अगर हिंदुओं की सत्तर साल की उदारता को आपने कमजोरी न समझा होता तो हिंदू पुनर्जागरण का यह दौर शायद कभी न आता
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
मक्का में काबा की भव्यता को आच्छादित करती हुई यह ६०० मीटर ऊँची बिल्डिंग होटल अल अबराज़ की है जो काबा से कुछ ही मीटर की दूरी पर सीना तान कर खड़ी है।
नौशाद आलम को पहले उमरा या हज पर जाना चाहिये । नौशाद आलम बंगाली पर्यटक हैं जिनका वीडियो आज ख़ूब वाइरल हो रहा है जिसमें काशी विश्वनाथ मंदिर की भव्यता के सामने ज्ञानवापी मस्जिद की रौनक कम हो जाने के कारण वह बुक्का फाड़ कर रो रहे हैं ।
आज वह संविधान का हवाला दे रहे हैं मगर यह भूल जाते हैं कि भारत का संविधान हिंदुओं की सदियों पुरानी विश्वबंधुत्व और प्राणिमात्र के प्रति उदारता का दस्तावेज़ है वरना बँटवारा तो धर्म के आधार पर हुआ था और दुनिया की कोई ताक़त भारत को हिंदू राष्ट्र बनने से और मुसलमानों को पृथक निर्वाचन क्षेत्र देने से रोक नहीं सकती थी ।
धर्म के आधार बँटवारा होने के बाद भी हिंदू अपनी पुण्यभूमि पर अपने हज़ारों तीर्थों पर मंदिर तोड़ कर बनाई हुई मस्जिदों को देख कर बर्दाश्त करते हैं । ज्ञानवापी में तो मंदिर को पूरी तरह तोड़ा भी नहीं गया । देख कर लगता है डॉक्टर ने आधा ऑपरेशन करके आँतें लटकी हुई छोड़ दी हों । पंचगंगा घाट पर भव्य विष्णु मंदिर तोड़ कर बनाई हुई आलमगीरी मस्जिद काशी के धवल मस्तक पर काजल का डिठौना सा नज़र आती है । नौशाद मियाँ कभी सोचिए कि हमारे आपके पूर्वज तब कितना रोये होंगे । तब आपके पूर्वज भी शायद हिंदू ही रहे होंगे ।
अगर हिंदुओं की सत्तर साल की उदारता को आपने कमजोरी न समझा होता तो हिंदू पुनर्जागरण का यह दौर शायद कभी न आता । देश हित की बजाय समुदाय हित में वोट देने की नीति ने आपको एक अलग राजनीतिक गुट बना दिया । हिंदुओं के पवित्र स्थलों को आपको स्वयं आगे आ कर छोड़ देना चाहिए था । मगर आप क्या कर सकते थे ? सारी दुनिया में इस्लाम लाने के लिए जद्दो जहद करना आपके ईमान का अंग है ।
रोइये मत नौशाद भाई आपके आँसू बहुत कीमती हैं इन्हें बचा के रखिये और देश के बहुसंख्यक समुदाय के साथ सद्भाव बना कर रखिये ।
याद रखिए नफ़रत सीखनी पड़ती जबकि प्रेम स्वाभाविक होता है ।
साभार:राजकमल गोस्वामी (वाया दयानंद पांडेय)-[ये लेखक के अपने विचार हैं]