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जब पीट-पीट कर उसकी गर्दन तोड़ दी गई वह जिंदा था।

जब उसका हाथ काटकर उसी के बाजू में टांग दिया गया, वह जिंदा था।

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Positive India:तनया प्रफुल्ल गड़करी(द्वारा अमिताभ राजी):
जब पीट-पीट कर उसकी गर्दन तोड़ दी गई, वह जिंदा था।
जब उसका हाथ काटकर उसी के बाजू में टांग दिया गया, वह जिंदा था। प्राणों की भीख मांगते उस निरीह को घेरकर जब वहशी दरिंदे क्रूर अट्टहास कर रहे थे, वह जिंदा था।
लखविंदर… कटे-टूटे शरीर से प्राण बूंद-बूंद कर टपके और वहाँ खड़े हत्यारे हर एक बूंद का स्वाद अपनी आँखों से चख रहे थे! उसकी कमजोर सिसकियों को चटखारे लेते हुए सुन रहे थे!

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जब उस निष्पाप की निर्जीव देह के बगल में “राज करेगा खालसा” के नारे लग रहे थे तब कहीं असली खालसा शर्मिंदा हो रहा होगा… अब भी मन कहता है। आँख मूंदकर किया भरोसा टूटने में कुछ देर तो लगती है ना!

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अमानवीय पीड़ा से तड़पते हुए लखबीर क्या सोच रहा होगा? क्या उसे स्वयं से अधिक अपने 3 नन्हे-नन्हे बच्चों की चिंता नहीं हो रही होगी? 8, 10 और 12 साल के वो मासूम जिनके पिता को भर चौराहे सबके सामने काट डाला गया?
और वह पत्नी जिसने हजारों बार उन्हीं श्रीगुरु ग्रंथ महाराज के आगे मत्था टेककर अपने सुहाग की खुशहाली मांगी होगी.. जिनके अपमान का आरोप मढ़कर उसका सुहाग उजाड़ दिया गया !!!!

बेअदबी! पड़ोस के इलहामी मुल्कों से आयातित शब्द। वैसी ही घृणित बर्बरता, वही वहशीपन। इन भेड़ियों को जब भी मानव रक्त चखने का मन करता है, किसी मासूम मेमने को खींच लेते हैं और बेअदबी का इल्जाम लगाकर ज़िंदा नोंच खाते हैं।

जरा इस मुस्कुराते चेहरे के भोलेपन को देखिए। क्या लगता है कि यह किसी पवित्र ग्रन्थ का अपमान कर सकता है? मीडिया के सामने सीना तान रहे धूर्तों में से एक के भी पास जवाब नहीं है कि बेअदबी मतलब क्या किया! कोई कह रहा है कि निकर में गुरु ग्रंथ साहिब के पास मंडरा रहा था, कोई बोला वहाँ माचिस पड़ी थी , उससे जला भी सकता था… जलाया नहीं था। “सकता था” !!!
कल को तो ये मुझे, आपको, किसी को भी ऐसे ही खींचकर ज़िंदा फाड़ देना चाहेंगे बस मनोरंजन के लिए और कह देंगे कि बेअदबी हुई!
इनके लिए बेअदबी तब नहीं हुई थी जब जलियांवाला बाग के हत्यारे डायर को बाकायदा श्री हरमंदिर साहिब में सम्मानित कर सिरोपा भेंट किया था? बेअदबी तब नहीं हुई थी क्या जब परंपरा से चले आ रहे उदासी महंतों को अपमानित कर गुरुद्वारों से बाहर कर दिया गया था? या तब नहीं हुई थी जब श्री दशमेश के आराध्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को उठाकर फेंक दिया गया था?

देश की सरकार आखिर कब जागेगी? कब तक बहाना बनाएंगे कि खालिस्तानियों की असलियत जनता के सामने लाने के लिए जानबूझकर कोई कार्रवाई नहीं हो रही? अजी जनता इतनी भी मूर्ख नहीं है। इन्होंने विजयादशमी का दिन जानबूझकर चुना है। इनके बयान देख लीजिए- मानो चुनौती दे रहे हों कि हम तो ऐसे ही भारत की अस्मिता का आखेट करेंगे ! बोलो क्या कर लोगे?

इस मुस्कुराते चेहरे से 2 और चेहरे याद आ रहे हैं- पालघर! निर्दोष संतों की मजे ले-लेकर हत्या करने वाली भीड़ अब भी मजे से हर तरफ फल-फूल रही है।

इस कटे हाथ से एक और हाथ याद आ रहा है- नाले में डूबा हुआ, दिल्ली में रहने वाला और देश से प्रेम करने वाला युवा IB अफसर -अंकित शर्मा। क्या हुआ? सबूतों के अभाव में हत्यारे बरी होते जा रहे हैं।

एक के बाद एक के बाद एक…. निर्दोष नागरिकों का शिकार हो रहा है। देश का उत्तरी इलाका बंधक बना पड़ा है। कथित आंदोलन के हिस्सों में संविधान का नहीं इन वहशी गुंडों का, ब्लैकमेलर्स का राज चलता है। चाइना को कवर फायर देना होता है तब ये अंतरराज्य सीमाएँ सील कर बैठ जाते हैं और सेना के वाहन निकालने के लिए इनके आगे सिर और समय खपाना पड़ता है।
अजी अब तो पूरा देश समझ चुका है सरकार! आप भी तनिक समझ लीजिए कि वहशियों के आगे गांधी मार्का बीन नहीं बजाते।
यदि वर्तमान गृहमंत्री से देश न सम्हलता हो तो त्यागपत्र दे दें।
साभार:तनया प्रफुल्ल गड़करी(द्वारा अमिताभ राजी)-ये लेखक के अपने विचार हैं)

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