखेंगे। योगी जी राजनीति में एक ऐसा ही पैराडाइम शिफ्ट कर रहे हैं। जिस दिन बाकी के दलों को भी योगी जी की राजनीतिक शैली जिताऊ लगने लगेगी, उसी दिन देश में एक नई राजनीतिक युग आएगा और योगी जी ऐसे राजनीति के जनक कहलाएंगे। लेकिन ठहरिए। ये बहुत जल्दीबाजी वाला विमर्श है। योगी जी की राजनीतिक शैली बहुत श्रम मांगता है। श्रम वह भी, तपस्या के स्तर का। और राजनीति एक तपस्या से कम भी क्यों होना चाहिए। न केवल तपस्या बल्कि इसमें त्याग, प्रेम और करुणा भी जोड़ने होंगे। भले हम बाकी के दलों में ऐसी कसौटियों पर नेता उतरने की भविष्य में आशा नहीं कर सकते, ये अलग बात है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)