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हिंदू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

राही द्वारा ग़ज़ल-एक कोशिश

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Positive India:Rajesh Jain Rahi:
अब कबूतर चिट्ठियाँ लाते नहीं,
छत पे आशिक भी सभी जाते नहीं।

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जाफ़रानी खत हुए हैं लापता,
डाकिए भी अब नजर आते नहीं।

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प्रेमियों को चाँद की दरकार क्या,
शेर गालिब के उन्हें भाते नहीं।

झील के उस पार उसका गाँव था,
ये कहानी हम भी बतलाते नहीं।

आपसे मिलना, टहलना दूर तक,
दिन पुराने वो पुनः आते नहीं।

फेसबुक का दौर है दुनिया नयी,
फेस सच्चा हम क्यूँ दिखलाते नहीं।

अब ठुमकना साथ में फैशन हुआ,
अब ठहाके दिल को क्यूँ भाते नहीं।

लेखक: कवि राजेश जैन ‘राही’, रायपुर

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