लोकतंत्र के आख़िरी चुनाव से नैतिक जीत के इल्हाम तक
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
एग्ज़िट पोल के बाद बौखलाए बौखलेश यादव ने कहा था कि लोकतंत्र का यह अंतिम चुनाव है। ई वी एम आदि पर भी बौखलाए। तब से गुम थे। आज कोप भवन से निकले तो चेहरे पर हज़ार जूतों की धमक साफ़ दिख रही थी। पर बोले यह हमारी नैतिक जीत है। गुड है। फिर कहा कि समाजवादी पार्टी बढ़ी है। सीट भी बढ़ी है , वोट प्रतिशत भी बढ़ा है। यह भी गुड है। पर अब इस का भी क्या करें भला। कि इस नैतिक जीत के बाद भी करहल से वह इस्तीफ़ा देंगे , ऐसी ख़बर है। संसद में भी जाने क्या करेंगे।
मजा तो तब था जब उत्तर प्रदेश विधान सभा में नेता विरोधी दल के रुप में रहते। एक मज़बूत विपक्ष का आनंद योगी सरकार को देते। पर इस के लिए बकैती नहीं , मेहनत की दरकार है। बताइए कि ओमप्रकाश राजभर कह रहे हैं कि पहले ही राउंड में वह जान गए थे कि गठबंधन हार रहा है। पर बौखलेश हर दो राउंड पर कहते थे , शतक लग गया है। ऐसे गोया सचमुच चार सौ सीट जीत लेंगे। यह बकैती तब भी काम नहीं आई जब कि इस बार मुस्लिम वोट 99 प्रतिशत सपा को मिले।
आलम यह है कि गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर से सटे चक्शा हुसैन बूथ पर योगी को करारी हार मिली है। यहां के बूथ संख्या 267 जनप्रिय विहार द्वितीय में कुल 1064 वोटर हैं। 456 ने वोट दिया। इस 456 में से कुल 9 वोट ही योगी को मिले। यह गोरखनाथ मंदिर से सटा हुआ इलाक़ा है। मुस्लिम बहुल है। जब मीडिया के लोग यहां जाते थे तो सारे मुस्लिम योगी का एक सुर से गुणगान करते थे। हर बार यही होता है।
लेकिन योगी कभी इन वोटर पर नहीं बौखलाए। लेकिन बौखलेश की बौखलाहट और अहंकार के क्या कहने। अपने को इतना ओवर रेट कर के राजनीति में चलना गुड नहीं होता। अब से सही ज़मीन पर चलना सीख लेने में नुकसान नहीं है। सही सलाहकार रख लेने में भलाई है। चाटुकार , चमचों से बच कर रहना ही श्रेयस्कर है। गोरखपुर के डाक्टर कफील जैसे हत्यारों से बच कर रहें। राजनीति शालीनता से होती है। लंठई से नहीं। यह बात भी समय रहते जान लेनी चाहिए।
विधान परिषद में कफील जैसे हत्यारों को भेजने से सपा की बदनामी होगी। सेक्यूलरिज्म के नाम पर , मुस्लिम के नाम पर दाग़ है डाक्टर कफील। बच्चों का हत्यारा है वह। पिता की विरासत सपा को नेस्तनाबूद करने का अगर प्रण ही ले बैठे हों तो और बात है। सोशल मीडिया पर विधान परिषद में सपा के संभावित उम्मीदवारों की सूची घूम रही है। जिस में एक नाम डाक्टर कफ़ील का भी है। मुख़्तार अंसारी , आज़म ख़ान जैसे मुस्लिम नवरत्नों की क्या कम सज़ा भुगत रही है , सपा। जो डाक्टर कफ़ील को भी बुला रही है।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)