Positive India:राज नारायण द्विवेदी:
छत्तीसगढ़ प्रांत के कलमकार आदरणीय गजेंद्र कुमार जी से मेरा कोई परिचय तो नहीं है , न कोई टेलीफोनिक संवाद पर इनके द्वारा सृजित छत्तीसगढ़ की बहुप्रतिष्ठित प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार श्रीमती गीता शर्मा का बायोग्राफी *नये क्षितिज की ओर* मेरे हाथ लगा । पुस्तक का आवरण पृष्ट आकर्षण के गुणों से युक्त है । आवरण पृष्ट में एक महिला का छाया चित्र क्षितिज के ओर निहारता हुआ गहरी चिन्तनमुद्रा में एक आशा की किरण जैसा संकेत दिखाई दे रहा है । क्षितिज का रंग मटमैला यानी धूलधूसरित वातावरण का संकेत है । (यहाँ पर मेरे मतानुसार क्षितिज का रंग हल्का नीला चन्द्रमा युक्त या लालिमायुक्त सुर्य और सुर्य की किरणों के साथ चित्र लगाना बेहतर हो सकता है) दर्शाया गया महिला का चित्र पुस्तक की पुस्तक की खूबसूरती में चार चाँद लगाने वाला है । यानी सोने पे सुहागा जड़ा हो । पुस्तक का पिछला पृष्ट में लेखक की पूर्ण जानकरी है । और जैसा होना चाहिये वैसा है । काविलेतारीफ ।
लेखक ने *अपनी बात* में बड़ी सहजता और सरलता से अपनी साहित्यिक जिज्ञासा का परिचय दिया है । अपनी बात शीर्षक के प्रथम वाक्य में लेखक कहता है कि *”मैं कोई मशहूर लेखक नहीं हुँ ….”* यह वाक्य लेखक की चतुराई और विनम्रता का सूचक है । हर बड़ा आदमी ऐसा ही कहता है …. अभी मैं सीख रहा हुँ , मैं बहुत छोटा कलमकार हुँ । अपनी बात की पुरी वृत्तांत पढ़ने पर लेखक की लेखनी का दक्षता पूर्णतया के ओर …अग्रसर जान पड़ती है । गजेंद्र कुमार जी का लेखनी का यहीं क्रम और निरंतरता बनी रहे तो निश्चित तौर पर छत्तीसगढ़ क्या भारतवर्ष के नामचीन लेखकों के प्रथम पंक्ति के साहित्यकार बनेगें ।
शुभकामनाएं । बहुत बहुत बधाई । साधुवाद ।
महिला साहित्यकार गीता शर्मा के जीवन यात्रा व उनके जीवन के अनछुए पहलू जिनसे हम अभी तक अनभिज्ञ थे। उसे लेखक ने बड़े महीन तरीक़े से सजाने की कोशिश की है। लेखक ने यहाँ सुनार की तरह अपना सर्वस्व दिया है और उन्होंने गीता जैसी खूबसूरत आभूषण को पूरी तरह से सवार कर किताब में उतार दिया है। लेखक की एक चतुराई उसके कहानी के शीर्षक में भी दिखता है । सुखी भिंडी, आत्मविश्वास, अधूरा ख़्वाब , बनारस , सोने की चैन , छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । इन शीर्षक को पढ़कर व्यक्ति उत्सुकतावश कहानी को ज़रूर पढ़ना चाहेगा और कहानी पढ़ने के बाद आपको शीर्षक का पूर्णतः भावार्थ समझ आ जाएगा। सारे शीर्षक एक मोती की तरह है और या किताब उस धागे के समान जो सब मोतियों को जोड़कर स्वयं विशिष्ट बन जाती है।
गीता शर्मा के जीवन संघर्ष को पढ़ने के बाद आत्मप्रेरणा भी मिलती है कि कैसे एक स्त्री इतने संघर्ष करने के बाद भी अपने कार्य में दृढ़संकलपिता के आधार पर वह सब हासिल कर लेती है जो वह चाहती है और इस बात का विश्वास भी दिलाती है कि यदि मनुष्य कोई लक्ष्य ठान ले तो उसे पूरा कर सकता है , बस शर्त ये है कि उसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक हार नहीं मानना है।
किताब कुछ लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने की ताक़त रखता है यदि पाठक उसे अपने जीवन संघर्ष से जोड़कर देखे और इस किताब से सकारात्मक ऊर्जा के भाव को पहचान कर उसे अपने जीवन में भी लागू करे।
गीता शर्मा जी व गजेंद्र साहू जी को किताब के लिए बधाई ।
शुभकामनाएँ। बहुत बधाई। साधुवाद ।
— *राज नारायण द्विवेदी*
(साहित्यिक समीक्षक-समालोचक)
अम्बिकापुर छत्तीसगढ़
सम्पर्क नं. 9406042286