दवाओं के नाम पर लूट कैसे होती है और उस लूट की छूट कौन देता रहा.?
आप स्वंय तय करिये कि क्या सही क्या गलत है.?
Positive India:Satish Chandra Mishra:
दवाओं के नाम पर लूट कैसे होती है और उस लूट की छूट कौन देता रहा.? आइये जानते हैं उस सच को।
ब्लडप्रेशर की एक दवा है एमलोप्रेस-ऐटी। इसका बाजार मूल्य 82.30 प्रति दस टेबलेट है। अर्थात 8.25 प्रति टेबलेट। इसके विकल्प के रूप में उपलब्ध दवा एमचेक-ऐटी का मूल्य 7.70 रू प्रति टेबलेट है। प्रिमोडिल-ऐटी का मूल्य 6.85 रू प्रति टेबलेट है और एमलिप-ऐटी का मूल्य 6.60 रू प्रति टेबलेट है। लेकिन आप यह जानकर चौंक जाएंगे, स्तब्ध रह जाएंगे कि प्रधानमंत्री मोदी ने 5 वर्ष पूर्व यह व्यवस्था करी कि आम लोगों को यही दवा केवल 35 पैसे प्रति टेबलेट की दर से उपलब्ध हो। आज देश में खुल चुके 7668 जनऔषधि केन्द्रों में जेनरिक नाम से उपलब्ध इस दवा की दस टेबलेट की स्ट्रिप का मूल्य केवल 3.50 रू है। यह अकेली ऐसी दवा नहीं है। ऐसी 600 से अधिक दवाएं बाज़ार में ब्रैंडेड नाम से जिस मूल्य से मिलती हैं उनसे 5 से 15 गुना कम दाम पर जनऔषधि केन्द्रों में उपलब्ध हैं। ऑर्बिटेल-एच नाम की ब्लडप्रेशर की जो दवा मैं स्वयं खाता हूं, उसका बाजार मूल्य 11.50 रु प्रति टेबलेट है। लेकिन जनऔषधि केन्द्रों पर यही दवा केवल 1.50 रुपये प्रति टेबलेट के दाम पर उपलब्ध है। इसी प्रकार शुगर की बहुत मशहूर दवा ग्लिमिपिराइड 2 एमजी जो बाज़ार में अलग अलग ब्रैंड नाम से 25 से 30 रूपये प्रति स्ट्रिप की दर से बिकती है वही दवा जनऔषधि केन्द्रों में 4.02 रूपये प्रति स्ट्रिप की दर से मिलती है।
सिर्फ दवाएं ही नहीं बल्कि महिलाओं बच्चों के सैनिटरी नैपकिन/पैड्स से लेकर 100 से अधिक सर्जिकल आइटम्स भी इन जनऔषधि केन्द्रों पर आपको कई गुना कम दामों पर मिल जाएंगे। इसके लिए केवल इतनी मेहनत आपको करनी पड़ेगी कि जो ब्रैंडेड दवा आप खा रहे हैं उसके सॉल्ट का नाम आप ज्ञात कर लें, जो कि हर दवा के पत्ते पर लिखा रहता है। जैसे कि कॉलपोल या क्रोसिन नाम की बहुत मशहूर ब्रैंडेड दवा के सॉल्ट का नाम पैरासिटामोल है।
जनऔषधि केन्द्र की वेबसाइट से दवाओं की पूरी सूची डाऊनलोड कर के अपनी दवा के सॉल्ट का कोड अगर एकबार आप ज्ञात कर लेंगे तो आपको और अधिक आसानी होगी। (पहले कमेंट में इसकी जानकारी दे रहा हूं)।
अब समझिये नीति और नीयत का खेल।
जनऔषधि केन्द्र खोलने की यह योजना सन 2008 में यूपीए सरकार ने शुरू की थी लेकिन 6 साल बाद मार्च 2014 तक पूरे देश में मात्र 80 जनऔषधि केन्द्र ही खुले थे। लेकिन सितंबर 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने इस योजना को पुनर्जीवित किया और आज साढ़े 5 साल में देश में 7668 जनऔषधि केन्द्र खुल चुके हैं। केवल एक यही तथ्य सब कुछ कह देता है। प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम के बाद दवा इंडिया नाम की एक निजी क्षेत्र की कम्पनी भी जेनरिक दवाओं के व्यापार में पूरी तैयारी के साथ आ चुकी है। देश में इसके 550 से अधिक मेडिकल स्टोर खुल चुके हैं। जनऔषधि केन्द्रों से 10-15% अधिक दामों पर यह जेनरिक दवाओं को ऑनलाइन बिक्री के द्वारा आपके घर तक भी पहुंचा रही है। क्या प्रधानमंत्री मोदी का यह कदम, यह नीति जनता को लूटने के लिए है.?
आज यह सवाल उपरोक्त तथ्यों के साथ इसलिए क्योंकि अमेरीकी कम्पनियों मॉडर्ना और फ़ाइजर की 5 से 6 हजार रूपये प्रति 2 डोज वाली वैक्सीन को भारत में बिक्री की अनुमति देने के लिए पिछले 2-3 महीनों से हंगामा और हुड़दंग कर रहे राजनीतिक दलों और न्यूजचैनलों सरीखे मीडियाई भटियारखानों ने वैक्सीन बनाने वाली दोनों भारतीय कम्पनियों सीरम तथा भारत बायोटेक के विरुद्ध अब इसलिए जहर उगलना शुरू कर दिया है क्योंकि सीरम तथा भारत बायोटेक ने अपनी वैक्सीन का दाम क्रमशः 1200 और 2400 रूपये प्रति 2 डोज घोषित कर दिया है। इन दोनों भारतीय कम्पनियों ने सरकारी अस्पतालों में मुफ्त लग रही वैक्सीन का दाम नहीं बढ़ाया है। उन्होंने अपने नए मूल्य राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों के लिए किए हैं। इस बात पर कांग्रेस सरीखे राजनीतिक दल और न्यूजचैनलों सरीखे मीडियाई भटियारखानों ने उन दोनों भारतीय कंपनियों और देश के प्रधानमंत्री तक पर भद्दे आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं। अतः आप स्वंय तय करिये कि क्या सही क्या गलत है.?
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार)