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चिकित्सक दिवस पर सभी चिकित्सकों को हार्दिक बधाई

चिकित्सक दिवस सिर्फ औपचारिकता बनकर न रह जाए।

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
एक जुलाई चिकित्सक दिवस, फिर वह भी कोविड के समय; पहले तो मेरा सभी चिकित्सकों को चिकित्सक दिवस पर बधाई। वहीं आप लोगों के स्तुतय कार्य पर नमन । वहीं उन चिकित्सकों को शत-शत नमन, जिन्होंने अपने कर्तव्यो पर चलकर अपनी जान तक गंवा दी।  ऐसे पूरे देश मे बहुत चिकित्सक है,जिन्होंने अपने जान की फिक्र तक नहीं की । इसलिए हर जगह के चिकित्सक देवदूत बनकर आए । कोरोना ऐसी महामारी है जहां कुछ परिजनों ने भी अपना पल्ला झाड़ लिया पर चिकित्सक बिरादरी ही थी जो गंभीरता के साथ खड़े थे ।

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चलो पर आज जो माहौल है वह काफी ही संवेदनशील है । अब चिकित्सक का मरीजो से वह रिश्ता नहीं रहा। आज यह मानने मे कोई शक नहीं होना चाहिए कि अब चिकित्सक व मरीज का संबंध सिर्फ उपभोक्ता दुकानदार का बनकर रह गया है ।  इसलिए न मरीजों का चिकित्सकों पर वह विश्वास रह गया है,जो अभी तक, आज तक रहता था। वहीं चिकित्सको को भी वैसे मरीज नहीं मिल रहे हैं जो पूर्णतः उस पर विश्वास करते है । संबंधो मे यह हृआस का कारण दोनों तरफ से है ।

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आज वैसे ही इलाज महंगा हो गया है, जहां चिकित्सक चाहकर भी मदद करने मे असमर्थ पाता है । उसको अपने नर्सिंग होम के मैंनटेनेंस के वो खर्च ही उसको भलाई के काम करने मे बाधक बनता है । दूसरे तरफ भी आम लोग भी चिकित्सक के ज्ञान से कम परिपूर्ण  नहीं रहते है । वह चिकित्सकों को ही सलाह देने से नहीं चूकते।  मैने देखा है, प्रेकटिस मे महसूस भी किया है। जो चिकित्सक इंवेसटिगेशन नहीं कराते उन्हे वह ठीक ठाक भी नहीं लगते । जब तक यह लोग सेल्फ ही जांच करवा कर चिकित्सक के पास पहुंचते है । विशेषकर गांव के लोगों मे ही पहले एक्सरे, अब सोनोग्राफी कराने का बहुत शौक रहता है भले उन्हे कुछ न होता हो । वहीं दूसरा आम शौक ताकत के लिए ग्लूकोज चढाने का व ताकत के इंजेक्शन का रहता है । वहीं विशेषकर महिलाओं मे भी गर्भाशय के ऑपरेशन की रूचि क्यो है यह आज तक समझ से परे है। यही कारण है कि पूरी चिकित्सका ही मरीज ही तय करने लगे है । इसलिए नर्सिंग होम भी पूरी तरह से पंच सितारा ही बनने लगे है ।  जहां थोड़ी भी कमी व असुविधा मरीजो को तथा परिजनों को नागवार गुजरती है ।

चिकित्सक कितना भी अच्छा हो, लोग इंफ्रासटरकचर देखकर ही चिकित्सकों का पैमाना तय करने लगे है  । विशेषकर आजकल तो जहां जनरल प्रैक्टिसनर को, फैमिली चिकित्सक को भी लोग नहीं पूछते। थोड़ी भी समस्या हो विशेषज्ञ स्वंय तय कर लेते है । अभी तो जो कोरोना से इतना प्रभावित हुआ है; वह तो सिर्फ सेल्फ मेडिकेशन भी एक कारण है। अभी सोशल मीडिया में स्टेरॉयड के उपर, कोरोना मे इसके रोल और दुष्परिणाम पर बहुत चर्चा हुई।  पर कुछ सज्जनों ने कोरोना मे इसके उपयोग की सलाह भी दे डाली। 

अगर कम खर्च पर चिकित्सा आम लोगों को मुहैया कराना है,तो चिकित्सक दिवस पर उसकी चर्चा लाजमी है । कम ब्याज पर लोन और जमीन पर रियायत किसी भी चिकित्सा व्यवसाय को काफी राहत पहुंचा सकता है । वहीं कुछ कम बोझ के चलते चिकित्सक भी समाज के लिए कुछ करने के लिए, आगे बढने की सोच सकते है । थोड़ा समय मे  भी बदलाव आया है।

