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मोदी सरकार ने एयरपोर्ट क्या अडानी को बेच दिए ?

यूपीए सरकार 2006 में ही 74% हिस्सेदारी निजी क्षेत्र बेच चुकी थी।

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
मोदी सरकार ने एयरपोर्ट क्या अडानी को बेच दिए ?
दिल्ली बॉर्डर पर पिछले दो ढाई महीनों से किसान आंदोलन के नाम पर हो रहे हुडदंग में भी यह बात बहुत जोरशोर से उछाली जा रही है कि इस सरकार ने देश के एयरपोर्ट अडानी को बेच दिए हैं और अब किसानों की जमीन पर अडानी का कब्जा कराने की तैयारी कर रही है।
बहुत दिनोँ से कई मित्र भी उपरोक्त सवाल औऱ आरोप का जवाब मुझसे पूछ रहे थे। अतः मुझे लगा कि उपरोक्त सवाल का जवाब देने का यही समय उचित है। आइये जानते हैं कि सच क्या है…?
तो सबसे पहले बात उस मुम्बई एयरपोर्ट की जिसे अडानी को बेच देने का अरोप मोदी सरकार पर तब लगा जब पिछले वर्ष सितंबर में हुए एक सौदे में अडानी की कम्पनी अडानी एयरपोर्ट होल्डिंग्स लिमिटेड (AAHL) को मुम्बई एयरपोर्ट की 74% हिस्सेदारी बेच दी गई। इस सौदे पर जमकर यह शोर मचा, हुड़दंग हुआ कि मोदी सरकार अब देश के एयरपोर्ट अडानी को बेचे दे रही है। घोर आश्चर्य एवं शर्म का विषय यह है कि सबसे ज्यादा यह शोर औऱ हुड़दंग कांग्रेस मचा रही है। उसके प्रवक्ता आज भी चीख चीख़कर यह आरोप लगाते रहते हैं। उससे भी अधिक आश्चर्य एवं शर्म का विषय यह है कि न्यूजचैनलों पर जब यह शोर और हुड़दंग होता है तो एंकर/एडीटर चुप्पी साध कर भकुआ बने बैठे रहते हैं।
मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि उपरोक्त सौदे का तथ्य और सत्य यह है कि… मई 2014 मेँ जब मोदी सरकार सत्ता में आयी उस समय मुम्बई एयरपोर्ट में जीवीके ग्रुप की हिस्सेदारी 50.5% थी, बिडवेस्ट कम्पनी की हिस्सेदारी 13.5% औऱ एयरपोर्ट कम्पनी ऑफ़ साऊथ अफ्रीका की हिस्सेदारी 10% थी। यानि मई 2014 में मुम्बई एयरपोर्ट की कुल 74% हिस्सेदारी निजी क्षेत्र के पास ही थी। उसे यह हिस्सेदारी यूपीए सरकार 2006 में ही बेच चुकी थी। केवल 26% हिस्सेदारी भारत सरकार के पास अर्थात एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (AAI) के पास थी। पिछले वर्ष सितंबर मेँ अडानी ने जो 74% हिस्सेदारी ख़रीदी है वो हिस्सेदारी उसने उस जीवीके ग्रुप, बिडवेस्ट कम्पनी औऱ एयरपोर्ट कम्पनी ऑफ़ साऊथ अफ्रीका से ही खरीदी है, जिन्हें यह हिस्सेदारी यूपीए की सरकार बहुत पहले 2006 में ही बेच चुकी थी। अब आप स्वयं यह तय करिए कि… क्या मोदी सरकार देश के एयरपोर्ट अडानी को बेचे दे रही है.? क्योंकि यह कहानी केवल मुम्बई एयरपोर्ट की ही नहीं है। देश के जो चार प्रमुख एयरपोर्ट दिल्ली मुम्बई हैदराबाद बंगलौर हैं उनमें से शेष तीन की कहानी भी बिल्कुल ऐसी ही है।

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1, मई 2014 मेँ जब मोदी सरकार सत्ता में आयी उस समय दिल्ली एयरपोर्ट में जीएमआर ग्रुप की हिस्सेदारी 64%, फ्रापोर्ट एजी की हिस्सेदारी 10% थी। यानि कुल 74% हिस्सेदारी निजी क्षेत्र के पास थी। उसे यह हिस्सेदारी यूपीए सरकार 2006 में ही बेच चुकी थी। केवल 26% हिस्सेदारी भारत सरकार के पास अर्थात एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (AAI) के पास थी।

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2, मई 2014 मेँ जब मोदी सरकार सत्ता में आयी उस समय हैदराबाद एयरपोर्ट में जीएमआर ग्रुप की हिस्सेदारी 63%, मलेशिया एयरपोर्ट होल्डिंग्स की हिस्सेदारी 11% थी। यानि कुल 74% हिस्सेदारी निजी क्षेत्र के पास थी। उसे यह हिस्सेदारी यूपीए सरकार दिसंबर 2004 में ही बेच चुकी थी। अर्थात केवल 26% हिस्सेदारी भारत सरकार के पास थी जिसमें से 13% हिस्सेदारी अब तेलंगाना सरकार के पास है।

3, मई 2014 मेँ जब मोदी सरकार सत्ता में आयी उस समय बंगलौर एयरपोर्ट में जीवीके ग्रुप की हिस्सेदारी 43%, सीमेंस प्रोजेक्ट वेंचर्स की हिस्सेदारी 26%, तथा फ्लूगाफेन ज्यूरिख एजी लिमिटेड की हिस्सेदारी 5% थी।यानि कुल 74% हिस्सेदारी निजी क्षेत्र के पास थी। उसे यह हिस्सेदारी कांग्रेस की यूपीए सरकार जुलाई 2004 में ही बेच चुकी थी। केवल 26% हिस्सेदारी भारत सरकार के पास अर्थात एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (AAI) के पास थी।
यह कहानी बता रही है कि देश के 4 सबसे बड़े और प्रमुख एयरपोर्ट की तीन चौथाई हिस्सेदारी यूपीए सरकार बरसों पहले बेच चुकी थी। लेकिन यह कहानी बहुत लंबी है, इसलिए शेष कहानी फिर किसी दिन किसी अगली पोस्ट में, बहुत जल्दी लिखूंगा। फ़िलहाल इतना जान लीजिए कि मोदी सरकार को मई 2014 में यूपीए की सरकार जिस एयरइंडिया को सौंप कर गयी थी। उसकी Networth उस समय लगभग 50-51 हजार करोड़ थी औऱ उस पर कुल कर्ज़ लगभग 53-54 हजार करोड़ का था तथा हर वर्ष उसे लगभग 5.5 हजार करोड़ का घाटा हो रहा था।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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