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मुफ्त मे बाँटना राजनैतिक पार्टियो की एक गलत परंपरा है

क्या चुनाव के समय ये पार्टीया दुकान है मतदाता ग्राहक ?

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Positive India: Dr.Chandrakant Wagh: मुफ्त मे बाँटना एक गलत परंपरा है । चुनाव के समय सत्ता की दहलीज के लिए तो होड़ सी मच जाती है । ऐसे वादे कर दिये जाते है जिसकी कोई आवश्यकता नही रहती । पर सत्ता लोभ ऐसा है कि पूरा कुबेर खजाना खाली कर दे । पर ये मुफ्त की बंदर बाट का असर स्थायी नही रहता । इससे ज्यादा बांटने वाला आता है तो लोग उसके पीछे हो लेते है । न उनको दल से मतलब रहता है न नेता से मतलब रहता है है सिर्फ माल से। क्या हुआ अखिलेश यादव ने लैपटॉप बाँटा; चुनाव जीत लिया पर अगले चुनाव मे क्या हालत हुई सबके सामने है । यही हाल छत्तीसगढ़ का हुआ । यहा के पी डी एस पर केंद्र सरकार व भाजपा को बहुत नाज था । यह योजना उनकी रोल मॉडल थी । छत्तीसगढ के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह चावल वाले बाबा के नाम से विख्यात हो गये थे । फिर इस चुनाव मे जो नतीजे आये वो अप्रत्याशित थे । पंद्रह साल चावल बांटने का नतीजा यह हुआ कि पंद्रह सीट मे आकर सिमट गये । सौ बात की एक बात क्या चुनाव के समय ये पार्टीया दुकान है और मतदाता ग्राहक ? फिर आकर्षक नारे और आफर मे वो फंस जाता है । पर ऐसा कर ये क्या करना चाह रहे है । जहां लोगो को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए वहा पूरे देश को पूरी कौम को ही विकलांग बनाने मे ही तुले हुए है । ये राजनीति इस देश को आगे चलकर गर्त मे लाकर खड़ा कर देगी । पर ये राजनैतिक लोग इस मिट्टी के बने है कि उन्हे उससे कोई मतलब नही है । सत्तर साल मे इस तरह की राजनीति कर अभी तक क्या हासिल हो गया है । क्या गरीबी हटी? न पंद्रह लाख रुपये आये न राम मंदिर बना। पर कोई भी अपने काम के बूते पर वोट मांगने की हिम्मत क्यो नही करता? क्या ऐसे नगदी देकर हम आने वाले भविष्य मे आलसी और निकम्मे नागरिक निर्माण कर क्या हासिल कर लेंगे ? । पिछले विधानसभा चुनाव मे ऋण माफी की घोषणा और आधा बिजली बिल की माफी ने भाजपा का सूपड़ा ही साफ कर दिया है । पर इसके दूरगामी परिणाम कभी भी सुखद नही रहेंगे । जो समाचार आ रहे है राज्य शासन ने अभी तक छै बार ऋण ले लिया है । क्या ये अच्छे संकेत है ? एक संपन्न प्रदेश जो अपने प्रगति की तरफ बढ़ रहा है उसे अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए बिमारू राज्य बनाने मे जहा दल व नेता जिम्मेदार होंगे वही अप्रत्यक्ष रूप से जनता भी इस हवन मे उनकी भागीदारी भी होगी । अभी बिजली बिल इस माह से आधा हो जाएगा । यहां बिजली बिल का टेरिफ वैसे भी काफी कम है । इसके बाद भी इस तरह की माफी निश्चित प्रदेश के लिऐ घातक होगा । मेरा इस लेख के माध्यम से सरकार से अनुरोध है कि प्रदेश हित के लिए इस घोषणा को वापस ले । मुझे मालूम है अभी सामने चुनाव है तो इनके उपर वादा खिलाफी का आरोप लगेगा, वहीं चुनाव मे राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ेगा । पर चुनाव के बाद इस पर राज्य सरकार पुनः विचार करे । वही अपने वादे के कारण शासन इस पर निःसहाय हो जाये तो हम जागरूक नागरिको का कर्तव्य बनता है कि छूट का फायदा न लेकर पूण॔ बिजली बिल अदा कर एक सजग नागरिक होने की अपनी भूमिका अदा करे । अगर भविष्य मे ये प्रदेश कही बिमारू राज्य की श्रेणी मे आएगा तो कम से कम इसके जिम्मेदार हम तो नही होंगे इस बात की तो तसल्ली रहेगी । अगर एक शिक्षित बंदा भी लालच मे आ जाऐ तो दूसरे को क्या बोले ? ये एक निवेदन है और हमारी और आपकी जागरूकता जो राज्य को बडे संकट से बचायेगा । मेरा सभी दलो से अनुरोध है कि इस तरह के खेल न खेले आगे चलकर आप देश का नुकसान कर रहे है । वही चुनाव आयोग व सर्वोच्च न्यायालय से भी एक नागरिक का अनुरोध है ऐसे दलो की मान्यता ही रद्द होनी चाहिए । अन्यथा इस तरह के अवांछित वादे को ये अपने पार्टी फंड या अपने संसाधन से पूण॔ करे । इन लोगो को भी कोई हक नही की इस देश का पैसा अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए उपयोग करे । इसमे सभी दलो की बराबरी की भागीदारी है । पुनः सभी लोग अपने राजनीति की लक्ष्मण रेखा कहा तक लांघना है इस पर कानून बनाने की सख्त आवश्यकता है । जो देश हित मे हो पर इसका मतलब कदापि नही की अगर कोई बहुत ही निधॆन है तो उसे शासन से उस योजनाओं का लाभ लेने का पूरा हक है । पर उसके आड़ मे दूसरे लोग भी मलाई मारे वो निंदनीय है । ऐसे ही लोगो ने शासकीय नीतियो का दुरुपयोग किया है । पुनः एक बार ये आलेख किसी भी दल न नेता के खिलाफ है ये हमारी राजनीति की कटु सच्चाई है जिससे हर दल कन्नी काटेगा । मेरा आप लोगो से अनुरोध है इस पर जरूर पर प्रतिक्रिया करे जरूर मेरे अनुरोध पर विचार करे । हम एक बार ऐसा कर कम से कम उन्नत प्रदेश के निर्माण मे अपने सहयोग से न हटे । सबले बढि़या छत्तीसगढिया हम अपने कर्मो से दिखलाये। इसके दूरगामी परिणाम राष्ट्रीय स्तर पर भी दिखाई पड़ेंगे ।
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचंद्र वाघ(ये लेखक के अपने विचार है)

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