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पूजा की माँ को आत्मदाह की कोशिश करते देख कैसे अखिलेश मुस्कुराते हुए निकल गए?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
राजनीतिक दलों के भी अपने संस्कार होते हैं। असल भाजपा संघ के नेताओं पर सत्ता में रहते हुए महंगाई, बेरोजगारी, राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे को लेकर उंगली उठाई जा सकती है। लेकिन कोई ये नहीं कह सकता कि अमुक मंत्री के सेफ्टी टैंक में एक दलित बेटी की लाश मिली है।

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राजनीतिक दल यदि राजतांत्रिक व्यवस्था का पक्षधर हो, जैसा कि बाप-बेटे में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर भी लड़ाई देखी गई है, तो ऐसे दलों में आप आचरण की पवित्रता का कहां तक उम्मीद लगा सकेंगे? सत्ता कोई भोग विलास की वस्तु नहीं है। सत्ता जिम्मेवारी है, जिसे सात्विक भाव से निभाए जाने चाहिए। पर, जो सत्ता को भोग की वस्तु समझते हैं, वे कहते हैं मैं पहला ऐसा पिता होऊंगा, जिसने अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाया हो। तनिक सोच कर देखिए इस बयान में लोकतंत्र का कितना मान है? फिर ऐसे सत्ताधारियों के कैबिनेट में भी तो कोई सामाजिक अपराधी ही शामिल होगा।

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उस दलित बेटी की मां ने काफिले में अखिलेश यादव की गाड़ी के सामने आ गई और स्वयं पर मिट्टी तेल छिड़ककर आत्मदाह की कोशिश करने लगी। मामला है 24 जनवरी का। अपनी बेटी के न्याय के लिए जान देने को उताहुल उस माँ को देखकर अखिलेश यादव मुस्कुराते हुए अपने काफिले में निकल गए। कहा जाता है वे समाजवाद के नेता हैं।

ऐसे भोगी वंशवादी नेता योगी आदित्यनाथ को उनके संतत्व के लिए कोसते रहते हैं। राजनीतिक गालियां देते रहते हैं। एक खुले मंच से अखिलेश यादव ने तो ‘रण्डुआ’ शब्द भी प्रयोग किया था। ऐसे शब्दों का मैंने भी कभी प्रयोग नहीं किया। ये लोग राज्य की सत्ता संभालेंगे तो सारे राज्य में उपद्रव ही फैलेगा ना? सत्ता तो तपस्या है, जो बस तपस्वियों के लिए ही साध्य है। सत्ता भोगने की वस्तु नहीं, भोगी क्या जाने सत्ता की महिमा?

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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