हिंदी दिवस पर हिंदी शब्दों को बचाने का संकल्प लें, शब्द बचेंगे तो भाषा बचेगी
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
संस्कृत नाटक नागानंद पढ़ा तो ज्ञात हुआ कि संस्कृत नाटकों में कुलीन पात्र तो संस्कृत बोलते हैं और सामान्य जन प्राकृत में बात करते हैं । नाटक इसी तरह चलता रहता है । भाषा के कारण व्यवधान नहीं पड़ता । स्पष्ट है कि संस्कृत सदा से व्याकरण बद्ध होने कारण पढ़े लिखे लोगों की भाषा रही है । एक प्रसिद्ध सूक्ति है,
यद्यपि बहुनाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम् ।
स्वजनः श्वजनः मा भूत सकलः शकलः सकृतच्छकृत् ॥
बहुत न पढ़ो तो भी हे पुत्र व्याकरण तो पढ़ ही लो ताकि स्वजन कहीं श्वजन न हो जायें सकल शकल और सकृत को शकृत न बोल जाओ ।
स्वजन – अपने लोग
श्वजन- कुत्ता
सकल – सम्पूर्ण
शकल- टुकड़ा
सकृत- एक बार
शकृत- विष्ठा
संस्कृत में व्याकरण का ध्यान रखना पड़ता है , प्राकृत में यह बाध्यता नहीं है । हिंदी का विकास संस्कृत और प्राकृत के संगम से ही हुआ है । तुलसीदास ने बहुत सुंदर राम स्तुति रची है , श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं । तन्मयता से गाते गाते कब संस्कृत व्याकरण का लोप हो जाता है पता ही नहीं चलता और भजन हिंदी में परिवर्तित हो जाता है । “पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि “ तक आते आते मानहु शब्द आ कर श्लोक को हिंदी छंद बना देता है ।
तुलसी ने मानस में भी ऐसे प्रयोग किए हैं । संस्कृत प्रेम वे छोड़ नहीं पाते और चौपाई की विधा उन्हें हिन्दी प्रयोग करने पर विवश कर देती है ।
हिंदी की धारा आगे बढ़ी तो उसमें अरबी फ़ारसी और तुर्की भाषा की शब्दावली समेटे हुए उर्दू आकर मिल गई । हिंदी की मौलिकता बनाए रखने के आग्रही छायावादी कवियों ने परिमार्जित हिंदी में काव्य रचना करके शुद्ध हिंदी की धारा चला कर हिंदी की अपनी पहचान बनाये रखी ।
लेकिन अब अंग्रेज़ी के सम्मिश्रण ने हिंदी को हिंग्लिश में बदल दिया है । भाषाएँ ऐसे ही सम्मिश्रण के कारण मर ज़ाया करती हैं । दूसरी भाषाओं से शब्द लेने से भाषा समृद्ध होती है पर अपनी भाषा के मूल शब्द खो देने से भाषा मर जाती है । जब नमस्ते नमस्कार की जगह हाय हैलो और भाई की जगह ब्रो स्थापित होगा तो भाषा मरेगी । मेरे देखते देखते कितने ही शब्द हिंदी भाषा में अप्रचलित हो गये ।
लखनऊ में सब्ज़ी वाले से करमकल्ला माँगता हूँ तो मुँह देखने लगता है पुरानी पीढ़ी तो जानती है पर नई पीढ़ी नहीं समझती । हर वर्ष सैंकड़ों शब्द प्रचलन से बाहर होते जा रहे हैं ।
हिंदी दिवस पर हिंदी शब्दों को बचाने का संकल्प लें शब्द बचेंगे तो भाषा बचेगी । संख्या की दृष्टि से हिंदी दुनिया में अंग्रेज़ी और चीनी के बाद सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है । यह अपने सही रूप में संसार के समक्ष पहुँचे तभी इसकी लोकप्रियता सार्थक होगी वरना हिंदी की क्रियाओं और सहायक क्रियाओं पर अरबी फ़ारसी शब्दों के सहारे उर्दू भी हिंदी का ही प्रतिरूप है आगे चलकर हिंग्लिश को ही हिंदी समझा जा सकता है ।
हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ
राजकमल गोस्वामी