www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

गांधी का समाजवाद–कनक तिवारी

laxmi narayan hospital 2025 ad

Positive India:Kanak Tiwari:
भारतीय जननायकों में सबसे पहले विवेकानन्द ने खुद को समाजवादी घोषित किया था। महात्मा गांधी ने बाद में इसी तरह के प्रयत्नों को हृदय परिवर्तन की संज्ञा दी थी। गांधी ने भी खुद को समाजवादी घोषित किया था। विरोधाभास है कि फिर भी गांधी मिश्रित अर्थव्यवस्था के पक्षधर थे। उनका कहना था कि अमीर अपनी निजी संपत्तियों को देश की समझकर खुद को उसका ट्रस्टी समझें। गांधी पूंजीवाद तथा निजीकरण के अंधसमर्थक नहीं थे। उनके विचार दर्शन में बड़ी सामाजिक आवश्यकताओं के सिलसिले में कई सेवाओं के राष्ट्रीयकरण का आग्रह था। अपनी क्लासिक कृति ‘हिन्द स्वराज‘ में उन्होंने शिक्षा, अस्पताल, न्यायालय, संसद और मंत्रिपरिषद आदि को सीधे जनता के प्रति प्रतिबद्ध रहने की जरूरत बताई थी। वे देसी उद्योगपतियों के मुकाबले ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कुटीर उद्योगों को प्राथमिकता देने के हिमायती थे। विदेशी उद्योगपतियों के मुकाबले उन्हें देसी उद्योगपति अनुकूल थे।

1920 में तिलक के अवसान के बाद महात्मा गांधी ने कांग्रेस की बागडोर संभाली। दक्षिण अफ्रीका में न्याय का पक्ष लेकर गोरों के औपनिवेषिक शासन के विरुद्ध संघर्ष का नेतृत्व करके गांधी ख्याति प्राप्त कर ही चुके थे। गांधी गरीब जनता को ‘दरिद्र नारायण‘ कहा करते थे। उन्होंने देश को बताया कि इन करोड़ों भूखे-नंगों की सेवा करना सबसे पहला और आवश्यक कार्य है। कांग्रेस का उद्देश्य संगठन के संविधान की धारा 1 में स्पष्ट किया गया, ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उद्देश्य भारत के लोगों की भलाई और उन्नति है तथा शांतिमय और संवैधानिक उपायों से भारत में समाजवादी राज्य कायम करना है जो कि संसदीय जनतंत्र पर आधारित हो, जिसमें अवसर और राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों की समानता हो तथा जिसका लक्ष्य विश्व-शान्ति और विश्व-बन्धुत्व हो।‘ फिर भी कांग्रेस बूर्जुआ अर्थात् विशेष वर्गों का संगठन ही बनी रही। अलबत्ता वह गांधी के ही नेतृत्व में करोड़ों गरीबों को अपनाती गांवों में अपना कार्य भी बढ़ाती रही।

समाजवाद के लिए वचनबद्धता भारतीय विचारकों में विवेकानन्द, गांधी, नेहरू, भगतसिंह, लोहिया, जयप्रकाश वगैरह में रही है। उनका विश्वास रहा है कि समाजवाद में ही भारत की समस्याओं का निदान निहित है। नियोजित विकास के लिए प्रथम राष्ट्रीय योजना आयोग का आधार कांग्रेस द्वारा आजादी के संघर्ष के दौरान रखा गया। 1931 में कराची कांग्रेस में स्वीकृत बुनियादी अधिकार संबंधी प्रस्ताव ने जनता की उन महत्वाकांक्षाओं को प्रतिबिम्बित किया जिन्हें वह आजादी के बाद साकार करना चाहती थी। भारत के संविधान के निदेशक सिद्धांतों में दरअसल कराची कांग्रेस के स्वीकृत सिद्धांतों के विचार ही प्रतिबिम्बित हुए। देश और विदेश में ऐसे लोग सदैव रहे हैं जिन्होंने कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों की कटु आलोचनाएं कीं। कुछ लोग बालिग मताधिकार पर आधारित एक लोकतांत्रिक संविधान के इस कारण खिलाफ थे कि भारत की अशिक्षित जनता अपना प्रशासन खुद नहीं कर पायेगी। इस तरह के भी सुझाव थे कि मताधिकार या तो शिक्षा या सम्पत्ति पर आधारित हो। कांग्रेस ने इस विचार को रद्द कर दिया। अपढ़ और गरीब लोग ही बड़ी तादाद में इस देश की आजादी के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी करने के लिए आगे आये थे। अनुभव ने दिखा दिया कि कांग्रेस का निर्णय उनको लेकर सही था।

