Positive India:By Dr.Chandrakant Wagh:आज पुनः एक संवेदनशील मुद्दे पर आप सब का ध्यान आकर्षित करना चाहता हू । पिछले सत्तर साल से कांग्रेस अपने को गांधी जी का और गांधी वाद का अनुयायी के साथ उत्तराधिकारी भी मानती है । क्योंकि आजादी के बाद जैसे लोगो को पता है कि गांधी जी ने कांग्रेस को खत्म करने की बात कही थी । पर तत्कालीन नेताओ ने अपनी राजनीति की बिसात की चिंता मे गांधी जी को अनसुना कर दिया । फिर तो इस वाद के नाम से फसल काटना जो चालू किया जो आज तक बदस्तूर जारी है । मै आजादी के तुरंत बाद की राजनीति से ही मै पूर्ण विवरण के साथ बात करूंगा । अपने राजनीति की खाल बचाने के लिए हर दशक मे गांधी जी के साथ छल किया गया है । गांधीजी ने ने तो अपने मृत्यु के पहले गोडसे को तो माफ कर देना चाहते थे जो इतिहास मे भी दर्ज है पर क्या हुआ गांधी जी की अंतिम इच्छा दरकिनार कर उन्होंने आखिरकार फांसी मे ही लटका कर ही दम लिया । अपने को गांधीवादी बताने वालो ने गांधी जी को क्यो अनसुना कर दिया ? स्वतंत्रता के बाद देश की राजनीति मे सूना पन था । आजादी के उत्तराधिकारी होने के कारण स्व. नेहरू जी और कांग्रेस के खिलाफ वो भी सिद्धांतो के तहत बात रखना बड़ा मुश्किल व दुस्साहस वाला काम था । दुर्भाग्य से उस समय शिक्षा बहुत कम होने के कारण राजनीतिक निणॆय लेने मे भी उस पैने पन की कमी थी जिसका देश हित मे होना था । इसके बाद भी आजादी के तुरंत बाद नेहरू जी के नेतृत्व मे जो मंत्रिमंडल गठित हुआ था उसमे विरोध के स्वर उभरने लगे थे । जहा स्व. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने काश्मीर मुद्दे पर मंत्री पद से इस्तीफा दिया वही इसी मुद्दे के कारण ही काश्मीर जेल मे उनकी संदेहास्पद परिस्थिति मे मृत्यु भी हुई । वही कुछ सिद्धांत के कारण संविधान निर्माता स्व. बाबा साहब अंबेडकर जी ने भी इस्तीफा दिया । वही अपने जीवन काल के अंतिम क्षण तक उन्होंने कांग्रेस का विरोध भी किया । पर जिन लोगो ने आजादी मे भाग लिया पर सरकार के नीतियो विरोध के चलते उन्होंने पुरजोर विरोध कर एक सशक्त विपक्ष को देश के सामने रखा । आचार्य जे. बी कृपलानी आचार्य नरेंद्र देव आचार्य जयप्रकाश नारायण जैसे मनीषियो ने देश हित मे अपनी आवाज हर समय बुलंद रखी । वही संसद मे स्व . राममनोहर लोहिया स्व. बलराज मधोक स्व. दीनदयाल उपाध्याय स्व. मधु लिमये , ऐसे अनेको नाम है जो इस देश मे इनके कारण ही आज लोकतंत्र दिख रहा है । वो इनके योगदान की बदौलत है । बात थोड़ी सी भटक गई पुनः मूल मुद्दे पर प्रथम प्रधानमंत्री स्व. नेहरू जी का आभामंडल इतना बड़ा हो गया था कि जायज बात का विरोध का प्रधानमंत्री जी का विरोध लगने लगा था । आजादी के कुछ समय पश्चात ही जीप घोटाला सामने आया था । वही चीन के मामले मे यहा के नेताओ ने चीन पर विश्वास न करने की बात भी की थी पर पंचशील सिद्धांत पर इतना भरोसा था कि शांति कबूतर तब तक उड़ाये जा रहे थे जब तक चीन ने भारत की पीठ पर खंजर नही घोप दिया । हमारे यहा की जमीन पर बेजा कब्जा कर लिया । हालात ये हो गये कि हमे मानसरोवर के लिए भी वीसा लेना पड़ रहा है । शायद अब ये स्थिति हो गई है आज के जनरेशन को ये पता भी नही होगा कि वो जमीन हमारी है । मुझे यह स्वीकार करने मे कोई भी संकोच नही लग रहा है किसी भी दल व नेता मे ये हिम्मत नही की अपनी हारी हुई जमीन वापस ले सके । यह कटु सत्य है गोडसे ने गांधी जी को शारीरिक रूप से मारा है पर उससे ज्यादा दोषी तो वैचारिक रूप से मारने वाले है । गांधी वाद पर अपनी पेटेंट समझने वाली पार्टी ने जो व्यवहार किया उसीका नतीजा है कि आज ये दल इस हालत मे है । अपराधीयो के हौसले राजनीति मे बुलंद होने लगे सिद्धांत की राजनीति करने वाले हासिये मे जाते चले गए । राजनीति मे वंशवाद के साथ चाटुकारिता का घोल मिश्रण का काकटेल तैयार होने लगा । स्वाभिमानी नेताओ के बुरे दौर का प्रारंभ हो गया । खुले आम विमान हाईजैक करने वाले को माननीय बनाया जाने लगा । हालात तो ये हो देश का सबसे बड़ा सूबे का मुख्यमंत्री तत्कालीन युवराज के जूते सार्वजनिक उतारे तो इससे बदतर स्थिति क्या हो सकती थी । बाद मे उक्त सज्जन अवैध बेटे के मामले मे सर्वोच्च न्यायालय तक को डीएनए टेस्ट की बात गई तो आखिरकार उन्होंने उसे पुत्र मान ही लिया । भंवरी देवी हत्या कांड मे भी एक तथाकथित अहिंसावादी गांधी वादी नेता अंदर है । ये देश तंदूर कांड को कैसे भूल सकता है ये युवा नेता भी अहिंसा वादी ही थे ? उल्लेखनीय है कि इनके परिजन मंत्री जैसे बड़े पद मे सुशोभित थे । जेसिका लाल हत्या कांड भी बहुचर्चित था इसमे किसका हाथ था ? जिस राम मंदिर को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की गई थी वो राम शब्द तो गांधी जी के अंतिम शब्द भी थे । जिस पार्टी को ये और उसके कैडर को गोडसे कहते थे आज ऐसे हालात हो गये है कि इनके मतानुसार पूरे देश मे लोकतंत्र मे इनके लिए स्वीकार्यता क्यो बढगई और गांधीजी और उनका अहिंसावाद क्यो अप्रासंगिक हो गये है। क्रमशः(ये लेखक के अपने विचार है)
लेखक: डॉक्टर चन्द्रकांत वाघ
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