Positive India:Kanak Tiwari:
गरीब दुनिया की नेमत और शामत दोनों हैं। भारत में सौ करोड़ से कम नहीं हैं। गरीबी की सीमा सरकारों ने खींच दी है। नीति आयोग के पूर्वज योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेसिंह अहलूवालिया ने कहा मासिक आमदनी हजार रुपए हो तो परिवार गरीब नहीं है। दुनिया में करीब सबसे ज्यादा गरीब भारत में ही हैं। भारत को ‘मेक इन इंडिया‘, ‘बुलेट ट्रेन‘, ‘स्मार्ट सिटी‘, ‘डिजिटल इंडिया‘, ‘स्टार्ट अप‘ वगैरह के अमीर इंजेक्शन लगाए भी जा रहे हैं।
नेता गरीब को समझा रहे हैं। केवल एक रुपए से बैंक खाता खोल ले। थाली में दाल नहीं हो। सब्जियां महंगी हों। फिर भी शौचालय अपने घर में बना ले। देश के विकास के लिए अपनी जमीन जबरिया दे। देहात की अपनी जड़ से उजड़ने को व्यवस्थापन कह ले। महानगरों में झोपड़पट्टी में रह ले। भारत को ‘स्लम डाॅग मिलेनियर‘ जैसी फिल्मों में आॅस्कर अवार्ड का सुख देने अपनी मुफलिसी बेचे। गरीब की बीवी, बहन और बेटी को दहेज या शिक्षा नहीं होने के कारण देश के विकास के लिए अस्मत देनी पड़े। गरीब समझे उसे सरकारें मुफ्त या बराएनाम कीमत पर चावल, तेल, नमक, गेहूं वगैरह दे रही हैं। उसे सरकारी शराब ठेकों से जी भरकर ठर्रा पीने का अधिकार है। जरूरत पड़े तो सरकार की शराब नीति की रक्षा के लिए बीवी, बच्चों को घर से खदेड़े भी।
गरीब के मां, बाप के इलाज के लिए सरकारी अस्पताल हैं। वहां जाकर सम्मान बढ़ाएं। डाॅक्टर समय पर नहीं देखें। जमीन पर लिटाकर इलाज करें। उन्हें अपमानित महसूस नहीं होना है। देश उनका है। सरकार, डाॅक्टर अस्पताल उनके हैं। अमेरिकी शोध के अनुसार भारत के गरीब खाते बहुत हैं। कम खाएं तो देश अनाज के लिहाज से आत्मनिर्भर हो सकता है। शादी ब्याह और जन्मदिन समारोहों के अतिरिक्त सितारा होटलों की पार्टियों में जूठा भोजन बचता है। वह सब भिखारी गरीबों को उन्हें ही शाही भोज की तरह खाने दिया ही जाता है। फिर भी शिकायत करते हैं।
अमीरों से जलना गरीबों का पैदाइशी दुर्गुण है। इससे बचाने के लिए सरकार नए नए अधिनियम रचती है। गरीब को लोकतंत्र में पांच वर्ष में अपनी सरकार चुनने का मौका देती है। मौके का पूरा फायदा उठाएं। उम्मीदवार उन्हें रुपया, शराब, साड़ी, कपड़ा, बरतन, थाली, मोबाइल फोन, लैपटाॅप खैरात में देते हैं। इतना बड़ा दान तो कर्ण, भामाशाह और दधीचि ने भी नहीं किया। गरीब अपना विवेक अमीरों को दें। उनकी सलाह से अपराधियों, मुनाफाखोरों बलात्कारियों और भ्रष्ट उम्मीदवारों को वोट दें। ऐसा पुण्य भावना के साथ करें। हर तरह के अपराधी, राजनीतिज्ञ को सुधरने का मौका दें। गरीब का यह कल्याणकारी कदम लोकतंत्र के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाएगा। स्वर्ण अमीर का, अक्षर गरीब के।
गरीब गंदे हैं। इसलिए स्वच्छता अभियान लाने की जरूरत पड़ी है। अमीर साफ सुथरे होते हैं। उनके कुत्ते भी गरीबों से ज्यादा साफ सुथरे रहकर कुपोषण मुक्त भोजन और दवाइयां लेते हैं। उनके कमरे तक गरीबों के घरों से ज्यादा साफ होते हैं। पांच सितारा संस्कृति वाले बेचारे अमीर समझा रहे हैं। गरीबों को गरीब नहीं रहना है। अमीरों की फैक्टरियों में ईमान नीलाम करके नौकरी करनी है। छत्तीसगढ़, ओडिसा, झारखंड में सूखा, बाढ़, भूमि अधिग्रहण, नक्सलवाद और सरकारी शोषण के कारण गरीबों को हर साल पलायन करना पड़ता है। यह उन्हें देश हित में खुशी खुशी करना चाहिए। संविधान में लिखा है देश का हर नागरिक अपने व्यवसाय के लिए देश के किसी इलाके में जाकर रह सकता है। गरीब प्रदेशों के गरीबों को गुजरात, पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश आदि में बंधुआ मजदूर बनकर अमीरों की फसल या फैक्टरी को लहलहाने का अवसर देना है। ठेकेदार, लठैत और कारिंदे उनकी बीवियों का बलात्कार करें, रखैल बनाकर रखें। उन्हें वापस नहीं आने दें। उन प्रगतिशील इलाकों की तरक्की के लिए गैर विकसित प्रदेशों की गरीब महिलाओं के बलिदान की ये कहानियां सरकारें, कारपोरेटियों से प्रकाशित कराकर पढ़ाई के पाठ्यक्रम में शामिल करने पर भी सोचना चाहेंगी।
गरीब महिलाओं ने अपने पतियों के शराब पीने का मुकाबला भी किया। धरना, जुलूस और प्रदर्शन आदि का आयोजन हुआ है। गरीब महिलाएं नहीं समझतीं बारी बारी से सरकार चलाने वाली पार्टियां शराब ठेकेदारों से जनहित में काला चंदा लेने मजबूर हैं। चंदे से नेताओं की कोठियां बनती हैं। उन कोठियों से ही गरीबों को नारे, जुमले और भ्रम बेचे जाते हैं। इस वजह से ही देश में लोकतंत्र पुख्ता हो रहा है। गरीब महिलाएं शराबखोरी का समर्थन करेंगी तो देश और प्रदेश तेजी से विकसित होंगे। शराब मंत्री का अमर वाक्य है। हमें शराब के जरिए देश में सबसे ज्यादा राजस्व कमाने का गौरव हासिल है। गरीब मेहनत करते हैं। सादा जीवन जीते हैं। देह से रोज पसीना निकलता है। अधिकतर आंसू भी और कई बार खून भी। इससे उन्हें हृदय रोग नहीं होता। इससे सिद्ध होता है गरीब हृदयहीन हैं। बेचारे अमीरों को हृदय रोग होता है। इसलिए उनके दिल बड़े हो जाते हैं। वे गरीब को वेतन, भीख या खैरात सब कुछ देते हैं। गरीब उनके बड़प्पन को फिर भी नहीं समझते।
साभार:कनक तिवारी(ये लेखक के अपने विचार हैं)