Positive India:Gajendra Sahu:
जइसन मानसून हा दच्छिन-पच्छिम हवा ले केरल म खूसर के भारत म बरसा कराथे वइसन छत्तीसगढ़ के हरेलि के तिहार आए ले सब्बो तिहार के आना चालू हो जथे। हरेलि के तिहार छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार हरे जेन ला बरसा रितु म सावन के अमावस के दिन छत्तीसगढ़ म रहवईया मन मनाथे।
ए दिन बिहनिया ले चहल-पहल चालू हो जथे। बिहनिया ले उठके मनखे मन गहिरा घर जरी-बूटी ल लेय बर जाथे। गहिरा मन वो जरी-बूटी ल रतिहा भर ले चुरो के राखे रथे । जरी-बूटी के बलदा म मनखे मन चऊर अउ चना देथे। जरी-बूटी ल पिसान के लोई म डार के ओला गाय-गरूआ मन ल खवाथे एखर ले गाय-गरूआ मन ला बरसात म कहीं-कुछू बीमारी नई होवए।
माई-लोगिन मन हा सूत-उठ के घर के लिपा-बाहरी करथे। घर के सब्बो काम ल करके रोटी-पिथा रांधथे । जे म परमुख चउर पिसान के चिला, गुलगुला भजिया, ठेठरी, खुरमी बनथे। लईका मन घलो मुँधेरहा ले गेड़ी बनाए म बियस्त हो जथे।
अइसन कहिथे के ए दिन टोनहि, भूत-परेत, पिसाच मन अड़बड घूमथे। तेखर सेती मनखे मन अपन घर के दुआर म लीम के डारा ल खोंच देथे। ताकि कोनो भूत-परेत मन घर म मत खुसर जाए।
ए दिन खेती-किसानी करे के अउजार नांगर, कूदारी, गैती, रापा, साबर ल बने माँज धो के अंगना म सजा के रखथे। संगे-संग गाय-गरूआ मन ल घलो बने नहा-धोवा के ओखर मन के अउ अपन कुल देवता के पूजा करथे। अउजार अउ गाय-गरू मन ला गुलाल के टिका लगाके चिला के परसाद चढ़ाथे। गेड़ी के घलो पूजा करथे। फेर सब्बो झन मिल बाँट के रोटी-पिथा खाथे।
सँझिया जूआर गाँव भर के मनखे, माई-लोगिन अउ लइका मन भाँठा म जुरियाथे। भाँठा म रंग-रंग के कारेकरम अउ खेल के आयोजन होथे। माई-लोगिन मन गोटा, फुगड़ी, खो खो खेलथे। टुरा जात मन हा कबबड्डी, रस्साकसी, दउड़-भाग वाला खेल खेलथे। गेड़ी चढ़के लोकनृत्य करथे। गेड़ी दउड़ के घलो आयोजन होथे।
अब तो सरकार दुआरा ए दिन सरकारी छुट्टी घलो दे जाथे। त ए तिहार के रउनक अउ बाड़गे हे।
त अइसन हे हमर पहिली तिहार हरेलि। जेन ल हमन अड़बड़ धूम-धाम अउ उत्साह ले मनाथन।
लेखक: गजेंद्र साहू।