कांग्रेस किसका प्रतिनिधित्व करती है? इस सवाल का जवाब 15 सितम्बर 1931 को ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दे दिया था। लंदन में फेडरल स्ट्रक्चर कमेटी में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा था: ‘‘कांग्रेस मूलतः भारत के सात लाख गांवों में बसे मूक, अधभूखे करोड़ों लोगों का प्रतिनिधित्व करती है-चाहे वे तथाकथित ब्रिटिश भारत या भारतीय भारत के हों। कांग्रेस यह मानती है कि उन्हीं हितों की सुरक्षा की जानी चाहिए जो इन करोड़ों मूक लोगों के हितों का साधन करते हैं।‘‘ 1931 में लन्दन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में गांधी ने यहां तक कह दिया था, ‘‘असल में कांग्रेस भारत के विशाल भूखंड में फैले हुए करोड़ों ऐसे लोगों का प्रतिनिधित्व करती है जिन्हें पेट भर रोटी नहीं मिलती।…..कांग्रेस उन्हीं वर्गों के हितों की रक्षा करेगी जिनके हित में इन करोड़ों का हित है। कई बार कई हितों में टकराव देखने में आता है। अगर सचमुच टकराव हुआ तो मुझे कांग्रेस की ओर से यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी कि वह इन करोड़ों लोगों के हितों की खातिर बाकी सभी हितों को कुर्बान कर देगी।‘‘ 1931 में सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में कांग्रेस के ऐतिहासिक कराची अधिवेशन में मूल अधिकारों के बारे में वह प्रसिद्ध प्रस्ताव पारित किया गया जिसे खुद महात्मा गांधी ने प्रस्तुत किया था। यह एक तरह से कांग्रेस की मूल-नीति की घोषणा थी और समाजवाद की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। प्रस्ताव में मांग की गई थी कि स्वराज्य मिलने के बाद देश का जो संविधान बनाया जाए, उसमें कुछ मूल अधिकार अवश्य निहित हों, जैसे अभिव्यक्ति, प्रेस और सम्मेलन करने की स्वतंत्रताएं, निःशुल्क प्राइमरी शिक्षा; मजदूरों का शोषण से छुटकारा; भूमि सुधार; महत्वपूर्ण उद्योगों, सेवाओं, खानों, रेलों, जलमार्गों, जहाजरानी आदि को राज्य के नियंत्रण में लाना वगैरह।

अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ की स्थापना महात्मा गांधी ने की। ऐतिहासिक यरवदा अनशन के बाद गांधी ब्रिटेन की चाल विफल करने में कामयाब हुए। 1935 के भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत ब्रिटिश शासकों की यह चाल थी कि अनूसूचित जातियों के लिए अलग मतदान शुरू करा कर सवर्ण हिन्दुओं और उनमें मतभेद पैदा करा दिए जाएं। 1935 में जेल से रिहा होने के बाद गांधी ने दलितों के उद्धार के लिए देश का दौरा किया। हरिजन सेवक संघ एक साधन बना। उसके माध्यम से राष्ट्रवादी आन्दोलन ने देश की जनता के शोषित और दलित वर्ग से निकट संबंध स्थापित किये।

नई और न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के पाथेय की ओर की गई प्रगति-यात्रा के हर महत्वपूर्ण मोड़ पर मसलन जमींदारी या जागीरदारी प्रथा का उन्मूलन, सामन्तवादी शासन की समाप्ति और लोकतांत्रिक शासन की स्थापना, गरीबों का कल्याण तथा राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में साधन लगाने के लिए निजी हाथों में वित्तीय संस्थाओं के नियंत्रण की समाप्ति को लेकर कांग्रेस अपने ऐतिहासिक वचन को निभाने का प्रयत्न तो करती रही लेकिन वह अब तक सफल नहीं है। ऐसे ही एक सवाल को लेकर गांधी ने बहुत पहले कहा था, ‘‘सम्भव है यह (कांग्रेस) हमेशा अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंची हो। मुझे ऐसे किसी भी मानवीय संगठन की जानकारी नहीं है जो अपने लक्ष्य तक पहुंचा हो। मेरे ख्याल में कांग्रेस अक्सर ही असफल रही है। यह उसके आलोचकों की जानकारी में ज्यादा ही बार नाकामयाब हुई। लेकिन इसके कटुतम आलोचक को यह मानना पड़ेगा, जैसा कि माना भी गया है, कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दिन ब दिन बढ़ने वाली संस्था है। इसका संदेश भारत के दूरस्थ गांवों में पहुंचता रहता है। अवसर देने पर कांग्रेस ने उन सभी लोगों पर अपना प्रभाव दिखाया जो कि भारत के सात लाख गांवों में बसते हैं।‘‘

Leave A Reply

Your email address will not be published.