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जब राजनीति ही भ्रष्ट तो कैसे लगेगी भ्रष्टाचार पर लगाम

राजनेताओं के भ्रष्टाचार का विश्लेषण।

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आज मै पुनः एक अलग विषय व देश की ज्वलंत समस्या “भ्रष्टाचार” जो देश को दीमक की तरह खा रही, पर अपनी बात रखना चाह रहा हूं। विडंबना यह है कि भ्रष्टाचार को लोकतंत्र का गहना मानकर सिर्फ सहेज रहे है । जो भी इसके खिलाफ बोलते है और लड़ते है, उनका अस्तित्व ज्यादा दिन नही रहता । हालात यह हो जाते है कि इस चक्रव्यूह में वो अभिमन्यु की तरह अकाल मौत मारा जाता है । चाहे वो मुरैना का एसपी रहा हो या बिलासपुर का, दोनो शहीद हो गए। या कहा जाए काल के गाल मे समा गए । भ्रष्टाचार का पर्याय जिसको पूरा देश देखता है “श्री खेमका साहब” के ये हाल है कि सरकार किसी भी दल की हो, उनका स्थानांतरण तो निश्चित ही है । उन्हे हर समय महत्व हीन विभाग मे रखने की कोशिश की जाती है ।

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अब पुनः मूल मुद्दे पर। ये दल किसी भी भ्रष्टाचार पर इतने गंभीर कैसे हो जाते है, ये भी एक रहस्य ही है । राजनीति ऐसी चीज है जो अपने स्वार्थ के लिए अपने सगे भाई को मौत के घाट उतारते हुए देखा है इतिहास ने । आज की राजनीति मे यही एक ऐसा अस्त्र  है जिसका उपयोग कर ” हररा लगे न फिटकरी रंग चोखा वाली ” कहावत चरितार्थ हो रही है ।

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सरकार बदलती है तो आम तौर पर नजरिया भी बदल जाता है । इमानदार दिखाई देना वाला बंदा फिर भ्रष्टाचारी नजर आता है । सत्ता हस्तांतरण के बाद सत्ता आसीन वाले दुखी मन से भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना शंखनाद कर लेते है । इतने खुले मन के लोग भारी मन से देशहित मे, प्रदेश हित मे, ये निर्णय लेते है । इसकी वजह से राजनीतिक दलों का जहां एक तरफ भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी कमिटमेंट दिखाई देती है, वही दूसरी तरफ राजनीति का स्पीड ब्रेकर भी अपने आप हट जाता है । कई बार तो दलों मे भी ऐसे हालात बन जाते है । ” काजल की कोठरी मे दाग लागे ही लागे” वाली कहावत राजनीति मे चरितार्थ है । आज तो राजनीति मे प्रवेश का उद्देश्य ही यही रहता है ।

बगैर लाभ के पद में रहने के बाद भी 12 लाख की गाड़ी मे कोई बंदा ऐसे ही नही चलता । ट्रांसफर, किसी का कुछ काम, ये राजनीतिज्ञों के स्थायी रोज़गार मे शामिल है । वसूली पोस्ट पर बैठे लोगों से चंदा न देने से जान से मारने की धमकी उनके लिए आसान है । यह सब लोवर क्लास का भ्रष्टाचार है । फिर तो बड़े नेताओ का, उनके रिश्तेदारो का, जो भ्रष्टाचार किया जाता है वो सब बहुत दिनो बाद खुलता है और उसके तार लंबे दूर उलझे रहते है ।

वैसे भी किसी की भी सरकार हो, राजनेताओं का मकसद कभी भी देश हित के लिए हाथ डालना नही रहता है । उसका मुख्य ध्येय सामने वाले को बदनाम कर राजनीति से ही वनवास कराना रहता है । ये आपस मे बेस्ट फ्रेंड रहते है । पर पुलिस,सीबीआई अगर स्वायत्त होती तो नजारा कुछ और होता । ये तो सरकार का तोता बनकर ही रह जाते है । भला हो राजनीतिक दुश्मनी का जो सबके कच्चे चिट्ठे खोलती है । कद्दावर नेता, अधिकारी और रिश्तेदार जब इनकी भेंट चढते है तो निरीह लगने लगते है ।

” अदालत की सीढ़ीया दुश्मन को भी न चढाये ” । वैसे भी अदालत व अस्पताल के चक्कर से भगवान् बचाये । भ्रष्टाचार की सजा पाकर कई पूर्व मुख्यमंत्री अब सजा भुगत रहे है । बाहर रहते है तो ललकारते रहते है। जब राजनीतिक दांव पेज से बचने का कोई विकल्प नहीं रहता है तब जेल जाने से बचने के लिए गंभीर बिमारीयो का सहारा लेने लगते है ।

कितनी विडंबणा है, जिंदगी भर बड़े बंगलो मे रहने वाले, नौकर चाकर युक्त जिंदगी जीने वाले, जब नाती पोते को खिलाने का समय रहता है, तो जेल के बैरको मे तन्हा रहने को मजबूर हो जाते है । कोर्ट अपना काम करता है, समय लग सकता है पर गलत कामो का अंजाम तो स्वंय को ही भुगतना पड़ता है । जिस दिन इस बात का अहसास होगा, तो डर भी अपने आप आ जाएगा । बड़े लोगो की सजा ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने मे सहायक होगी । जितने बड़े घोटाले के आरोपियों की सजा तय होगी , भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई  की जीत होगी । चलो कभी इसके आगे चलकर और शेयर करूंगा ।          
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर

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