पहले चिकित्सा शिक्षा शासकीय हुआ करती थी जिसके कारण बहुत कम खर्च मे ही चिकित्सक बन जाया करते थे । फिर सपने भी छोटे हुआ करते थे।  घर और एक गाड़ी मे ही समाज मे अलग दिखने लगते थे । पर यह पहुंच भी चिकित्सक के बालों को सफेद होने तक ही पूरी हो पाती थी।  अब वहीं यह शिक्षा उधोग के पौधे रोपण जैसे हो गई है। अगर लोन लेकर कहीं करने की कोई सोचता है तो वह बंदा पहले इस ॠण से बाहर होने की पहले सोचता है । वहीं कुछ लोगों के लिए यह व्यवसाय से ज्यादा भी नहीं है।  

खैर इसके बाद भी चिकित्सक समर्पित है। अपवाद कहीं भी पाये जा सकता है।  यही कारण है कि पीपीई किट पहनकर मौत के कुएं मे कूदने के जोखिम जैसे काम कर यह इन लोगों ने दिखा दिया कि यह इनका दूसरे पक्ष को समाज नहीं नकार सकता । यह इतना भी कटु सत्य है कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है।  बस यही इनके साथ हो रहा है । गेंहू के साथ घुन भी दशकों से पिसा रहा है।  पता नहीं यह लोग वह विश्वास फिर से ला पाऐंगे कि नहीं, जो मेरे को मुश्किल सा लगता है । आज तो स्थिति यह है कि अपनी सुरक्षा के लिए अब इन्हे शासकीय नीतियों की आवश्यकता आन पड़ी है ।

वहीं अब लोगो का इंट्रेस्ट नान क्लिनिकल सबजेक्ट पर ज्यादा हो रहा है जिससे लोगों का सामना प्रत्यक्ष न करना पड़े । इतने लंबे उबाऊ कैरियर के बदले कम समय मे ज्यादा आर्थिक लाभ वाले शिक्षा का कैरियर ज्यादा लोग पसंद कर रहे है । जिनके माता पिता चिकित्सक है वह अपने बच्चो को दूसरे तरफ ही जाने की सलाह देते है । पर कुछ लोगों की व्यवसायिक मजबूरी है कि लाने का विकल्प बचता है । चलिए लेख बड़ा हो रहा है। जहां समाज को भी इनके लिए अपने दृष्टिकोण मे बदलाव की आवश्यकता है वही कुछ चिकित्सको को भी विश्वास कायम करने की आवश्यकता है । दोनों एक दूसरे के पूरक है। आखिरकार दोनो हाथों से ही ताली बजती है। इस चिकित्सक दिवस मे इनको कुछ नहीं चाहिए। कम से कम अगर कोई सम्मानित नहीं करता है तो कोई बात नहीं, पर कम से कम किसी चिकित्सक के कालर पर किसी का हाथ न पहुंचे यही सम्मान काफी है ।  मेरा उन चिकित्सकों को नमन है जिन लोगों ने इस महामारी मे अपने जान तक की आहुति दे दी । इस लेख मे मैं उन सरकारों व उनके नेताओं को भी धिक्कारता हूँ जिन्होने इस मौतों मे भी राजनीतिक फायदा देखकर, अनुदान भी धर्म देखकर  दिया है । वहीं इनके संगठन की खामोशी भी इस मुद्दे पर इनके अपने ही साथियों के साथ हो रहे अन्याय पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है कि क्यो नही आवाज उठाई गई? जबकि एक विशेष के लिए तो क्या नहीं कर डाला गया! चिकित्सक दिवस औपचारिकता बनकर न रह जाए। कुछ ऐसा होना चाहिए कि लोगो से संवाद कायम होने की आवश्यकता है।  वहीं यह दिवस बड़े शहरों व बड़े चिकित्सक तक ही नहीं रहना चाहिए, जो हो भी रहा है। यह दिवस ग्रामीण और पिछड़े इलाकों के चिकित्सक तक भी इसकी छाया पहुचने की आवश्यकता है, जहां चिकित्सक सिर्फ अभिवादन तक के लिए तरस जाते है । चिकित्सक दिवस की अशेष शुभकामनायें  ।
बस इतना ही
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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