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हिंदू-मुसलमान का आइस-पाइस , आरक्षण की मलाई और चुनाव के मायने

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India: Dayanand Pandey:
कोई कुछ भी कर ले भारत में जब तक चुनाव(Election) रहेगा , तब तक हिंदू-मुसलमान(Hindu-Muslim) का खेल और नफ़रत का शोर बंद नहीं होगा। जब तक आरक्षण है , तब तक जातीय घृणा समाप्त नहीं होगी। रामचरित मानस जलता रहेगा। तुलसी गरियाये जाते रहेंगे।

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हमारे संविधान ने ऐसी ही व्यवस्था बना रखी है। हमारे संविधान की महिमा न्यारी है। क्यों कि संविधान की आड़ में , संविधान को बचाने का शोर भी यही नफ़रती तत्व सब से ज़्यादा करते हैं। संविधान तोड़ते रहते हैं , संविधान बचाने का टोटका करते रहते हैं। वह चाहते तो शरिया मुस्लिम पर्सनल लॉ ही हैं पर जहां कोड़े खाने , अंग-भंग आदि की व्यवस्था शरिया किए हुए है उस से बचने के लिए संविधान की ओट लेनी बाध्यता है इन की ।

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ऐसे ही आरक्षण(Reservation )की खीर खाने वाले चाहते तो समानता हैं , सामाजिक समता आदि की मधुर वाणी बोलते हैं पर आरक्षण की खीर अबाध रुप से जारी रहे तो मनुवाद आदि का पहाड़ा पढ़ते हुए रामायण आदि भी जलाते रहते हैं , तुलसी आदि को गरियाते रहते हैं। चुनाव में अपनी जाति की ताक़त बताना भी शग़ल है इन का ।

यह लोग संविधान बचाने का पहाड़ा ऐसे ही पढ़ते हैं , जैसे सारे महाभ्रष्ट और हत्यारे टाइप के अपराधी न्यायपालिका पर हमेशा भरोसा जताते रहते हैं। दरअसल हमारे संविधान की सब से बड़ी खोट यह न्यायपालिका ही है जो अब बेल पालिका में तब्दील है। हिंदू-मुसलमान के आइस-पाइस का खेल और आरक्षण की मलाई ऐसे ही कटती रहेगी।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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