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शराब नीति ने एक ही परिवार के 5 लोगों को लील लिया

शराब की वजह से एक ही परिवार के 5 लोगों ने की आत्महत्या।

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Positive India:Dr Chandrakant Wagh:
आज एक बहुत दुखद समाचार आया कि एक ही घर के पांच लोगों ने ट्रेन के नीचे आत्महत्या कर ली।  कारण जो आया वह ज्यादा दुखद कि शराब के चलते पारिवारिक तनाव यह मुख्य कारण था । किसकी जवाबदेही है? किसी की नहीं । एक श्रद्धांजलि सब समस्या का हल, चाहे वो फिर कितनी भी बड़ी हो! राजनीतिक हलकों के लिए यह सब सामान्य सी घटना है। कहीं कोई क्यो विचार करने लगे ? पर एक साधारण से आदमी की औकात ही क्या है कि किसी सरकार से अपने विरोध का कौन सा रास्ता अख्तियार करे । कुल मिलाकर सब रास्ते आखिरकार यमलोक को ही जाते है ।

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पिछले सरकार मे भी एक बंदे ने मुख्यमंत्री आवास मे जाकर अग्नि स्नान कर लिया, फिर यही घटना इस सरकार मे भी हुई । कुल मिलाकर यह समाचार बाद में रद्दी की भेंट ही चढ़ जाते है । चलो इनकी बात करे, आदर्शों की बात करने वालों मे कहीं नैतिकता की जगह नहीं रहतीं। 

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आज विपक्ष सवाल करेगा कि यह घटना क्यो हुई? पर यही विपक्ष पंद्रह साल सत्ता मे रहा, क्या उसे शराब के बारे मे नहीं मालूम रहा होगा? किसी मे नैतिक साहस नहीं है कि वह इस पर बंदिश लगाये । यह भी कटु सत्य है कि बैन होने पर दारू की अवैध व्यवसाय उसकी जगह लेगा ।

किसी का भी शासन हो यह लाॅबी बहुत तगड़ी रहती है । सत्ता के गलियारों में इनकी चहल कदमी आम है । पूरी राजनीतिक दिशा यही लोग तय करते हैं । इसलिए इनको रोक पाना मुमकिन ही नहीं है नामुमकिन है । एक दल अहिंसा सत्य के मार्ग पर चलने वाला है उनके राज्य मे भी, तो दूसरी तरफ एकात्म मानववाद और अंतिम छोर तक पहुंचने की बात है । पर जमीनी हकीकत यह है कि यह सिर्फ कहने के लिए और बोलने के लिए है । 

अब महत्व पूर्ण बात पर आया जाये । यह घोषणा पत्र ही क्यो लाया जाता है जब इसको अमल मे ही लाना नहीं रहता है । क्यो ऐसी घोषणा की जाती है, जिससे आसानी से भूला दिया जाता है ? जब दल ने शराब बंदी की बात की और उस आधार पर मत लिया तो क्या यह अपने बात से पीछे हटना नहीं है  ? घोषणा पत्र तो सिर्फ एक औपचारिकता बन कर रह गई है जो समय के राजनीतिक हालात देखकर बना दिया जाता है । चलो विषय पर ही आया जाए चलो शासन राजस्व ही इससे अर्जित करती है तो कौन सा बहुत बडा फायदा है ? जहां सरकार राजस्व हासिल करने के बाद फिर इन्हे ही आर्थिक सहायता निम्न वर्ग के नाम से करती है चाहे वो राशन देकर करे या किसी भी माध्यम से ।

कुल मिलाकर यह शराब के माध्यम से पैसे देकर फिर उसे सहायता से वापस ले लेता है । फिर शराब के कारण जो एक्सीडेंट या शराब के सेवन के कारण जब तबियत खराब होती है तो यह शासन फिर वहां पर खर्च करती हैं । कुल मिलाकर वहीं सिस्टम काम करता है जैसे हम बरसात में पानी हार्वेस्टिंग कर फिर उस पानी को साल भर उपयोग करते है । बस यही सिस्टम पर सरकार काम कर रही है । बस यहां  पर यह फर्क है कि परिवार बर्बाद हो जाता है । पर इसके कारण प्रदेश के परिवार कितना इससे प्रभावित है, यह पूरे परिवार ने आत्महत्या कर अपने मनोदशा को बता दिया है । वहीं इन दलों की भी जवाब देही तय होनी चाहिए । पर यह तय है बस यह घटना बनकर रह जाएगी । राजनीतिक फायदे नुकसान के बीच यह संवेदनशील घटनाओं को लोग भूल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं । जब तक जनता नहीं जागेगी तब तक किसी बड़े सामाजिक परिवर्तन की कल्पना करना बेकार है । इन सामाजिक संगठनों को अपने समाज के आर्थिक बेहतरी के लिए सामने आने की आवश्यकता है।  दुर्भाग्य यह है कि सामाजिक संगठनों से ही लोग राजनीति मे आते हैं । कुल मिलाकर बात यह है कि इस भंवर जाल से आप ही निकले, तभी तो आप और आपका परिवार सुरक्षित है।

बस यह लोग समझ जाए शराब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, इसलिए कोई भी इस स्तंभ से छेड़खानी नहीं करेगा। यह कटु सत्य है । पर इस घटनाक्रम ने एक बार सोचने को विवश कर दिया कि आज परिवार और सामाजिक हालात कैसे है । जिस दिन यह संकल्प दिखेगा कि सरकार को अपने राजस्व की चिंता नहीं है, तब सामान्य हालातों की तरफ बढेंगे। बस इतना ही ।
लेखक:चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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