Positive India:Bareli;5 July 20:
गुरु पूर्णिमा
अडिग हिमालय से रहे, डीगे नहीं तुम वीर।
सविता शक्ति से जुड़े ,तपमय किया शरीर।।
सागर भी छोटा पड़ा, मर्यादा के पुंज।
थे विशाल आकाश सम, रहे शांति के कुंज।।
स्थूल त्याग सूक्ष्म भये, कारण में प्रस्थान।
महाकाल के रूप में, शाश्वत उन्हें जान।।
त्रय देवो की शक्ति का, गुरु होता आगार।
मन श्रद्धा विश्वास रख, वह ही पालनहार।।
परब्रह्मा परमात्मा है, उसका ही इक नाम।
कठिन समझना है उसे, वह ही सुख का धाम।।
कर्म क्षेत्र तुमको मिला, मानव तन सौगात।
गुरु आता प्रतिनिधि बन ,चेताता दिन रात।।
मंत्र तंत्र पूजन पठन, करता सकल जहान।
किया विवेकानंद सम, कभी गुरु का ध्यान।।
गु-कहते अंधकार को ,छाई रहा दिन रात।
जिसके कारण दुखी है ,ना दीखे परभात।।
रू-प्रकाश का नाम है, पाते है जब लोग।
दूर हुई अज्ञान तब, गुरु से होवे योग।।
गुरु पद का निर्वाह कर, दिया शिष्य को प्यार।
ऐसे गुरु श्री राम का, व्यक्त करें आभार।।
गुरुता से भरपूर हो, अंधकार से दूर।
चेतन शक्ति पुण्य दे, हो तप से भरपूर।।
प्राण देत निष्प्राण को, भक्ति ज्ञान अरु दान।
सदा शिष्य की मदद में, लगे तुम्हारा ध्यान।।
गुरु ज्ञान साहित्य में, दिया उसे तू पाल।
जाने अनजाने सभी, होही दूर जंजाल।।
गुरु पूर्णिमा आ गई, पूजन करो सुजान।
गरिमा गुरु की जानिए, कहते शास्त्र पुराण।।
लेखक:वैद्य फूल चंद्र शर्मा-बरेली